Raipur. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के शासकीय निवास पर आयोजित कैबिनेट की बैठक में आरक्षण के मसले पर एक अहम फ़ैसले को भूपेश सरकार ने मंज़ूरी दे दी है। भूपेश बघेल कैबिनेट ने पूर्ववर्ती डॉ रमन सिंह सरकार के द्वारा तय वह 58 फ़ीसदी आरक्षण नीति जिसे तात्कालिक भर्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मान्य किया था, उसे कैबिनेट ने शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए भी मान्य किया है।
क्या है सरकार का प्रस्ताव
कैबिनेट बैठक में भूपेश सरकार ने फ़ैसला किया है कि
“राज्य के शैक्षणिक संस्थाओं में पूर्व प्रचलित आरक्षण व्यवस्था के अन्तर्गत प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण करने का निर्णय लिया गया है।माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली द्वारा राज्य शासन की ओर से दायर एसएलपी में पारित अंतरिम आदेश दिनांक एक मई 2023 के अंतर्गत राज्य में पूर्व प्रचलित आरक्षण व्यवस्था अनुसार नियुक्ति / चयन प्रक्रियाओं को जारी रखने हेतु अंतरिम राहत प्रदान की गई है। इस अंतरिम आदेश के अनुरूप ही, अंतरिम तौर पर, मंत्रिपरिषद की बैठक में राज्य की शैक्षणिक संस्थाओं में भी प्रवेश प्रक्रिया पूर्व प्रचलित आरक्षण व्यवस्था अंतर्गत करने का निर्णय लिया गया है।
क्या है आरक्षण मसला
छत्तीसगढ़ में आरक्षण को लेकर विधिक मसले हैं। 2012 में डॉ रमन सिंह सरकार ने आरक्षण का स्वरुप बदला था। इसके तहत अजा (SC) का आरक्षण 12 फ़ीसदी,अजजा ( ST ) का आरक्षण 32 फ़ीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14 फ़ीसदी कर दिया था। इससे आरक्षण 58 फ़ीसदी हो गया।इस मसले पर क़रीब दस साल तक क़ानूनी लड़ाई लड़ी गई और हाईकोर्ट ने 58 फ़ीसदी आरक्षण के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया। लेकिन जबकि यह मसला सुप्रीम कोर्ट गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे कुछ शर्तों पर स्वीकार किया। लेकिन इसके पहले भूपेश बघेल सरकार ने एक और आरक्षण बिल पेश कर दिया। इस आरक्षण संशोधन बिल को विधानसभा में 2 दिसंबर को मंज़ूरी दी गई।इसमें अजजा वर्ग को (ST) को 32 फ़ीसदी,ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी और अजा वर्ग (SC )के लिए 13 फ़ीसदी और आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण को मंज़ूरी दी गई।इससे आरक्षण का प्रतिशत 76 फ़ीसदी हो गया। राजभवन में इस विधेयक पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।
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राजभवन ने उठाए थे विधिक प्रश्न
राजभवन ने इस पर कई विधिक प्रश्न खड़े किए हैं।तत्कालीन राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उईके ने इस मसले पर दो टूक सवाल किया था
“जब 58 फ़ीसदी आरक्षण को कोर्ट ने मंज़ूरी नहीं दी तो 76 फ़ीसदी को मंज़ूरी कैसे मिलेगी। यदि यह मसला कोर्ट गया जो कि जाएगा ही तो सरकार यह बताए कि उसके पास क्या विधिक जवाब है।”
क्यों लाया गया था संशोधन बिल
जब कि हाईकोर्ट ने 58 फ़ीसदी आरक्षण को समाप्त किया तो यह चर्चाएँ थीं कि, राज्य की राजनीति और संख्या बल में बेहद प्रभावी आदिवासी समुदाय का आरक्षण 32 फ़ीसदी किया जाए और केवल इस आशय का प्रस्ताव पास कर विधेयक का रुप दे दिया जाए। लेकिन सीएम भूपेश बघेल ने जो नया बिल पेश किया उसमें आदिवासी वर्ग की हिस्सेदारी 32 फ़ीसदी की गई लेकिन पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 27 प्रतिशत कर दिया और अजा वर्ग का आरक्षण 13 फ़ीसदी कर दिया। सीएम भूपेश बघेल के इस नए आरक्षण संशोधन को बहुमत की वजह से विधानसभा से मंज़ूरी मिल गई लेकिन विपक्ष ने इसे लेकर कई सवाल खड़े किए थे और इसके लिए आधार माँगा था जो सदन में पेश नहीं किए गए।
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सीएम भूपेश पर उठ रहे थे सवाल
जबकि सीएम भूपेश बघेल का नया संशोधित आरक्षण विधेयक क़ानूनी पेचीदगियों की वजह से राजभवन में अटक गया तब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चाएँ ज़ोरों पर हुईं कि, यदि यह आरक्षण संशोधन विधेयक को राजभवन से मंज़ूरी मिलती और यह कानून बन जाता तो सीएम भूपेश खुद को पिछड़ा वर्ग का निर्विवाद नेता स्थापित कर जाते लेकिन इस फेर में में सीएम भूपेश खुद को राजनीतिक चक्रव्यूह में उलझा गए हैं।
क्यों पड़ी इस कैबिनेट प्रस्ताव की जरुरत
इस कैबिनेट प्रस्ताव की जरुरत विशुद्ध सियासती है। आरक्षण मसले पर गतिरोध ने पहले से नाराज़ आदिवासी समाज को लामबंद कर दिया है। सर्व आदिवासी समाज प्रदेश की पचास सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। प्रदेश की 29 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। यह नाराज़गी यदि वोट में बदल गई तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें तय हैं।इस कैबिनेट फ़ैसले से अभी शैक्षणिक संस्थानों के दाख़िले में आदिवासी वर्ग को 32 फ़ीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा।
क्या स्थाई है समाधान या उलझेगा मसला
विधि विशेषज्ञों की राय है कि यह फ़ैसला तात्कालिक है। लेकिन इससे समाधान ठोस नहीं होगा, बल्कि उलझ सकता है। विधि विशेषज्ञों की राय यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति विशेष पर 58 फ़ीसदी को मंज़ूरी दी थी। यह नहीं कहा था कि पचास फ़ीसदी से उपर आरक्षण को मंज़ूरी दी जाती है। इसलिए यह मसला फिर उलझ सकता है।