अरुण तिवारी, BHOPAL. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पुत्री वीणा सिंह भी राजनीति के गलियारों में दिखाई देंगी। 'द सूत्र' से बातचीत में वीणा सिंह ने साफ कहा कि जल्दी हो या देर से हो, लेकिन वे हमेशा कांग्रेस से जुड़ी रही हैं इसलिए कांग्रेस से ही राजनीति करेंगी। अभी वे समाज सेवा के जरिए लोगों के बीच रहती हैं और उनकी मदद करती हैं। वीणा सिंह अपनी मां सरोज सिंह की किताब के बारे में जानकारी देने के लिए मीडिया से रूबरू हुई थीं। मंच पर कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह, राजीव सिंह और सैम वर्मा थे, लेकिन अजय सिंह नजर नहीं आए। वीणा सिंह ने कहा कि उनके भाई अजय सिंह से उनके कोई मतभेद नहीं हैं। उनको बुलाया गया था, लेकिन उनका पहले से ही कहीं कार्यक्रम था। वे किताब के विमोचन पर जरूर आएंगे। मां सरोज सिंह की किताब विंध्य की बेटी-मुहावरों से झलकती ममता का विमोचन 12 अगस्त को रविंद्र भवन में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ करेंगे।
किताब में होंगे अर्जुन सिंह के कई अनसुने किस्से
वीणा सिंह ने कहा कि मां सरोज सिंह की इस किताब में पिता अर्जुन सिंह से जुड़े कई राजनीतिक किस्से सामने आएंगे। ये ऐसे किस्से हैं जो अनुसुने और अनकहे हैं। वीणा सिंह कहती हैं कि इस किताब में एक प्रसंग है जिसमें जनता पार्टी के नेता ने मां से कहा कि वे अर्जुन सिंह से जनता पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव रखें। इस पर उन्होंने कहा कि अर्जुन सिंह का कांग्रेस छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता। यदि अर्जुन सिंह कांग्रेस छोड़ेंगे तो मैं उन्हें छोड़ दूंगी। जनता पार्टी के नेता ने कहा कि मैं तो मजाक कर रहा था।
बुच साहब ने रखा मां के नाम पर बिट्टन मार्केट का नाम
वीणा सिंह ने बिट्टन मार्केट के नाम की कहानी भी सुनाई। उन्होंने कहा कि वे भोपाल में बुच साहब की पड़ोसी थी। एक बार मेरे नानाजी आए उन्होंने मां का नाम पुकारते समय बिट्टन कहा। मेरे ननिहाल में सब मां को घर के नाम बिट्टन से ही पुकारते थे। बुच साहब ने सुना तो पूछा कि बिट्टन कौन है, तो हमने कहा मां का घर का नाम है। तब उन्होंने कहा कि अब भोपाल में नए मार्केट का नाम बिट्टन मार्केट हो गया। अब लोगों ने नाम बिगाड़ दिया है लोग अब उसे बिट्ठल मार्केट कहने लगे हैं।
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बचपन में बर्मा से भारत पैदल ही आ गईं
वीणा सिंह ने कहा कि उनकी मां बड़ी संघर्षशील महिला थीं। उनका 13 साल की उम्र में विवाह हो गया था। वे छह साल की उम्र में सेकंड वर्ल्ड वॉर के समय पैदल बर्मा से भारत आईं थीं। वे हमेशा मुहावरों का प्रयोग करती थीं। उन मुहावरों और किस्सों को डायरी में लिखती थीं। इसी डायरी से इस किताब की रचना हो पाई है। वीणा ने कहा कि पिता की बहुत अच्छी अंग्रेजी थी और मां की बहुत अच्छी हिंदी। पिता की अंग्रेजी के लेखों को वे ही हिंदी में ट्रांसलेट करती थीं।