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नीलकमल तिवारी, JABALPUR. जबलपुर में 1 साल पहले हुए अग्नि हादसे में निजी अस्पताल में 8 लोगों की दर्दनाक मौत के बाद राजधानी तक हंगामा मचा था और आनन-फानन में जबलपुर से भोपाल तक फायर सेफ्टी की समीक्षा शुरू हो गई थी, जबलपुर में ही 24 अस्पतालों पर गाज गिरी और इनके लाइसेन्स निरस्त हो गए, इस दौरान फायर सेफ्टी को लेकर बड़े-बड़े दावे और कार्रवाई का दौर भी चला। अस्पतालों सहित अन्य व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स में अग्नि सुरक्षा की प्लानिंग हुई पर आज तक जमीन पर इसका असर नजर नहीं आ रहा है।
कई जगह ऐसी, जहां फायर सेफ्टी नहीं
जबलपुर में आए दिन हो रहे अग्नि हादसों ने वही मंजर फिर से याद दिला दिया, क्योंकि यहां भी समय रहते हुए स्थिति नियंत्रण में नहीं आती तो अम्बे फर्नीचर और मेट लाइफ का कार्यालय ऐसे ही मार्केट में है। अगर आग बढ़ती तो एक और बड़ा हादसा पूरे प्रदेश को फिर से झकझोर देता। आलम ये है कि इन सभी बड़े मार्केट और कमर्शियल बिल्डिंग में आपदा के समय अपनी जान बचाने भागने की जगह भी नसीब नहीं होगी, किसी भी बड़े हादसे के बाद ऐसा लगता है कि अब प्रशासन कोई ऐसी कार्रवाई करेगा, जिससे ऐसी घटनाएं दोबारा सामने नहीं आएंगी, लेकिन कुछ दिनों की सजगता के बाद सब पुराने ढर्रे पर आ जाता है।
हादसे से नहीं ली सीख
जबलपुर की अस्पताल में आग लगने की घटना के बाद मुख्यमंत्री को हाईलेवल मीटिंग बुलाकर ऐसे भवनों कि सुरक्षा जांच के निर्देश देने पड़े थे। राजधानी भोपाल तक जिला प्रशासन भी जाग गया था। इस घटना के बाद भोपाल जिला प्रशासन ने शहर में मौजूद सभी अस्पतालों की बैठक बुलाई थी, जिसमें अस्पताल संचालक और डॉक्टर भी शामिल थे। जबलपुर में भी CMHO की अगुवाई में एक जांच कमेटी बनाई गई थी, जिसे बाद में जबलपुर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी के बाद खारिज कर नई कमेटी बनाई गई थी।
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थोड़ी देर की सजगता, फिर लापरवाही
कमेटी बनाने के बाद लगभग 150 अस्पतालों को सोनोग्राफी के लिए पीसीपीएनटी, एक्स-रे के लिए एईआरबी लाइसेंस, लिफ्ट लाइसेंस फायर एनओसी समेत अन्य निर्धारित मापदंड का पालन नहीं करने पर नोटिस भी जारी किए गए थे। व्यावसायिक भवनों पर भी फायर सेफ्टी के इंतजामों की जांच शुरू हो गई थी। अब जिम्मेदार फिर से एक हादसे का इंतजार कर रहे हैं, जिसके बाद प्रशासन सहित फायर सेफ्टी डिपार्टमेंट नींद से जगेगा और फिर से खानापूर्ति के खेल में जुट जाएगा।