सिलिकोसिस मरीजों के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा, फर्जी एक्सरे रिपोर्ट लगा कर 12 करोड़ से ज्यादा का भुगतान, AI से पकड़ में आया मामला

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BP Shrivastava
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सिलिकोसिस मरीजों के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा, फर्जी एक्सरे रिपोर्ट लगा कर 12 करोड़ से ज्यादा का भुगतान, AI से पकड़ में आया मामला

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में घोटाले करने वालों ने खनन श्रमिकों को होने वाली जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस को अपनी काली कमाई का जरिया बना लिया। अकेले दौसा जिले में 413 ऐसे मामले सामने आए, जहां सिलिकोसिस बीमारी के फर्जी एक्सरे लगा कर 12 करोड़ से ज्यादा का भुगतान उठा लिया गया। इस घोटाले को पकड़ने में आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI) की तकनीक ने अहम भूमिका निभाई। पहली बार वहां से पता लगा, उसके बाद जब जांच आगे बढ़ी तो सामने आया कि मामला काफी बड़ा है।

राजस्थान में करीब 33000 खानें हैं जिनमें लगभग 30 लाख श्रमिक काम कर रहे हैं। इन खनन श्रमिकों में सिलिकोसिस की बीमारी होती है। जिसमें इनके फेफड़ों में डस्ट जमा हो जाती है और एक समय बाद यह श्रमिक काम करने की स्थिति में नहीं रह जाते हैं।

सरकार देती है सहयाता राशि

राजस्थान में सिलिकोसिस रोग के प्रमाणीकरण पर रोगी को 3 लाख रुपए मिलते हैं। सिलिकोसिस रोगी की मृत्यु के उपरांत अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपए एवं परिवारजनों को 2 लाख रुपए देय हैं। सिलिकोसिस पीड़ित को पेंशन 1,500 रुपए प्रतिमाह का प्रावधान है। सिलिकोसिस विधवा पेंशन के अंतर्गत 55 वर्ष की आयु तक 500 रुपए प्रतिमाह, 55 वर्ष से 60 वर्ष की आयु तक 750 रुपए प्रतिमाह, 60 वर्ष से 75 वर्ष की आयु तक 1,000 रुपए प्रतिमाह और 75 वर्ष से अधिक आयु पर 1,500 रुपए प्रतिमाह देय हैं।

इस राशि के लिए ही किया जाता है फर्जीवाड़ा

सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि के लिए ही फर्जीवाड़ा किया जाता है। इस काम में ई-मित्र संचालक और डॉक्टर तक शामिल रहते हैं। राजस्थान के दौसा जिले में जो मामला सामने आया है। उसमें जांच के बाद दौसा जिले के सिलिकोसिस बोर्ड के सदस्यों और रेडियोग्राफर्स की सिलिकोसिस प्रमाणीकरण में गंभीर अनियमितता सामने आई है। इन्होंने सिलिकोसिस बीमारी के नाम पर 413 लोगों के फर्जी एक्सरे लगाए और 12.39 करोड़ रुपए उठा लिए। इसके बाद बाकी फर्जी लोगों को अनुदान देने से रोक दिया।

जांच में नहीं निकली सिलिकोसिस बीमारी

दौसा जिले में सिलिकोसिस के बीमारों को अनुदान देने में घपले की शिकायत के बाद सवाई मानसिंह अस्पताल की तरफ से गठित तीन सदस्यीय डॉक्टरों की जांच कमेटी बनाई गई। जांच कमेटी ने मामले में हर एक पहलू की जांच की तो पता चला कि अनुदान लेने वालों को सिलिकोसिस की न तो बीमारी थी और न ही लक्षण थे। यह बात उजागर होने के बाद अन्य लोगों के भी अनुदान को रोक दिया गया।

यह होती है प्रक्रिया

सिलिकोसिस मरीज के प्रमाणीकरण के लिए राजस्थान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में एक ऑटो अप्रूवल पोर्टल बना रखा है। ई-मित्र संचालकों के माध्यम से इस पर रजिस्टर किया जा सकता है। रजिस्ट्रेशन के बाद डॉक्टर की जांच और एक्सरे होता है और जिले का सिलिकोसिस बोर्ड के अप्रूवल के बाद मरीज को सरकार का अनुदान मिलना शुरू हो जाता है।

ऐसे आया पकड़ में

सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग ने सिलिकोसिस मरीजों को सहायता देने के लिए जो पोर्टल विकसित किया हुआ है। उसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ( AI) के माध्यम से इस तरह की व्यवस्था भी है कि जो x-ray अपलोड किए जाते हैं उन्हें यह रीड कर लेता है और यह बता देता है कि जो xray अपलोड किया गया है वह सिलिकोसिस मरीज का है या नहीं। विभाग के प्रमुख सचिव समित शर्मा ने बताया कि इस सिस्टम ने लगभग 37000 चेस्ट एक्स-रे रीड किए हैं और इसके बाद अब यह लगभग बिलकुल सही परिणाम दे देता है।

गड़बड़झाले में डॉक्टर्स भी शामिल

दौसा वाला मामला भी ऐसे ही पकड़ में आया। जब सिस्टम ने इन एक्सरे में गड़बड़ पाई तो सवाई मानसिंह अस्पताल के तीन डॉक्टर्स का जांच दल बना कर दौसा जिले 2464 सिलिकोसिस मामलों की जांच कराई गई। दल ने गहनता से जांच की तो 413 एक्सरे फर्जी पाए गए। इसमें रेडियोलॉजिस्ट, रेडियोग्राफर और सिकिकोसिस बोर्ड के डॉक्टर्स की मिलीभगत सामने आई। जांच रिपोर्ट चिकित्सा विभाग को आगे की कारवाई के लिए भेजी गई है।

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