JAIPUR. महाराष्ट्र में सरकार चला रहे शिवसेना शिंदे गुट की राजस्थान में एंट्री हो गई है और राजस्थान सरकार से बर्खास्त मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा राजस्थान में शिवसेना के सैनिक होंगे। गुढ़ा ने आज अपने बेटे के जन्मदिन पर अपने विधानसभा क्षेत्र उदयपुरवाटी में एक बड़ा कार्यक्रम कर शिंदे को आमंत्रित किया। इसी कार्यक्रम में उन्होंने नई पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब यह देखना रोचक होगा कि है कि महराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रही भाजपा क्या राजस्थान में भी शिंदे गुट के साथ गठबंधन करेगी और गुढ़ा के लिए उदयपुरवाटी की सीट छोड़ेगी?
राजेन्द्र गुढ़ा कुछ समय पहले तक मौजूदा सरकार में मंत्री थे और राजस्थान में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर अपनी ही सरकार के खिलाफ बयान देेने के बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। इस बीच उन्होंने एआईएमआईएम के अध्यक्ष असद्दुीन ओवेसी से भी एक बार मुलाकात की थी और बताया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के सम्पर्क में भी थे, लेकिन अंततः उन्होंने शिवेसना शिंदे गुट का दामन थाम लिया। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों उन्होंने मुम्बई के कई दौरे किए थे और इस दौरान महराष्ट्र के सीएम एकनाथ ंिशंदे ही नहीं बल्कि भाजपा के कई बडे नेताओं से भी उनकी मुलाकात हुई। हालांकि गुढ़ा ने कहा था कि वे भाजपा में नहीं जाएंगे, लेकिन अब भाजपा के सहयोगी दल में उनकी एंट्री को पिछले दरवाजे से भाजपा में एंट्री के तौर पर ही देखा जा रहा है और इसी से यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या भाजपा और शिवसेना गठबंधन राजस्थान मंें भी बनेगा?
इस बार में जब मीडिया ने शिंदे से पूछा तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा कि और बोले कि अभी तो हम राजस्थान मंे आए हैं। देखेंगेे क्या आगे बात होती है।
वहीं यहां से पिछली बार भाजपा के विधायक रहे और इस बार भी टिकट के लिए दावा कर रहे शुभकरण चैधरी से जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में गठबंधन होना अलग बात है और राजस्थान की बात अलग है। उसका यहां से कोई सम्बन्ध नहीं है। गुढ़ा का शिवसेना मे जाना उनका अपना निर्णय है और इसका भाजपा पर कोई प्र्रभाव नहीं पडेगा। चैधरी ने तो यहां तक कहा कि गुढा ने भाजपा नेताओं के लिए जिस तरह के बयान दिए हैं, उसे पार्टी कभी भूल नहीं सकती, इसलिए गठबंधन या गुढ़ा के लिए सीट छोड़ने की कोई सम्भावना नहीं है।
दरअसल उदयपुरवाटी ऐसी सीट है जो त्रिकोणीय संघष्र मंे फंसती रही है और यहां मुख्य मुकाबला गुढ़ा और भाजपा के बीच ही होता रहा है। पिछले तीन चुनाव की कहानी यही है। ऐसे में अब इस सीट पर पार्टी की रणनीति देखने वाली होगी।
सदस्यता को लेकर भी पंेच
गुढ़ा ने हालांकि शिवसेना की सदस्यता ले ली है, लेकिन वे विधायक कांग्रेस के है। ऐसे में उनकी विधायकी रहेगी या नहीं यह भी देखना रोचक होगा। यदि कांग्रेस उन्हें निष्कासित करती है तो उनकी विधायकी संकट में पड़ जाएगी, हालांकि अब चूंकि आचार संहिता लगने में ज्यादा समय बचा नहीं है, इसलिए विधायकी रहने का नहीं रहने का ज्यादा महत्व नहीं है और शायद इसीलिए गुढ़ा ने बिल्कुल अंतिम समय पर यह कदम उठाया है।
यह गुढ़ा का चैथा दल है
गुढ़ा का राजनीतिक सफर लोक जनशक्ति पार्टी से शुरू हुआ था। उनके छोटे भाई रणवीर गुढा इसी पार्टी से विधायक थे। बाद में राजेन्द्र गुढ़ा ने 2008 का चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा और जीत गए। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और वे कांग्रेस में शामिल हो कर मंत्री बन गए। 2013 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा, लेकिन हार गए। बाद 2018 में वे फिर बसपा से टिकट लाए और जीत गए और इस बार फिर विधायक बनने के कुछ समय बाद ही कांग्रेस में शामिल हो गए और 2021 में मंत्री भी बना दिए गए। गुढ़ा ने राजनीतिक संकट से लेकर जब भी गहलोत को जरूरत पड़ी तो उनका साथ दिया, लेकिन मंत्री के रूप में मिले विभाग से वे खुश नहीं थे। बाद में कांग्रेस के असंतुष्ट नेता रहे सचिन पायलट के साथ जुड गए और मंत्री रहने के बावजूद अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे। अंततः हाल के विधानसभा सत्र में उन्होंने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के बारे में अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो गहलोत ने उन्हें मंत्री पद से हटा दिया। अब शिवसेना उनका चैथा दल है।
लाल डायरी को लेकर रहे चर्चा में
इसके बाद गुढा लाल डायरी को लेकर चर्चा में आए। बर्खास्तगी के बाद उन्होंने दावा किया कि उनके पास एक लाल डायरी है, जिसमें गहलोत सरकार के राजनीतिक संकट, राजस्थान क्रिकेट संघ के चुनाव और अन्य चुनावो के समय किए गए अवैध वित्तीय लेनदेन का ब्यौरा दर्ज है। इसके दो-तीन पन्ने भी उन्होंने सार्वजनिक किए, लेकिन इसके बाद चुप्पी साध गए