BHOPAL. 2018 के चुनाव में हार जीत ने पहलू क्या बदला, उसकी वजह से 2023 का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है। हर चुनाव की तरह ये दो दलों के बीच का टकराव है। दो चेहरों के बीच की जंग है। पर, जो खास बात है वो ये कि ये दो दिग्गज नेताओं के ईगो की भी लड़ाई है। जिनके लिए पार्टी गौण हो चुकी है। उन्हें फिलहाल खुद को जीता हुआ साबित करना है। हालांकि, अपना ईगो शांत करने के लिए दोनों नेता जो भी कर रहे हैं, उनकी हार जीत का असर पार्टी पर ही पड़ेगा। निजी स्वार्थ को छुपाने के लिए लोक लुभावना घोषणा की जा रही है। इसकी भी रेस जारी है। जिसकी घोषणा सबसे बड़ी और भारी होगी, मंजिल के सबसे नजदीक भी वही पहुंचेगा।
शिवराज किसी भी कीमत पर ये चुनाव जीतना चाहते हैं
ये दो नेता हैं कांग्रेस के कमलनाथ और बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान। कमलनाथ वो हैं जिनके हाथ 2018 की बाजी थी। वो जीते भी और प्रदेश के मुखिया भी बने। बमुश्किल डेढ़ ही साल में सरकार उनके हाथ से निकल गई।
दूसरे नेता हैं शिवराज सिंह चौहान, 2018 में जिन्हें कांग्रेस के सामने मुंह की खानी पड़ी। साम दाम दंड भेद के भरोसे कुर्सी पर काबिज तो हो गए हैं, लेकिन हर दिन इस डर के साथ गुजरा कि पता नहीं कब चेहरा बदल दिया जाए। फिलहाल ये डर भी खाए ही जा रहा है कि 2023 का चुनाव जीते तो पांचवीं बार मौका मिलेगा या नहीं। ये बात अलग है कि आलाकमान तरजीह दें या न दें शिवराज सिंह चौहान किसी भी कीमत पर ये चुनाव जीतना चाहते हैं।
सो अब चुनाव जीतने के लिए दोनों नेताओं में दौड़ सी छिड़ी हुई है। ये बात अलग है कि दोनों भागते नजर नहीं आ रहे। चुनावी मैदान उन दोनों के लिए दौड़ने का काम उनकी घोषणाएं कर रही हैं। जिसकी घोषणा सबसे तेज और असरदार होगी वो चुनावी मैदान में एक बार जीत हासिल करने में भी कामयाब होगा।
घोषणाओं में चुनावी नीयत कम चैलेंज ज्यादा नजर आ रहा है
2023 में जीत के लिए सारे चुनावी दांवपेंच कमलनाथ और शिवराज के बीच घोषणाओं पर आकर सिमट गए हैं। कोई ऐसा तबका या वर्ग नहीं है, जिनके लिए दोनों ने घोषणाएं न की हो। इन घोषणाओं में भी चुनावी फायदा कम, एक दूसरे को चैलेंज करने की नीयत ज्यादा नजर आती है। बिलकुल ट्रूथ एंड डेयर चैलेंज की तरह। जिसमें ट्रूथ हालांकि कम हैं, लेकिन बड़ी से बड़ी घोषणा के लिए एक दूसरे को डेयर का चैलेंज जीभर कर दिया जा रहा है। लाड़ली बहना योजना और नारी सम्मान योजना से बड़ा इसके लिए और क्या उदाहरण हो सकता है। हालांकि, शिवराज के तरकश में अब भी एक ऐसा तीर बाकी है जो कमलनाथ पर भारी पड़ सकता है।
शिवराज ने अपने ऐलान के साथ कमलनाथ को भी चैलेंज किया
घोषणा की रेस शुरू ही हुई महिला मतदाताओं को रिझाने की मुहिम से। बीजेपी ने हर महिला को लाड़ली बहना बनाकर हजार रु. प्रतिमाह देने का ऐलान किया तो कमलनाथ ने हर महिला के सम्मान के हक की फिक्र करते हुए 15 सौ रु. महीने देने का ऐलान कर दिया। अपनी घोषणा पर कौन कितना खरा है सत्ता में रहते हुए ये साबित करने का मौका शिवराज सिंह चौहान को आसानी से मिल गया। जो अब तक लाड़ली बहना को दो किश्त अदा भी कर चुके हैं। पहली किश्त के साथ ये ऐलान भी कर चुके हैं कि सत्ता में वापसी हुई तो तीन हजार रुपए प्रतिमाह देंगे। दिलचस्प बात ये है कि इसी ऐलान के साथ उन्होंने कमलनाथ को भी चैलेंज किया कि क्या वो भी तीन हजार रुपए का ऐलान कर सकेंगे।
