ये नेता हैं बस टिकट के साथी, फिर चाहे फूल हो ,पंजा हो या मिले हाथी, इनका बस एक सियासी मंत्र हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे

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Chandresh Sharma
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ये नेता हैं बस टिकट के साथी, फिर चाहे फूल हो ,पंजा हो या मिले हाथी, इनका बस एक सियासी मंत्र हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे

अरुण तिवारी, BHOPAL. चुनाव का मौसम आते ही राजनीति में आयाराम-गयाराम यानी दलबदल का सिलसिला अचानक उफान पर आ जाता है। मध्यप्रदेश में भी कुछ इसी तरह की सियासत देखने को मिली। यहां पर दर्जनों नेताओं ने अपनी पार्टी को अलविदा कह दूसरी पार्टी की शरण ले ली। इस बार प्रदेश में जो उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं उन्होंने दलबदल की परंपरा को शिखर पर पहुंचा दिया है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों से चुनाव लड़ रहे इन उम्मीदवारों में कोई पांच बार तो कोई चार बार दल बदल चुका है। यानी टिकट के लिए इनको किसी चुनाव चिन्ह से परहेज नहीं है। इन आयाराम-गयाराम का बस एक ही सिद्धांत है कि हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे। आइए आपको आयाराम-गयाराम की सियासत की पूरी तस्वीर दिखाते हैं।

- रसाल सिंह : रसाल सिंह प्रदेश की राजनीति के एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने पांच बार दल बदला है। चार बार ये विधायक भी रह चुके हैं। रसाल सिंह टिकट के लिए दल बदलने में देर नहीं लगाते। इन्होंने हाथी से लेकर साइकिल तक की सवारी की। इन्होंने अपनी राजनीति जनसंघ से शुरु की। इसके बाद बीजेपी में आए, बीजेपी से जनता दल फिर समाजवादी पार्टी फिर भारतीय जनशक्ति पार्टी और अब लहार से बसपा के उम्मीदवार हैं।

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- फूलसिंह बरैया – फूल सिंह बरैया का सियासी इतिहास भी कुछ इसी तरह का रहा है। पूर्व विधायक बरैया ने भी दलबदल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पहले बसपा से चुनाव लड़ा और विधायक बने। बसपा के बाद समता समाज पार्टी में आ गए। इसके बाद कुछ दिन बीजेपी की भी संगत में रहे। इसके बाद इन्होंने अपनी पार्टी बहुजन संघर्ष दल बना ली। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। इस बार वे भांडेर से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।

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- ऐदल सिंह कंसाना – कंसाना ने सबसे पहले कांग्रेस की राजनीति की। कांग्रेस के बाद से बसपा में चले गए। बसपा के बाद कंसाना फिर हाथ के साथ आ गए। 2018 में चुनाव जीते लेकिन कमलनाथ सरकार में मंत्रीपद नहीं मिला। नाराज होकर बीजेपी में शामिल हो गए और उपचुनाव हार गए। अब वे बीजेपी की टिकट पर सुमावली से उम्मीदवार हैं।

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- अजब सिंह कुशवाह – अजब सिंह कुशवाह भी दलबदल के माहिर खिलाड़ी हैं। बसपा से वे चुनाव लड़ते रहे हैं। बसपा के बाद वे बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन पिछला चुनाव हार गए। बीजेपी के बाद वे कांग्रेस में शामिल हुए और उपचुनाव जीतकर विधायक बन गए। इस बार उनका टिकट कटा वे दोबारा हाथी की सवारी के लिए तैयार हैं।

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- नारायण त्रिपाठी -  नारायण त्रिपाठी की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। उन्होंने अपनी सियासत समाजवादी पार्टी से शुरु की। इसके बाद कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते भी। फिर कांग्रेस में शामिल हुए और इसके बाद बीजेपी के पाले में आ गए। वर्तमान में वे बीजेपी विधायक हैं लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। तो उन्होंने अपनी पार्टी विंध्य विकास पार्टी से मैहर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया।

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- मुन्नालाल गोयल – गोयल ने पहले हाथी की सवारी की लेकिन चुनावी राजनीति में सफल न हो सके। फिर कांग्रेस से चुनाव लड़े और अंतत: 2018 में जीत हासिल कर विधायक बन गए। लेकिन वे सिर्फ दो साल ही विधायक रह पाए। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उपचुनाव हार गए। इस बार उनको बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। नाराज गोयल अब चुनाव में निर्दलीय या अन्य दल से ताल ठोंकने की तैयारी कर रहे हैं।

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- राजेश शुक्ला – बिजावर के विधायक राजेश शुक्ला ने साइकिल की सवारी से विधानसभा तक का रास्ता तय किया। इससे पहले वे कांग्रेस में थे लेकिन 2018 में कांग्रेस ने उनको टिकट नहीं दिया। नाराज हो कर उन्होंने साइकिल की सवारी कर ली। इसके बाद वे बीजेपी में शामिल हो गए। वे बिजावर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं।

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- प्रदीप जायसवाल - प्रदीप जायसवाल कभी कांग्रेस के नेता माने जाते थे। पिछली बार कांग्रेस ने वारासिवनी से उनकी जगह सीएम के साले संजय मसानी को टिकट दे दिया। प्रदीप जायसवाल निर्दलीय खड़े हो गए और चुनाव भी जीत गए। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। इसके बाद बीजेपी सरकार आई तो उसमें खनिज निगम के अध्यक्ष बन गए। आखिरकार बीजेपी में शामिल हो गए और वारासिवनी से उम्मीदवार बन गए।

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- रविंद्र सिंह तोमर – रविंद्र सिंह तोमर इस बार कांग्रेस से दिमनी का चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर से हे। रविंद्र बसपा से बीजेपी में गए और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। दिमनी का उपचुनाव लड़ वे विधायक बन गए। अब फिर चुनाव मैदान में हैं।

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- अभय मिश्रा – अभय मिश्रा की कहानी कुछ अलग तरह की है। दल इन्होंने दो ही बदले लेकिन बार-बार बदले। बीजेपी से विधायक बने। फिर इनकी पत्नी नीलम मिश्रा विधायक बनी। इसके बाद इन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा। 2018 में राजेंद्र शुक्ला से चुनाव हार गए। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली। लेकिन उसमें ज्यादा दिन नहीं रहे। कुछ दिन बाद फिर कांग्रेस में आ गए। वे सेमरिया से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।

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MP News एमपी न्यूज़ Politics of Ayaram-Gayaram account of turncoats the list is quite long आयाराम-गयाराम की सियासत दलबदलुओं का लेखा-जोखा काफी लम्बी है फेहरिस्त