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नीलकमल तिवारी,JABALPUR. जबलपुर में वेंडर कंपनी द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों को प्रशासन द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी देने के बजाए उनकी आधी तनख्वाह हजम करने का मामला सामने आया है। सूत्रों की मानें तो जबलपुर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के 2500 कर्मचारी वेंडर कंपनियों की इसी मनमानी के शिकार हैं। राज्य सरकार ने अकुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 9650 रूपए प्रतिमाह और अर्द्धकुशल श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 10507 रुपए प्रतिमाह तय की है। लेकिन बावजूद मजूदरों को 5500 से 6500 रुपए प्रतिमाह वेतन मिल रहा है। यहां बात उन 38 कर्मचारियों की हो रही है जिन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से अलग कर आउटसोर्स किया गया था।
कुछ को ही मिलता है एकाउंट में वेतन
बता दें कि जबलपुर स्वास्थ्य विभाग के आउटसोर्स कर्मचारी केवीएस सिक्योरिटी और ग्लो एंड गार्ड नामक वेंडर कंपनी के अनुबंध पर कार्यरत हैं। यह दोनांे कंपनी कुछ ही कर्मचारियों को उनके खातों में वेतन देती है। ज्यादातर से रसीदी टिकट पर हस्ताक्षर कराकर आधा वेतन नगद थमाया जाता है। प्रशासन न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम कराना विधिविरुद्ध तो मानता है लेकिन इन आउटसोर्स कंपनियों पर इतना मेहरबान भी रहता है कि सालों से इस उलटबासी की तरफ देखने के बजाए आंख मूंदे बैठा है।
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क्या है न्यूनतम मजदूरी ?
जबलपुर कलेक्टर के 6 जून 2023 के आदेश अनुसार अर्धकुशल श्रमिकों को महंगाई भत्ते सहित न्यूनतम वेतन 10507 रु तो अकुशल श्रमिकों 9650 रु दिए जाने का नियम है। जिसकी धज्जियां यह वेंडर कंपनियां खुले आम उड़ा रही हैं। दूसरी ओर कर्मचारी भी इस बाबत किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नहीं करते। उन्हें यह डर रहता है कि अगर शिकायत की तो फिर उन्हें कोई कंपनी अपने यहां नौकरी भी नहीं देगी।
पूरे प्रदेश का यही हाल
एनएचएम संविदा कर्मचारी संघ ग्वालियर के कोमल सिंह ने बताया कि सरकार ने इन आउटसोर्स कर्मचारियों का वेतन कलेक्ट्रेट रेट पर 10 हज़ार रु तय किया था। पर वेंडर कंपनियों ने सरकार से तो पूरा वेतन लिया पर कर्मचारियों को 5500 से 6000 रु ही दिए जा रहे हैं। इस प्रकार प्रत्येक कर्मचारी के 4000 रु के घपले में वर्ष 2019 से अब तक लगभग 50 करोड़ रु का घोटाला हुआ है। जिसकी शिकायत संघ ने मिशन संचालक को दी है। सिंह ने दावा किया है कि 15 दिनों में इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं होती तो संघ अदालत का दरवाजा खटखटाएगा।
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