जिताऊ और जातिगत समीकरणों में फंसी छत्तीसगढ़ की इन पांच सीटों की घोषणा

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जिताऊ और जातिगत समीकरणों में फंसी छत्तीसगढ़ की इन पांच सीटों की घोषणा

गंगेश द्विवेदी, RAIPUR. बीजेपी ने आचार संहिता लगते ही अपनी दूसरी सूची जारी की। उसमें पांच सीटों को छोड़कर बाकी सीटों पर उम्‍मीदवारों की घोषणा कर दी गई। बीजेपी की ओर से सफाई दी गई कि कुछ कारणों से इन सीटों पर फैसला नहीं हो पाया है। द सूत्र ने पड़ताल की कि पांच सीटों पर पेंच कहां फंसा है तो पाया कि बेमेतरा, पंडरिया, कसडोल, अंबिकापुर और बेलतरा से अभी प्रत्‍याशियों के नामों की घोषणा नहीं करने के पीछे अलग-अलग कारण हैं। कहीं बीजेपी जिताऊ उम्‍मीदवार तलाश रही है तो कहीं जातिगत समीकरण के कारण पेंच उलझ गए हैं। वहीं एक जगह जोगी कांग्रेस से आए नेता की उम्‍मीदवारी ने मामला उलझा दिया है।

अंबिकापुर में जिताऊ की तलाश

अंबिकापुर हाइप्रोफाइल सीटों में से एक है। यहां से कांग्रेस से उपमुख्‍यमंत्री टीएस सिंहदेव चुनाव लड़ते आए हैं। शुरू से यह सीट टीएस बाबा और उनके पूर्वजों के कब्‍जे में रही। यहां से बीजेपी की ओर से सिंहदेव परिवार से ही अनुराग सिंह देव को टिकट मिलती रही है। लेकिन वे हर बार हार जाते हैं। इस बार बीजेपी वहां से जिताऊ उम्मीदवार की तलाश है। यहां से अनिल सिंह और रमेश अग्रवाल दो बडे़ नाम हैं। माना जा रहा है पार्टी अनुराग सिंहदेव के साथ इन दोनों नामों पर भी विचार कर रहा है।

पंडरिया में रमन की खास भावना वोहरा पर फंसा पेंच

पंडरिया जिला पंचायत सदस्‍य भावना वोहरा की एंट्री से टिकिट में पेंच फस गया है। 2013 का चुनाव मोतीराम चंद्रवंशी ने जीता था। भाजपा की ओर से वे प्रबल दावेदार हैं। सामाजिक रूप से भी मोतीराम चंद्रवंशी मजबूत उम्मीदवार है। यहा बड़ी आबादी ओबीसी की है। खासतौर पर कुर्मी समाज दे वर्गों में बांटा है। पिछली बार कांग्रेस से ममता चंद्राकर ने जीत हासिल कर चुनावी समीकरण को बिगाड़ दिया था। कुर्मी वोट चंद्राकर और चंद्रवंशी में बंट गया था, जिससे मोतीराम चंद्रवंशी की हार हुई थी। इस बार रमन सिंह की चली तो यहां से भावना वोहरा को ही टिकट मिलेगी।

जोगी कांग्रेस से आए योगेश तिवारी ने बिगाड़ा समीकरण

बेमेतरा में जनता कांग्रेस जोगी से बीजेपी में प्रवेश करने वाले यो‍गे‍श तिवारी की एंट्री से सीट का आवंटन रुक गया है। इस सीट से कैलाश टिकरिया को सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। बीजेपी की वायरल सूची में भी उनका नाम था, लेकिन योगेश तिवारी के सीन में आते ही पेंच फंस गया। योगेश तिवारी पुराने कांग्रेसी नेता है और शुरू से राज्‍य के प्रथम मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी के खास लोगों में से एक थे। वर्ष 2008 में प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने रायपुर दक्षिण विधानसभा से योगेश तिवारी को टिकट दिया था, उनके सामने बीजेपी के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल थे, वे चुनाव में हार गए। इसके बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जेसीसीजे ने बेमेतरा से योगेश तिवारी को टिकट दिया था, उस दौरान भी वो हार गए। कांग्रेस के नए प्रत्‍याशी आशीष छाबड़ा ने उन्‍हें पराजित कर दिया था। इस बार माना जा रहा है कि उन्‍होंने टिकट पाने की उम्‍मीद में ही बीजेपी ज्‍वॉइन किया है। बीजेपी के कार्यकर्ता उन्‍हें आयातित प्रत्‍याशी मानकर खासा विरोध कर रहे हैं। वहीं 2013 में विधायक अवधेश चंदेल पिछले चुनाव में हार गए थे।

