RATLAM. विधानसभा चुनाव आते ही अनेक रोचक कहानियां सामने आ जाती हैं। रतलाम की आलोट सीट की भी एक कहानी है। दरअसल साल 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां एक प्रत्याशी शून्य वोट हासिल करने के बाद भी विधायक बन गया था। दरअसल उस दौरान मतदान तो हुआ था लेकिन मियाराम नंदा निर्विरोध विधायक चुन लिए गए थे। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मतदान भी हुआ और प्रत्याशी निर्विरोध भी जीत गया। तो आइए आपको बताते हैं पूरी कहानी
1957 के विधानसभा चुनाव का वाकया
1956 में मध्यप्रदेश का गठन हुआ और फिर 1957 में विधानसभा के चुनाव हुए। इन विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 43 सीटों को अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व रखा गया था। इन 43 सीटों पर एक अनुसूचित जाति का और एक अन्य जाति का उम्मीदवार खड़ा किया गया था। लोगों को भी दो मर्तबा मतदान करना होता था। लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी कि 42 सुरक्षित सीटों पर दो चुनाव मैदान में दो-दो प्रत्याशी थे लेकिन रतलाम की आलोट सीट पर कांग्रेस का मुकाबला करने अनुसूचित जाति का कोई भी प्रत्याशी मैदान में ही नहीं उतरा। इसलिए सामान्य वर्ग के प्रत्याशी के लिए तो मतदान हुआ लेकिन अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गए। इन विधायक महोदय का नाम था मियाराम नंदा, जो कांग्रेस के प्रत्याशी थे।
पूर्व विधायक बताते हैं वाकये के बारे में
जावरा के पूर्व विधायक कोमल सिंह राठौर इस घटना के बारे में बताते हैं कि प्रदेश के पहले चुनाव के लिए सीटों का आरक्षण हुआ था। आलोट की सीट एससी कैटेगिरी में सुरक्षित हो गई थी। प्रदेश में ऐसी 43 सीटें थीं। आलोट में उस दौरान 1 लाख 160 मतदाता थे जिनमें से 32 हजार 824 मतदाताओं ने ही मताधिकार का प्रयोग किया था। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों में तो मुकाबला हुआ लेकिन आरक्षित वर्ग के मियाराम निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे।