BHOPAL.ग्वालियर में वीसी की जान बचाने के लिए दो छात्र हाईकोर्ट जज की कार छीन लेते हैं और अपने कुलपति को अस्पताल पहुंचा देते हैं, लेकिन उनकी जान नहीं बच पाती है। छात्रों पर डकैती का केस हो गया है और उन्हें जेल पहुंचा दिया जाता है। इसे लेकर द सूत्र ने मानवता की खातिर अभियान चलाया है। जिसे जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। सालों पहले मध्यप्रदेश की पाठ्यपुस्तक में एक चर्चित कहानी थी। बाबा भारती और डाकू खड़ग सिंह की... कहानी सार रूप में यह कहती है कि ऐसी बातों को उछालना ठीक नहीं, जिनके कारण लोग जरूरतमंदों की मदद करना ही बंद कर दें। कमोबेश ऐसा ही कुछ मामला इन छात्रों के साथ हो रहा है, जिन्हें नेकी करने के बदले जेल जाना पड़ा। बाबा भारती की कहानी पढ़ने से पहले जुड़ें द सूत्र के 'छोड़िए शिकायत, शुक्रिया अदा कीजिए' इस अभियान से...
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मानवता की यदि ऐसी सजा मिलेगी तो आगे फिर कोई कैसे किसी की मदद करेगा। इस मामले में द सूत्र आपकी राय जानना चाहता है, कि अगर उन छात्रों की जगह आप होते तो क्या करते। इसके लिए आप हमें अपने विचार वॉट्सऐप नंबर 626830583 पर लिखकर या फिर 30 सेकंड का वीडियो बनाकर भेज सकते हैं। साथ ही अपना नाम और पता लिखना न भूलें। द सूत्र आपकी बात को प्रमुखता से उठाएगा।
कहानी- हार की जीत
एक गांव में बाबा भारती नाम के एक संत रहते थे। उनके पास एक घोड़ा था- सुल्तान, जिसे बचपन से उन्होंने ही पाला था।
उस इलाके में खड़ग सिंह का नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था। एक दिन दोपहर के समय डाकू खड़ग सिंह बाबा भारती के पास पहुंचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, कहो खड़ग सिंह क्या हाल हैं, कैसे आना हुआ। खड़ग सिंह ने कहा कि बाबा सुल्तान को एक बार देखने की चाह आपकी कुटिया पर खींच लाई। उसने कहा, बाबाजी, मैं यह घोड़ा अब आपके पास न रहने दूंगा।
कुछ समय बाद बाबा सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक ओर से आवाज आई। बाबा, इस गरीब की सुनते जाना।
बाबा ने देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा- बाबा, मुझ पर दया करो। अगला गांव यहां से तीन मील है, मुझे वहां जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए जा रहा है। दरअसल वह अपाहिज डाकू खड़ग सिंह था। बाबा कुछ समय तक चुप रहे और कुछ समय बाद कुछ निश्चय कर पूरे बल से चिल्लाकर बोले,जरा ठहर जाओ।
खड़ग सिंह ने घोड़ा रोक लिया और उसकी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा- बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूंगा। बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी आंखों में देखा और कहा कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूंगा। परंतु खड़ग सिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूं। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।
बाबा बोले- मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।
खड़ग सिंह का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। बोला- बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे। यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुंह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़ग सिंह के कानों में उसी प्रकार गूंज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊंचे विचार हैं, उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख खिल जाता था। कहते थे, इसके बिना मैं रह न सकूंगा। इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे…