BHOPAL. मप्र हाईकोर्ट में जनहित याचिका के जरिये सिविल जज भर्ती नियम में किए गए संशोधन की वैधानिकता को चुनौती दी गई। गौरतलब है कि मामले में प्रारंभिक सुनवाई के बाद मुख्य न्यायधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल धगट की युगलपीठ ने विधि एवं विधायी कार्यविभाग और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर जवाब की मांग की है। वहीं सिविल जज भर्ती नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर जबलपुर हाईकोर्ट अब 29 नवंबर को सुनवाई करेगा।
मध्य प्रदेश सरकार को भेजा नोटिस
अब हाईकोर्ट ने अनावेदकर्ताओं को जवाब पेश करने का आदेश दिया है। इसी बीच जबलपुर हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है। बता दें कि न्यायायिक सेवाओं में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आरक्षण समाप्त किए जाने को लेकर चुनौती दी गई है। इसी बीच जबलपुर हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए मप्र सरकार को नोटिस भेजा है। नरसिंहपुर निवासी अधिवक्ता वर्षा पटेल ने याचिका दायर कर न्यायिक सेवा नियमों में किए गए संशोधन को चुनौती दी है। इसके अलावा जयपुर के देवांश कौशिक व प्रदेश के अन्य जिलों के उम्मीदवारों ने भी याचिकाएं दायर कर नियमों को चुनौती दी है।
लोक सेवा आयोग से परीक्षा कराने की मांग
याचिका में मांग की गई कि हाई कोर्ट की समस्त भर्तियों को निष्पक्ष तथा पारदर्शी बनाने के लिए लोक सेवा आयोग या राज्य की किसी परीक्षा एजेंसी से कराई जाए। उक्त नियमों में कहीं भी यह प्रावधान नहीं किया गया है कि अनारक्षित पदों को परीक्षा के प्रथम तथा द्वितीय चरण में कैसे भरा जाएगा। इसके अलावा ओबीसी वर्ग के लिए समस्त योग्यताएं अनारक्षित वर्ग के समान निर्धारित की गई हैं, जो कि संविधान के अनुछेद 14 व 16(4) तथा आरक्षण अधिनियम 1994 का उल्लंघन हैं।
आरक्षण नीति के विरुद्ध
दलील दी गई कि उक्त संशोधन के तहत एलएलबी में 70 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को तीन साल की वकालत का अनुभव के बाद सिविज जज परीक्षा के लिए योग्य माना है, जो कि अनुचित है। उन्होंने बताया कि सिविल जज के साक्षात्कार परीक्षा में 50 अंकों में से न्यूनतम 20 अंक प्राप्त किए जाने पर ही सिविल जज के पद के योग्य मान्य किया गया है। याचिका में सिविल जज परीक्षा में ओबीसी व सामान्य वर्ग को एलएलबी में न्यूनतम 70 प्रतिशत योग्यता वाले नियम को आरक्षण नीति के विरुद्ध बताया गया है
3 साल वकालत की अनिवार्यता
इसके साथ ही न्यायायिक सेवाओं में ओबीसी को अनारक्षित वर्ग के बराबर निर्धारित किए गए नियमों को चुनौती दी गई है। इसी बीच न्यायायिक सेवाओं में ओबीसी को अनारक्षित वर्ग के बराबर निर्धारित किए गए मापदंडो को भी चुनौती दी गई है। साथ ही सिविल जज परीक्षा में, 3 साल वकालत की अनिवार्यताओं को भी चुनौती दी गई है।