BHOPAL. बीजेपी लोकसभा महासंग्राम की तैयारी में जुट गई है। हर प्रदेश की मध्यप्रदेश में भी पार्टी नई गाइडलाइन के तहत टिकट बांटने वाली है। इसके लिए फरवरी में केंद्रीय चुनाव समिति की अहम बैठक होगी। जिसमें कैंडिडेट्स के नामों को अंतिम रूप दिया जा सकता है।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि जो नेता नेता तीन या उससे ज्यादा बार सांसद रह चुके हैं, उन्हें इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके साथ ही उन सांसदों का टिकट भी काटा जा सकता है, जिनका परफॉर्मेंस कमजोर है। सूत्रों बताते हैं कि उम्मीदवार के चयन के लिए जो क्राइटेरिया बनाया है, उसके मुताबिक पार्टी नेतृत्व वर्तमान 11 सांसदों का टिकट काट सकती है। इनमें से पांच सांसद, विधायक बन चुके हैं। ऐसे में बीजेपी आगामी आम चुनाव में 16 नए चेहरे मैदान में उतार सकती है।
इसके लिए विधानसभा चुनाव की तर्ज पर बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट फरवरी में ही जारी कर सकती है। उन सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान हो सकता है, जो कमजोर है या फिर हारी हुई सीट है।
लोकसभा की 10 सीटों पर विधानसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन
जानकारी के अनुसार बीजेपी की लोकसभा चुनाव को लेकर हुई बैठक में वे सीटें सबसे ज्यादा चर्चा में रहीं, जहां बीजेपी का विधानसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन रहा है। पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया था। इनमें से 5 सीटों पर सफलता मिली जबकि सतना सांसद गणेश सिंह और मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते चुनाव हार गए। 29 में से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से कम वोट मिले। इसमें से 5 सीटों को डेंजर जोन में रखा गया है। जबकि अन्य 5 सीटें मौजूदा सांसदों के लिए खतरे की घंटी हैं।
बीजेपी को आज की स्थिति में 4 लोकसभा सीटों का नुकसान
विधानसभा चुनाव में पार्टी के परफॉर्मेंस के मुताबिक आज की स्थिति में बीजेपी को चार लोकसभा सीटों का नुकसान हो रहा है। इनमें तीन पर बीजेपी के मौजूदा सांसद हैं। एक कांग्रेस के पास है और एक पर बीजेपी के नरेंद्र सिंह तोमर इस्तीफा दे चुके हैं। इसके अलावा पांच और सीटों पर बीजेपी की बढ़त लोकसभा की तुलना में कम हुई हैं। ये सीटें ग्वालियर-चंबल, महाकौशल और मालवा अंचल की हैं।
छिंदवाड़ा: सभी सातों विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले अपने वोट में 91 हजार से ज्यादा की बढ़ोतरी की है।
मुरैना: विधानसभा चुनाव में बीजेपी श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, मुरैना और अंबाह में हार गई। लोकसभा की तुलना में वोट शेयर 9 फीसदी घटा है।
भिंड: पिछले चुनाव में यहां की सभी 8 विधानसभाओं में बीजेपी को बढ़त मिली थी। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ 4 ही सीट जीत पाई है।
ग्वालियर: विधानसभा चुनाव में बीजेपी 6 में से 2 सीटें हार गई है। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 6 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी।
मंडला: इस लोकसभा की 5 विधानसभा सीटों में पार्टी की हार हुई है। जबकि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 6 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी।
टीकमगढ़: बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव में 3 लाख 48 हजार वोट की लीड थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में 75,353 वोट रह गई।
बालाघाट: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से 2 लाख 42 हजार वोट अधिक मिले थे, लेकिन विधानसभा में अंतर घटकर 3,506 रह गया।
धार: बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 1 लाख 56 हजार हजार वोट की लीड मिली थी। जबकि विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से मात्र 4 हजार रह गई।
खरगौन: 2019 में इस संसदीय क्षेत्र में बीजेपी को 2 लाख 2 हजार वोट से जीत मिली थी। जबकि विधानसभा चुनाव में यह 1548 वोट रह गई।
