JAIPUR. राजस्थान के उत्तरी हिस्से के सात जिलों के पिछले तीन चुनाव के परिणाम यह बताते हैं कि यहां परिणाम अक्सर हवा के अनुसार ही रहता है। जिस पार्टी के पक्ष में हवा दिखती है, उसे यहां से बढ़त मिलती है, लेकिन इस बार चुनाव फंसा हुआ है और मौजूदा हालात में यहां भाजपा के लिए चुनौतियां कुछ ज्यादा ही दिख रही हैं। इसका बड़ा कारण है केन्द्र सरकार के कृषि बिल जिनका विरोध पूरे राजस्थान में सिर्फ यहीं दिखा था। इसके अलावा वामपंथी दलों और आम आदमी पार्टी की चुनौती भी है। वैसे तो यह दल कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चुनौती हैं, लेकिन चूंकि दोनों दल राष्ट्रीय स्तर पर “इंडिया“ गठबंधन में शामिल हैं, इसलिए चुनौती भाजपा के लिए ही मानी जा सकती है।
राजस्थान के उत्तरी हिस्से में अलवर, सीकर, चूरू, झुंझुनूं, बीकानेर, हनुमानगढ़ और गंगानगर जिले आते हैं। यह पूरी किसानों की बैल्ट है। गंगानगर और हनुमानगढ़ को तो राजस्थान का धान का कटोरा कहा जाता है। राजस्थान का यह उत्तरी हिस्सा एक तरफ हरियाणा और पंजाब से लगता हुआ है। वहीं बीकानेर और गंगानगर जिलों की दूसरी तरफ की सीमा पाकिस्तान से भी जुड़ती है। हालांकि अब उत्तरी राजस्थान में चार नए जिले और जुड़ गए हैं, लेकिन चुनाव पुराने 33 जिलों के हिसाब से ही हो रहे हैं, इसलिए सात जिले ही माने जाएंगे। जातिगत दृष्टि से देखा जाए तो यहां जाट, मुस्लिम और यादव वोट सबसे ज्यादा हैं। इनमें से यादव ही भाजपा के साथ माने जा सकते हैं और ये भी ज्यादातर अलवर जिले में ही हैं। अन्य जिलों में जाटों की संख्या सबसे ज्यादा है।
इन सात जिलों में कुल 50 विधानसभा सीटें हैं और पिछले तीन चुनाव परिणाम यह बताते हैं कि राजस्थान में जिस पार्टी की सरकार बनती है उसे ही इन जिलों से भर बढ़त हासिल होती है। यानी हवा के साथ बहने वाले जिले हैं। राजस्थान में 2008 में कांग्रेस की सरकार थी तो यहां कांग्रेस को 22 और भाजपा को 19 सीटें मिलीं। इसी तरह 2013 में भाजपा की हवा थी तो यहां भाजपा को 34 और कांग्रेस को सिर्फ सात सीटें मिलीं। वहीं 2018 में फिर कांग्रेस की सरकार थी तो यहां कांग्रेस को 27 और भाजपा को 14 सीटें ही मिलीं। इस बार चुनाव उत्तरी राजस्थान में ही नहीं पूरे प्रदेश में काफी फंसा हुआ दिख रहा है, इसलिए इस बार उत्तरी राजस्थान में वोटर किस के पक्ष में जाएगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन चुनौतियों की बात की जाए तो यहां भाजपा के लिए चुनौतियां ज्यादा दिख रही हैं।
कृषि बिलों का विरोध
केन्द्र सरकार जो विवादित कृषि बिल लाई थी, राजस्थान में उसका विरोध उत्तरी राजस्थान मे ही दिखा था। इसका एक बड़ा कारण यह था कि ये जिले हरियाणा और पंजाब से लगते हुए है, जहां किसान आंदोलन चल रहा था। दूसरा यह किसान बैल्ट मानी जाती है और तीसरा यह कि उत्तरी राजस्थान में कुछ हिस्सों में वामपंथी दल भी अपना असर रखते हैं। स्थिति यह बनी थी कि आंदोलन के दौरान भाजपा के नेताओं के साथ हिंसा तक की घटनाएं सामने आईं थी। इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने हालांकि कृषि बिल वापस ले लिए हैं, लेकिन भाजपा और वामपंथी दल तथा यहां सक्रिय आम आदमी पार्टी यहां इसे लगातार मुद्दा बनाए हुए है और किसानों को इसे भूलने नहीं दे रही है।
वामपंथी दल, आरएलपी और आम आदमी पार्टी
उत्तरी राजस्थान के सीकर, झुंझुनूं, हनुमानगढ़ और गंगागनर जिलों में वाामपंथी दल और आम आदमी पार्टी भी पूरी तरह सक्रिय है। पिछले चुनाव में सीपीएम ने दो सीटों पर चुनाव जीता था और एक-दो सीटें यहां से सीपीएम जीतती रही है। पूरे राजस्थान में पार्टी के सबसे ज्यादा प्रत्याशी उत्तरी राजस्थान में ही खड़े होते हैं। इसके अलावा राजस्थान में इस बार 200 सीटों पर चुनाव लडने जा रही आम आदमी पार्टी भी पंजाब से लगते श्रीगंगानगर और हनुमानगढ जिलों में ही फोकस किए हुए हैं, क्योंकि पंजाब में उनकी सरकार है। वैसे तो यह दोनों दल कांग्रेस के लिए भी मुश्किल हैं, लेकिन चूंकि राष्ट्रीय स्तर पर तीनों दल एक ही गठबंधन में शामिल है, इसलिए एडवांटेज कांग्रेस को ही मानी जा रही है। वहीं एक चुनौती हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी भी है जो अब भाजपा से दूर हो चुकी है और पिछले पांच साल में हुए उपचुनाव में इसने भाजपा को नुकसान ही पहुंचाया है।
नए जिलों की चुनौती
भाजपा के लिए चुनौती नए जिलों का गठन भी है। गहलोत सरकार ने जो 19 नए जिले बनाए हैं उनमें से चार उत्तरी राजस्थान में है। इनमें कोटपूतली-बहरोड जयपुर और अलवर का हिस्सा रहे हैं। खैरथल अलवर का ही हिस्सा है। नीमकाथाना सीकर का हिस्सा रहा है और अनूपगढ़ बीकानेर का हिस्सा रहा है। ऐसे में नए जिलों का गठन कांग्रेस को यहां फायदा दे सकता है।
उपचुनावों में मिली भाजपा को हार
पिछले पांच साल में उत्तरी राजस्थान की तीन सीटों पर मंडावा, सरदारशहर और सुजानगढ़ में उपचुनाव हुए और तीनों पर भाजपा को हार मिली। मंडावा की सीट तो भाजपा से कांग्रेस के पास चली गई। वहीं चूरू की सुजानगढ़ व सरदारशहर हालांकि कांग्रेस की सीटें रही हैं, लेकिन यहां भाजपा की जीत की सम्भावना को आरएलपी ने पूरा नहीं होने दिया। जिस समय उपचुनाव हुए सतीश पूनिया पार्टी के अध्यक्ष थे और चूरू उनका गृह जिला है लेकिन इसका फायदा भी नहीं मिला।
दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर
इस हिस्से में दोनों दलों के कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा की बात करें तो नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ और केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के नाम प्रमुख है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के अलावा सरकार के पांच मंत्री गोविंद राम मेघवाल, टीकाराम जूली, बीडी कल्ला, भंवर सिंह भाटी और बृजेंद्र ओला इन्हीं जिलों से हैं।