पलड़ा अब भी कांग्रेस का ही भारी है
हालांकि, पलड़ा अब भी कांग्रेस का ही भारी है। क्योंकि कमलनाथ ने नारी सम्मान में 15 सौ रुपए देने के साथ-साथ 500 रु. में गैस सिलेंडर देने का वादा भी किया है। इसके अलावा कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना का ऐलान कांग्रेस पहले भी कर चुकी है। बिजली का बिल भी आधा करने का वादा हो ही चुका है। किसानों के लिए भी प्रतिबद्धता कांग्रेस पहले से जताती आ रही है। शायद यही घोषणाएं कांग्रेस को ये अहसास दिला रही हैं कि जिस शिवराज को वो घोषणावीर कहते हैं, उनसे बाजी मार पाना पार्टी के लिए आसान होगा।
कांग्रेस क्या जनता में यकीन जगा सकेगी
कांग्रेस के तरकश में जितने तीर हैं वो शायद खत्म हो चुके हैं। क्योंकि घोषणा का मैदान अब वीरान पड़ा है। बस एक तीर और है जिसे चलाकर शिवराज सिंह चौहान जब चाहें तब बाजी अपने नाम कर सकते हैं। पुरानी पेंशन योजना को लागू कर पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है, लेकिन गैस सिलेंडर की कीमत कम कर शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस की इस चाल की भी काट निकाल सकते हैं। फिलहाल ये समझ लेना जरूरी है कि इन घोषणाओं से क्या वाकई फायदा होने वाला है। जमीनी स्तर पर जो एंटीइंकंबेंसी है, क्या वो घोषणाओं से दूर हो जाएगी। और, कांग्रेस जो साबित कर चुकी है कि उसकी पकड़ कमजोर है, क्या वो जनता में यकीन जगा सकेगी।
कमलनाथ हर जगह मिस्टर राइट ही साबित हुए
शिवराज ने जब से सूबे की कमान संभाली है, तब से खुद को विजयी रथ पर सवार ही देखा है। प्रदेश में उनका एक छत्र राज रहा और उनकी शैली रंग जमाती रही, लेकिन 2018 में ये सारे भ्रम दूर हो गए। कमलनाथ भी कांग्रेस में रहते हुए कभी किसी मोर्चे पर फेल नहीं हुए। इंदिरा गांधी की मौत के बाद पार्टी को संभालना हो या केंद्र की सत्ता में रहते हुए अहम फैसले करने हों कमलनाथ हर जगह मिस्टर राइट ही साबित हुए, लेकिन सीएम बनते ही अपने ही दल के नेताओं को समझने में रॉन्ग हो गए।
देखना दिलचस्प होगा कि ईगो की लड़ाई में किसे शांति मिलती है किसे जलन
अब इन दोनों नेताओं की सियासी कसक घोषणाओं के रूप में बाहर आ रही है। चुनाव से पहले घोषणाओं की बंदर बांट जारी है। वैसे बंदर बांट में फायदा बंदर का ही होता है जिसकी जगह फिलहाल जनता है और बिल्लियां हर कदम उठाने से पहले एक दूसरे का मुंह ताक रही हैं। चुनाव तक तो जनता बंदर बनकर मजे ले ही सकती है। क्योंकि नतीजे आते ही बिल्ली बिल्ली नहीं रहेगी। बल्कि, मदारी बन चुकी होगी। जिसकी आवाज पर बंदर के पास नाचने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा होगा। अब देखना ये है कि अपने लिए किस बिल्ली को ये जनता मदारी बनने का मौका देती है। ईगो की लड़ाई में किसे शांति मिलती है और किसे जलन।