रतलाम: बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस संसदीय क्षेत्र से विधानसभा चुनाव में 67 हजार वोट कम मिले।
11 सांसदों का परफॉर्मेंस कमजोर
जानकारों का कहना है कि मप्र विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी पुराने चेहरों को उतारने से परहेज करेगी। पार्टी की रणनीति के अनुसार जो नेता तीन या उससे अधिक बार सांसद रह चुके हैं, उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके साथ ही उन सांसदों के टिकट पर भी तलवार लटकी है, जिनका प्रदर्शन कमजोर है।
संघ से जुड़े युवाओं को मिल सकता है मौका
जानकारों का कहना है कि जिन सीटों पर मौजूदा उम्मीदवार बदले जा सकते हैं, वहां पार्टी ऐसे नए चेहरे, खास तौर से उन युवाओं को चुनाव मैदान में उतार सकती है, जो संघ की विचारधारा से जुड़े हैं। दरअसल, पार्टी युवा और नए चेहरे मैदान में उतारकर विधानसभा चुनाव की तरह पीढ़ी परिवर्तन का संदेश देना चाहती है।
पहली सूची में छिंदवाड़ा से उम्मीदवार होगा घोषित !
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मप्र की 29 सीटों में से 28 सीटें हासिल की थीं। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर उसे हार मिली थी। छिंदवाड़ा ऐसी सीट है जहां बीजेपी को लंबे समय से जीत नहीं मिली है। 1997 में छिंदवाड़ा सीट पर हुए उपचुनाव में प्रदेश के पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा ने जीत दर्ज करवाई थी। इसके अगले ही साल 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कमलनाथ ने ये सीट छीन ली। इस बार इस सीट को जीतने के लिए पार्टी काफी पहले से तैयारियां शुरू करने के मूड में है।
पहले टिकट देने का विधानसभा में मिला फायदा
विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जिन हारी हुई सीटों पर चुनाव से काफी पहले प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया था, वहां पार्टी की कामयाबी का प्रतिशत 61% रहा है। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा 8 अक्टूबर को हुई थी। जबकि पार्टी ने 39 सीटों पर उम्मीदवार की पहली सूची 17 अगस्त को जारी कर दी थी। ये वो सीटें थी, जहां बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार 39 में से 24 सीटें बीजेपी ने जीत ली।
सूत्रों बताते हैं विधानसभा की इस सफलता को पार्टी लोकसभा में दोहराना चाहती है। उम्मीदवार का नाम चुनाव से पहले घोषित करने से न केवल पार्टी को फायदा मिला, बल्कि कमजोर सीटों पर उम्मीदवार को अपना फोकस बढ़ाने का भी मौका मिला।
शिवराज, नरोत्तम और भागर्व समेत बड़े नेताओं को मिल सकता है टिकट
पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक 2024 का चुनाव बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी। इसके अलावा पार्टी कई प्रयोग भी करने जा रही है। पार्टी चुनावी मैदान में बड़े नेताओं को उतार सकती है। इस फेहरिस्त में कई राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यसभा के लिए चुने गए सांसद भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश से पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया जा सकता है।
शिवराज सिंह चौहान को विदिशा या भोपाल लोकसभा सीट से टिकट दिया जा सकता है। ऐसा ही प्रयोग बीजेपी महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में भी करने की तैयारी में है।
मौजूदा केंद्रीय मंत्रियों को भी मिल सकता है टिकट
2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसे मंत्रियों को भी टिकट दिया जा सकता है, जो फिलहाल राज्यसभा में हैं। इसके संकेत पीएम नरेंद्र मोदी ने संसदीय दल की बैठक में दे दिए थे। ऐसे में मप्र से राज्यसभा पहुंचे मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को उनके गृह राज्य ओडिशा से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर या गुना-शिवपुरी सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
यहां बता दें कि धर्मेंद्र प्रधान का कार्यकाल 2 अप्रैल को खत्म हो जाएगा। जबकि सिंधिया का कार्यकाल जून 2026 तक है।