साहू समाज और पूर्व विस अध्‍यक्ष के बेटे के बीच फंसी टिकट

बलौदाबाजार जिले की कसडोल विधानसभा भी हाइ प्रोफाइल मानी जात‍ी है। यहां से बीजेपी से गौरीशंकर अग्रवाल चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं। गौरीशंकर अग्रवाल पिछली सरकार में विधानसभा अध्‍यक्ष थे। लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस की एकदम नई नेत्री शकुंतला साहू ने बड़ी जीत हासिल की थी। अब यहां से बीजेपी से भी साहू समाज से तीन महिला प्रत्‍याशी टिकट की दावेदारी कर रही हैं। वहीं गौरीशंकर अग्रवाल अपने बेटे नितिन अग्रवाल के लिए टिकट की जुगत में लगे हुए है। गौरीशंकर अग्रवाल रमन सिंह के गुट के नेता है। उनकी पहुंच बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्‍व तक है।इसीलिए पेंच उलझ गया है। कसडोल के जातिगत समीकरण को देखें तो लगभग 45 फीसदी OBC, 30 फीसदी SC, 15 फीसदी ST और 10 फीसदी अन्य मतदाता हैं, इसलिए इस सीट में जीत हार का फैसला ओबीसी वर्ग के वोटों पर निर्भर करता है। ओबीसी में से साहू और यादव समाज की बहुलता है। साहू मतदाताओं की संख्‍या सर्वाधिक बताई जाती है। वहीं यादव समाज भी यहां बहुतायत में है और अपने समाज टिकट की दावेदारी कर दी है।

धर्मजीत सिंह और प्रबल प्रताप ने बिगाड़ा बेलतरा का गणित

बेलतरा विधानसभा के विधायक रजनीश सिंह की दावेदारी तय मानी जा रही थी। संभावित सूची में उनका नाम भी लगभग तय हो गया था। लेकिन, जब तखतपुर विधानसभा की सीट पर धर्मजीत सिंह और कोटा सीट से प्रबलप्रताप सिंह का नाम आया, तब रजनीश सिंह का पूरा गणित बिगड़ गया। बिलासपुर जिले में एक लाख से अधिक छत्तीसगढ़िया ब्राम्‍हण मतदाता है। जातिगत समीकरण को देखते हुए एक जिले से तीन सिंह का नाम देखकर बीजेपी के रणनीतिकारों ने आपत्ति कर दी। ऐसे में रजनीश को ड्रॉप करने का फैसला लिया गया। सहज, सरल और पार्टी के प्रति निष्ठावान रजनीश सिंह ने भी बिना किसी दबाव के सहमति भी दे दी। बेलतरा विधानसभा के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो पहले यह सीपत सीट थी। साल 1952 से इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। कांग्रेस वर्ष 1952 से लेकर 1998 तक ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार रही थी और हमेशा जीत भी हासिल की। राज्‍य बनने के बाद बीजेपी ने यहां ब्राम्‍हण समाज से बद्रीधर दीवान को दो बार टिकट दिया ( 2008 और 2013 में ) दोनों बार दीवान को जीत हासिल हुई। जबकि कांग्रेस ने दोनों बार भुवनेश्‍वर यादव को टिकट दिया और वे हार गए। 2018 में बद्रीधर दीवान की सहमति से रजनीश सिंह को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा था और वे जीत कर आए थे।

ये नाम हैं चर्चा में

बीजेपी और संघ से जुड़े नेताओं का दावा है कि बेलतरा में जातिगत समीकरण बनाने की कोशिश चल रही है। पार्टी सूत्रों की माने तो बेलतरा से डॉ. रजनीश पांडेय, आरएसएस से जुड़े प्रदीप शर्मा, डॉ. प्रफुल्ल शर्मा के साथ ही युवा मोर्चा के सुशांत शुक्ला, जिला पंचायत सदस्य सुनील तिवारी में से किसी एक नाम पर सहमति बनाने की चर्चा चल रही है।

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