सचिन पायलट के सरेंडर के बाद बर्खास्त मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने अपनाए आक्रामक तेवर, क्या अब बसपा से या निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे ?

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Rahul Garhwal
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सचिन पायलट के सरेंडर के बाद बर्खास्त मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने अपनाए आक्रामक तेवर, क्या अब बसपा से या निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे ?

सत्येंद्र सिंह चौधरी, JAIPUR. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार को अपने ही मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा को विधानसभा में अपनी ही सरकार को घेरने के आरोप के बाद तुरन्त बर्खास्त कर दिया। अब सवाल उठता है कि राजेन्द्र गुढ़ा की बर्खास्तगी के बाद उनके राजनीतिक करियर पर इस फैसले का उन पर क्या फर्क पड़ेगा। क्या कांग्रेस और खासकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर भी इसका दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। तो इसका सीधा सा जवाब है कि राजेन्द्र गुढ़ा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बर्खास्त करके उनको शहीद का दर्जा दे दिया है और वो इसका आने वाले विधानसभा चुनावों में जबरदस्त फायदा उठाएंगे।





सीएम अशोक ने गुढ़ा को दिया मौका





वैसे भी सचिन पायलट के आलाकमान और गहलोत के सामने सरेंडर के बाद गुढ़ा को अपनी राजनीति बचाने के लिए कोई ना कोई ठोस निर्णय लेना ही था। जिसका मौका अशोक गहलोत ने स्वयं ही गुढ़ा को परोस दिया। झुंझुनु जिले की उदयपुरवाटी विधानसभा के बसपा विधायक राजेन्द्र गुढा ने कुछ महीनों पहले ही गहलोत कैम्प को छोड़कर सचिन पायलट कैम्प को जॉइन कर लिया था। गुढ़ा को लग रहा था कि कांग्रेस आलाकमान जल्द ही राजस्थान में सत्ता परिवर्तन करके सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप देगा। इसके चलते ही गुढ़ा ने पिछले महीनों में पायलट के समर्थन में कई विवादित और बेबाक बयान देकर उनका कैम्प जॉइन कर लिया था। लेकिन जब सचिन पायलट ने ही कांग्रेस आलाकमान और अशोक गहलोत के सामने सरेंडर कर दिया। तो राजेन्द्र गुढ़ा को लगा कि अब कांग्रेस में उनका गहलोत के रहते भविष्य ज्यादा सुरक्षित नहीं है।





गुढ़ा की गहलोत से हल्का मंत्रालय देने के चलते थी नाराजगी





जानकारों का मानना है कि राजेन्द्र गुढ़ा के नेतृत्व में बसपा के विधायकों ने 2 बार कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को बचाया है। इसके बदले में दोनों बार राजेन्द्र गुढ़ा को बहुत ही हल्के विभागों का मंत्री बनाया गया था। इस बार भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार को राजेन्द्र गुढ़ा के नेतृत्व में बसपा के 6 विधायकों ने कांग्रेस में शामिल होकर और समर्थन देकर मजबूती दी थी। लेकिन राजेन्द्र गुढ़ा को वहीं होमगार्ड का मामूली मंत्री पद दिया गया। इसके अलावा बसपा के अन्य 5 विधायकों को भी सत्ता में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इससे भी गुढ़ा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने काफी नाराज चल रहे थे। इस नाराजगी को गुढ़ा ने समय-समय पर जाहिर भी किया था। लेकिन अशोक गहलोत ने उनकी नाराजगी दूर करने का कोई उपाय नहीं किया। हालांकि राजेन्द्र गुढ़ा गहलोत सरकार के खिलाफ हुई बगावत के समय भी उनके साथ मजबूती से खड़े दिखाई दिए।





गुढ़ा को होगा राजनीतिक फायदा





राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजेन्द्र गुढ़ा कांग्रेस से स्वयं ही निकलना चाहते थे, लेकिन इसके लिए उनको उचित मौका नहीं मिल रहा था। गुढ़ा पिछले कई दिनों से लगातार विवादित बयान पर बयान दिए जा रहे थे। जिससे उन्हें लग रहा था कि मजबूर होकर गहलोत और कांग्रेस को उनके खिलाफ कोई ना कोई निर्णय लेना पड़ेगा। जिस बात का इंतजार गुढ़ा कर रहे थे, वो उनको शुक्रवार को विधानसभा में अपनी सरकार को घेरने के बाद तुरन्त मिल गया। जब मुख्यमंत्री गहलोत ने उनको अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। गुढ़ा अपनी शहादत को अपने विधानसभा क्षेत्र उदयपुरवाटी के मतदाताओं के सामने रखेंगे। मतदाताओं का भी इस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है कि गुढ़ा ने प्रदेश में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं, महिला अत्याचार और बढ़ते अपराध पर बोलकर सही काम किया है। जिससे उन्हें अपनी सीट निकालने में काफी मदद मिल सकती है और उनका वोट शेयर भी बढ़ सकता है।





बसपा से या निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं गुढ़ा





अब राजनीतिक हल्कों में सबसे बड़ा यक्ष सवाल यही गूंज रहा है कि बर्खास्तगी के बाद बसपा विधायक राजेन्द्र गुढ़ा का अगला कदम क्या होगा और वो किस पार्टी को जॉइन करेंगे। जब हमने इस सवाल को लेकर डैप्थ में विश्लेषण किया तो हमारे सामने इसका जवाब यहीं सामने आया कि गुढ़ा 2023 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर बसपा का दामन थाम सकते हैं या फिर निर्दलीय ही भाग्य आजमा सकते हैं।





