संजय गुप्ता, INDORE. पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ईवीएम फिर एक बार कठघरे में हैं। कांग्रेस की ओर से लगातार ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं। यह आरोप नए नहीं है, साल 2009 में बीजेपी ने तो साल 2017 में आप भी ईवीएम को घेर चुकी है। लेकिन हर स्तर की जांच और कोर्ट के आदेशों में ईवीएम बाइज्जत बरी हो चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि ईवीएम में असल मतदान से पहले तीन बार वोटिंग होती है, कभी भी इस दौरान कोई शिकायत नहीं हुई है। इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी जरूर ईवीएम पर गगरी फोड़ रहे हैं लेकिन प्रशासन के पास ईवीएम को लेकर चुनाव के दौरान और पूर्व कोई शिकायत नहीं हुई है।
मतदान के पहले तीन बार होती है ईवीएम में इस तरह वोटिंग
1- फर्स्ट लेवल चेकिंग- यह चुनाव की तैयारियों के दौरान करीब दो पहले होती है। इसमें जितने बूथ होते हैं, उससे 25 फीसदी ज्यादा कंट्रोल यूनिट और 35 फीसदी ज्यादा वीवीपैट ली जाती है। इंदौर में 2561 बूथ थे, यानी 3201 कंट्रोल यूनिट और करीब 3430 वीवीपैट को चुनाव के लिए तैयार करने के लिए फर्स्ट लेवल चेकिंग के लिए रखा गया। इसमें हर मशीन के एक-एक वोटिंग बटन (जो 16 होते है) को चार बार दबाया जाता है यानि हर मशीन में 64 बार बटन दबाकर देखा जाता है। इस चेकिंग के बाद फिर क्रास चेकिंग शुरू होती है। इसके तहत नियमानुसार 5 फीसदी मशीन को लिया जाता है। इसमें दो फीसदी मशीन में 500-500 वोट डालकर देखे जाते हैं, दो फीसदी में एक-एक हजार वोट और एक फीसदी में 1200 वोट डालकर क्रास चेक किया जाता है। इन डाले गए वोट को वीवीपैट से मिलान होता है। यह सभी प्रक्रिया वीडियो रिकार्डिंग होती है और साथ ही सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में होती है। इसकी पहले से सूचना दी जाती है।
2- कमीशनिंग प्रक्रिया भी है पुख्ता- इसके बाद अगली वोटिंग प्रक्रिया, चुनाव में लडने वाले उम्मीदवार तय होने के बाद होती है। यह कमीशनिंग कहलाती है। इसमें मशीन में मतपत्र लगाया जाता है जो भी चुनाव के उम्मीदवार होते हैं, उनके। इसके बाद राजनीतिक दलों के अभ्यर्थियों और उनके प्रतिनिधियों से ही कहा जाता है कि वह पांच फीसदी मशीन चुन लें। वह जिस मशीन को कहते हैं वह उठाकर वोट डालकर चेक की जाती है। पांच फीसदी मशीन में एक-एक हजार वोट डाले जाते हैं। बाद में वीवीपैट से इसका मिलान होता है। इस प्रक्रिया में भी पूरे चुनाव में इंदौर और मप्र में कहीं कोई शिकायत नहीं हुई।
3- मॉकपोल- यह प्रक्रिया चुनाव में मतदान के पहले हर बूथ पर होती है। इसमें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से ही कहा जाता है, वह कम से कम 50 वोट डालकर देख लें। मॉकपोल की प्रक्रिया होने के बाद सभी मत को जीरो किया जाता है और वीवीपैट में आए कटकर गिरे मत को हटाकर लिफाफे में पैक कर लिया जाता है। इसके बाद सही समय पर वोटिंग शुरू हो जाती है।
दो बार हुआ ईवीएम को चैलेंज, नहीं कर पाया कोई साबित
साल 2009 में ईवीएम को बीजेपी द्वारा कठघरे में लाया गया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। इसके बाद 2017 में हुए पांच राज्यों के चुनाव में जब पंजाब में कांग्रेस हारी तो फिर जमकर हंगामा हुआ। इसके बाद आयोग ने भी खुला चैलेंज दे दिया। कि वह किसी भी राज्य में जाकर स्ट्रांग रूम से ईवीएम ले आए और चेक करा ले, ईवीएम को हैक करके बता दे। लेकिन कोई सामने नहीं आया और फिर आरोप हवा-हवाई साबित हुए। महाराष्ट्र में भी इसे लेकर याचिका लगी, इस पर फारेंसिंक लैब में जांच कराने के आदेश महाराष्ट्र कोर्ट ने दिए, लैब की रिपोर्ट में आया कि इसमें छेडछाड़ संभव नहीं है। वहीं उत्तराखंड कोर्ट ने तो यह सख्त आदेश दिया कि बेवजह ईवीएम पर आरोप लगाने पर छह माह की सजा दी जाएगी।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत बोले- ईवीएम वही बताती है जो मतदाता करते हैं
इस संबंध में द सूत्र ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत से भी सीधी बात की। उन्होंने कहा कि ईवीएम हर बार, हर चुनौती में सौ फीसदी सही साबित हुई है। ओपन चैलेंज तक आयोग ने दिया था लेकिन कुछ नहीं हुआ, कोई इसमें गड़बड़ी साबित नहीं कर सका। चेक एंड बैलेंस की फिर भी आयोग ने बेहतर व्यवस्था की हुई है चाहे फर्स्ट लेवल चेकिंग हो, कमीशनिंग, मॉकपोल हो या फिर अभ्यर्थी द्वारा आपत्ति लिए जाने पर हर पोलिंग बूथ पर वीवीपेट से क्रास चेक करने की व्यवस्था हो। लोकतंत्र में मतदाता ही सबसे बड़ा होता है और ईवीएम वही बताती है जो मतदाता ने किया होता है। यदि ऐसा नहीं होता फिर एक उम्मीदवार 50 वोट से जीत रहा है तो कोई एक लाख से, किसी राज्य में कोई दल जीत रहा है तो फिर कहीं कोई और दल, यह कैसे संभव होता? भारतीय सांख्यिकी विभाग ने कहा था कि हम देश भर के पोलिंग बूथ में से केवल 479 पर ही वीवीपैट देख लें तो 99.99 फीसदी रिजल्ट सही होगा, लेकिन आयोग ने दस गुना चुना 4300 की व्यवस्था की लेकिन फिर इसे हर विधानसभा वार पांच पोलिंग बूथ कर दिया गया। यह वीवीपैट भी राजनीतिक दल अभ्यर्थी ही चुनते हैं कि किस बूथ की वीवीपैट की क्रास चेक करना है। इतनी पारदर्शी व्यवस्था कहीं नहीं हो सकती है।