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Ashoknagar. देश के कई राज्यों के मंदिर अपने यहां आने वाले भक्तों के लिए ड्रेस कोड लागू कर चुके हैं। वहीं अब मध्यप्रदेश के अशोकनगर में एक मंदिर समिति ने लोगों की धार्मिक भावनाओं और अवांछित हरकतों को देखते हुए मंदिर में दर्शन के लिए ड्रेस कोड की शर्त रख दी है। मंदिर समिति ने मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगवाया है, जिसमें भक्तों से मंदिर में हाफ पेंट, कैपरी या लोअर पहनकर न आने कहा गया है। इस बोर्ड में महिलाओं से मंदिर में सिर ढंककर प्रवेश करने भी कहा गया है।
200 साल पुराना है तार वाले बालाजी का मंदिर
अशोकनगर का तार वाले बालाजी का मंदिर करीब 2 सौ साल पुराना है। यहां मंगलवार और शनिवार को भक्तों का तांता लगा रहता है। बीते कुछ दिनों से यहां लगने वाली शोहदों की भीड़ को देखते हुए मंदिर समिति ने यह निर्णय लिया है। वहीं मंदिर समिति की बैठक के कुछ दिन पहले ही यहां एक प्रेमी जोड़े को मंदिर के एकांत वाले हिस्से में आपत्तिजनक हालत में पकड़ा गया था। जिसके बाद मंदिर समिति ने यह कदम उठाया है।
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बताया गया कि कुछ दिनों से देखा जा रहा था कि मंदिर में लड़कियां छोटे या अमर्यादित कपड़े पहनकर आ रही हैं। इस कारण आवारा किस्म के लड़कों की संख्या भी यहां बढ़ने लगी थी। वे मंदिर के आसपास मंडराते हुए नजर आ जाते थे। मंदिर के एक हिस्से में कुछ लोग एकांत पाकर समय बिताने लगे थे। ऐसे में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही थी। बैठक से एक-दो दिन पहले ही लड़के-लड़की यहां गलत काम करने की कोशिश करते पकड़ाए थे। यह बात संज्ञान में आने के बाद सर्व समाज की बैठक हुई। इसके बाद यह निर्णय लिया गया।
सर्व समाज की बैठक में हुआ फैसला
26 मई को श्री कृष्ण संस्थान सनातन धर्म से जुड़े सभी समाजों के अध्यक्षों की बैठक हुई थी। इस बैठक में समाज के उत्थान के लिए कई बिंदुओं पर चर्चा हुई। इसी दौरान तार वाले बालाजी मंदिर में भी मर्यादित कपड़े पहनकर आने को लेकर एक सवाल उठा। इस पर सभी ने सहमति बनाई कि वहां मर्यादित कपड़े पहनकर आने के लिए एक बोर्ड लगाया जाए। इसके बाद यह बोर्ड मंदिर के बाहर लगा दिया गया। बैठक में शामिल रहे केपी यादव सेमरा ने बताया कि उस बैठक में सभी समाज के लोग थे और सभी की सहमति से यह तय किया गया था। इसका असर भी देखा गया है। वहां पर अब लोग इस तरह के कपड़े पहनकर नहीं जा रहे हैं।
इधर मंदिर समिति के इस फैसले पर विधायक जजपाल सिंह जज्जी का कहना है कि माताएं बहनें क्या पहने, क्या नहीं पहनें, यह वे खुद तय करें। जहां तक मंदिर का सवाल है तो यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र है। हमारी अपनी एक परंपरा है जैसे, गुरुद्वारे में सिर ढंककर जाना होता है। इस पर अगर कोई आपत्ति करे, तो मैं समझता हूं, यह व्यावहारिक नहीं है।