गुढ़ा के लिए ऐसे आसान होगी जीत





माना जा रहा है कि गुढ़ा ने पिछली बार 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर उदयपुरवाटी से चुनाव लड़ा था, तो 61 हजार से अधिक मत प्राप्त करने के बाद भी उनको हार का सामना करना पड़ा था। जबकि 2008 में गुढ़ा ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर 28 हजार मत प्राप्त किए थे। तब भी वो चुनाव जीत गए थे। गुढ़ा ने सचिन पायलट कैम्प को भी इसलिए जॉइन किया था। ताकि उनके उदयपुरवाटी विधानसभा के दूसरे सबसे अधिक गुर्जर मतदाताओं के वोट हासिल कर सकें। पायलट के पक्ष में बार-बार बयान देकर गुढ़ा ने गुर्जर मतदाताओं को अच्छा खासा अपने पक्ष में कर लिया है। गुर्जर समाज का ये मत दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ने से ही गुढ़ा को मिल सकता था। जोकि उनका पर्पज सॉल्व होता नजर आ रहा है। बसपा में रहते हुए एससी वर्ग का अधिकांश वोट हमेशा राजेन्द्र गुढ़ा को ही मिलता आया हैं। वहीं उदयपुरवाटी का राजपूत समाज तो हमेशा से गुढ़ा को शत-प्रतिशत वोट देता आया है। उदयपुरवाटी विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक माली मतदाता हैं और उसके बाद गुर्जर और राजपूत समाज के मतदाता लगभग बराबर से हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि अब गुर्जर और राजपूत के साथ-साथ एससी का वोट लेकर गुढ़ा अपनी सीट आसानी से निकालने में कामयाब हो सकते हैं।





AIMIM और शिवसेना में शामिल नहीं होंगे गुढ़ा





एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष औवेसी की कुछ दिनों पहले जयपुर की यात्रा के दौरान मंत्री पद पर रहते हुए राजेन्द्र गुढ़ा ने उनसे मुलाकात की। गुप्त मुलाकात होती तो भी ठीक था, लेकिन गुढ़ा ने औवेसी के माध्यम से सार्वजिक रूप से अपनी मुलाकात का भी खुलासा करवाया। जिससे वो अपने इलाके के मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का मैसेज दे सके। हालांकि उदयपुरवाटी विधानसभा में 5 से 6 हजार से ज्यादा मुस्लिम मतदाता नहीं हैं, लेकिन औवेसी से मुलाकात से मुस्लिम वर्ग का युवा जरूर गुढ़ा के पक्ष में खड़ा हो सकता है। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि गुढ़ा औवेसी की पार्टी को बिल्कुल जॉइन नहीं करेंगे। शनिवार को महाराष्ट्र के शिंदे शिवसेना की ओर से भी गुढ़ा को उनकी पार्टी जॉइन करने का ऑफर मिला है। लेकिन जानकारों का कहना है कि शिन्दे शिवसेना का राजस्थान में कोई आधार नहीं हैं, इसलिए गुढ़ा शिवसेना को जॉइन नहीं करेंगे।





गहलोत और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं गुढ़ा





बर्खास्तगी के बाद राजेन्द्र गुढ़ा राजस्थान समेत देशभर के मीडिया में छाए हुए हैं और वे लगातार तल्ख बयान दे रहे हैं। गुढ़ा ने मीडिया से बात करते हुए साफ कहा है कि वे अपने बयानों पर आज भी कायम हैं। इसके साथ ही सोमवार को विधानसभा में और भी कई खुलासे करेंगे। गुढ़ा ने मीडिया से कहा कि अगर वो आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़ के ईडी के छापों के दौरान 5 मंजिल से 300 सीआरपीएफ से जवानों के सामने गुलाबी डायरी नहीं लाते तो आज अशोक गहलोत मुख्यमंत्री नहीं होते। उनके इस आरोप के बाद ये बात साफ हो जाती है कि वे आने समय में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। अगर गुढ़ा ने उस गुलाबी डायरी के राज खोल दिए तो गहलोत को जवाब देते नहीं बनेगा। वहीं इस डायरी में छिपे राज से कांग्रेस के कई मंत्रियों और संगठन के पदाधिकारियों के सामने भी संकट खड़ा हो सकता है।





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ना बीजेपी गुढ़ा को लेगी और ना गुढ़ा बीजेपी में जाएंगे





शुक्रवार को विधानसभा में राजेन्द्र राठौड़ के मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस के बयानों का विरोध करते समय राजेन्द्र गुढ़ा ने खड़े होकर अपनी ही सरकार को गिरेबान में झांकने की नसीहत देकर बहुत बड़ी मुसीबत में ला दिया था। गुढ़ा के बयानों से प्रदेश बीजेपी को गहलोत सरकार को घेरने का अगले चुनावों में जबरदस्त मुद्दा मिल गया। गुढ़ा की इस सेवा के बदले बीजेपी उनको पार्टी में शामिल करके उदयपुरवाटी से टिकट दे सकती है, लेकिन गुढ़ा किसी भी परिस्थिति में बीजेपी में शामिल नहीं होंगे। क्योंकि उनको अपने विधानसभा क्षेत्र में इसका फायदा होने की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं बीजेपी का वसुंधरा राजे का गुट उनको बीजेपी में शामिल नहीं होने देगा। गुढ़ा हमेशा से वसुंधरा राजे के खिलाफ भष्ट्राचार के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसी स्थिति में वसुंधरा गुट राजेन्द्र गुढ़ा की बीजेपी में एंट्री पर वीटो लगा सकता है।



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