मनीष गोधा, JAIPUR. देश की महिलाओं को विधानसभाओं और लोकसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल भले ही जोर-शोर से पास किया गया हो, लेकिन राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस की ओर से महिलाओं को 15 प्रतिशत टिकट भी नहीं दिए गए हैं। वहीं ऐसा लग रहा है कि स्वयं महिलाएं भी अभी मुख्य धारा की राजनीति में सक्रिय होने की बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं है, क्योंकि राजस्थान में चुनाव लड़ रहे कुल प्रत्याशियों में से महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है। प्रदेश के 200 में से 81 विधानसभा क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां एक भी महिला प्रत्याशी नहीं है।
33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल
देश में महिलाओं को विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए केन्द्र की बीजेपी सरकार ने हाल में ही नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित किया है। बीजेपी इसे जबरदस्त ढंग से भुना भी रही है। हाल में राजस्थान में पीएम नरेंद्र मोदी की सभाओं इसका असर नजर भी आया, जहां महिलाओं को सभाओं की जिम्मेदारी दी गई।
कांग्रेस ने दिया समर्थन
कांग्रेस ने भी महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया और ये दावा भी किया कि इसकी शुरुआत हमने ही की थी। कांग्रेस ने इस बात के लिए बीजेपी की आलोचना भी की कि इस बिल का लाभ 10 साल बाद देने की बात क्यों कही जा रही है। नीयत ठीक है तो इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए।
सामने आई दावों की हकीकत
महिला आरक्षण की बड़ी-बड़ी बातों और दावों के बाद जब असल में महिलाओं को अवसर देने की बात आई तो दोनों ही दलों की हकीकत सामने आ गई। राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने मिलकर भी 15 प्रतिशत टिकट भी महिलाओं को नहीं दिए हैं। बिल पारित कराने वाली बीजेपी की बात करें तो इसने सिर्फ 20 महिलाओं को टिकट दिए हैं, यानी 10 प्रतिशत टिकट ही महिलाओं को दिए गए हैं, वहीं कांग्रेस की बात करें तो इसने हालांकि 28 महिलाओं को टिकट दिए हैं, लेकिन ये आंकड़ा 15 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंचता।
पहले भी यही हाल रहा है
ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ इस बार है। पिछले चुनावों में भी स्थिति लगभग यही रही है। बीजेपी की बात करें तो इसने 2008 में 22, 2013 में 19 और 2018 में सिर्फ 17 महिलाओं को टिकट दिए हैं। यानी इसका आंकड़ा 10 प्रतिशत से थोड़ा कम ज्यादा ही रहा है। वहीं कांग्रेस की बात करें तो इसका रिकॉर्ड इस मामले में कुछ बेहतर है। इसने 2008 में 22, 2013 में 22 और 2018 में 26 महिलाओं को टिकट दिए।
स्वयं महिलाओं का रुझान भी दिख रहा कम
स्वयं महिलाओं की बात करें तो उनका रुझान चुनाव लड़ने की ओर कम ही दिख रहा है। इस बार कुल 1875 प्रत्याशियों में से सिर्फ 183 महिलाएं हैं। यानी 10 प्रतिशत महिलाएं भी चुनाव मैदान में नहीं है। पिछले चुनाव यानी 2018 के मुकाबले संख्या कम ही हुई है। उस समय 189 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। इस बार 6 महिलाएं कम हो गई हैं।
2003 से पहले 100 का आंकड़ा भी नहीं होता था
राजस्थान के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी स्थिति ये है कि 2003 के चुनाव से पहले कुल जमा 100 महिलाएं भी चुनाव मैदान में नहीं उतरती थी। हालांकि इनकी संख्या लगातार बढ़ी है। साल 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में 4 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था जो बढ़ते-बढ़ते 180 से ऊपर तक तो पहुंचा है, लेकिन अभी भी पूरी 200 सीटों पर एक महिला प्रत्याशी का औसत भी हासिल नहीं हो पा रहा है।
81 सीटों पर नहीं एक भी महिला प्रत्याशी
प्रदेश में इस बार के चुनाव की स्थिति ये है कि 81 विधानसभा सीटों पर एक भी महिला प्रत्याशी नहीं है। चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ तो ऐसे जिले हैं जहां पूरे जिले में ही एक भी महिला प्रत्याशी नहीं है।
जो भी सक्रिय है उसे मौका मिलना चाहिए
इस मामले में महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राजस्थान महिला आयोग की मौजूदा अध्यक्ष रेहाना रियाज का कहना है कि महिलाओं को आरक्षण के दायर में बांधने की जरूरत नहीं है जो भी महिला अच्छा काम कर रही है और लम्बे समय से सक्रिय है, उसे मौका मिलना चाहिए। फिर चाहे ये आंकड़ा 50 प्रतिशत भी हो तो क्या परेशानी है। महिलाओं की राजनीति में रुचि कम होने के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि महिलाएं राजनीति में आना नहीं चाहती, लेकिन हकीकत ये है कि उन्हें वैसे मौके नहीं मिलते जैसे पुरूषों को मिल जाते हैं।
इसलिए जरूरी है नारी शक्ति वंदन विधेयक
बीजेपी महिला मोर्चा और राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा का कहना है कि महिलाओं को कम टिकट दिए जाने की स्थिति ही बता रही है कि नारी शक्ति वंदन विधेयक की जरूरत क्यों है। अभी भी महिलाओं को विनेबल नहीं माना जाता है और ये स्थिति अच्छी नहीं है। बीजेपी की सरकार में महिलाओं को कम से कम मंत्रालय तो अहम मिलने लगे हैं। जहां तक प्रत्याशियों के कम चुनाव लड़ने की बात है तो महिलाएं निर्दलीय के रूप में अभी चुनाव मैदान में नहीं उतर सकती हैं, इसलिए राजनीतिक दलों की ओर से पहल की जरूरत है।
यहां नहीं हैं महिला प्रत्याशी
राजस्थान में किशनगढ़, मसूदा, तिजारा, बहरोड, रामगढ़, घाटोल, बांसवाड़ा, बायतू, पचपदरा, सिवाना, चौहटन, नगर, भरतपुर, आसींद, मांडल, सहाड़ा, शाहपुरा, लूणकरणसर, हिंडौली, कपासन, बेगूं, चित्तौड़गढ़, निंबाहेड़ा, बड़ी सादड़ी, चूरू, सरदारशहर, लालसोट, आसपुर, सागवाड़ा, चौरासी, पीलीबंगा, नोहर, भादरा, शाहपुरा, फुलेरा, दूदू, आमेर, झोटवाड़ा, किशनपोल, जैसलमेर में एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है।
इसी तरह भीनमाल, जालोर, सांचौर, रानीवाड़ा, डग, मनोहरथाना, पिलानी, नवलगढ़, फलोदी, लोहावट, लूणी, पीपल्दा, सांगोद, कोटा उत्तर, रामगंजमंडी, लाडनूं, डीडवाना, खींवसर, परबतसर, नावां, पाली, बाली, सुमेरपुर, धरियावद, प्रतापगढ़, भीम, कुंभलगढ़, नाथद्वारा, गंगापुर सिटी, फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़, सीकर, सिरोही, पिंडवाड़ा, मालपुरा, टोंक, देवली-उनियारा, गोगुंदा, उदयपुर ग्रामीण, मावली और सलूंबर में एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है।