हरीश दिवेकर @ BHOPAL.
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
आज के बोल हरि बोल की शुरुआत संस्कृत श्लोक से… वजह ही कुछ ऐसी है। इस श्लोक का अर्थ है कि कुछ हासिल करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, सिर्फ सोचने भर से कुछ नहीं होता। जैसे सोते हुए शेर के मुंह में हिरण अपने आप नहीं आ जाता, उसे दौड़- भाग से लेकर रणनीति तक पर विस्तृत कार्ययोजना और जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, तभी उसे सफलता मिलती है।
अब देखिए… लोकसभा चुनाव की सियासी जंग जीतने के लिए बीजेपी ने ऐसी ही जी तोड़ मेहनत की शुरुआत कर दी है। नेता संयमित हैं। गोपनीयता का ध्यान रखा जा रहा है। आलाकमान ने मैदान संभाल लिया है। रणनीतिक रूप से जिम्मेदारी सौंपी जाने लगी है। उधर, कांग्रेस की अभी किसी मोर्चे पर घेराबंदी नजर नहीं आती। उसे स्वामी विवेकानंद के ध्येय वाक्य 'उठो जागो और तब तक संघर्ष करते रहो, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो।' पर अक्षरश: काम करना होगा। वरना कांग्रेस छिंदवाड़ा का अपना एक मात्र गढ़ भी गवां देगी। ...तो मित्रो, मेहनत कीजिए, क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है।
खैर, दूसरी खबर यह है कि मामा फिर फॉर्म में आने के लिए सियासी दांव- पेंच आजमाने में लग गए हैं। दिल्ली की मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं। उधर डॉक्टर साहब भी अपनी 'दक्षता' दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कांग्रेस का अपना अलग दर्द है। प्रदेश में अफसरों की 'कट्टी' की चर्चा भी जोरों पर है। चलिए, आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
मैनेजमेंट हो तो बीजेपी के जैसा
कांग्रेस दफ्तर के बाहर मिले एक नेताजी यकायक सियासी बातचीत के बीच कहने लगे कि मैनेजमेंट बीजेपी जैसा होना चाहिए। वजह पूछी तो बोले, देखिए लोकसभा चुनाव की तैयारियां होने लगी हैं। प्रदेश प्रभारी और सहप्रभारी बना दिए गए हैं। मंत्रियों को सुशासन का पाठ पढ़ाया जा रहा है। एवरीथिंग इज वेल...। जब उनकी (कांग्रेस) तैयारी पूछी तो कहने लगे हम तो अभी उम्मीदवार ही खोज लें, यही बड़ी बात होगी। मोदी लहर के आगे हमें तो ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं। फिर नेताओं की लड़ाई- भिड़ाई की वीडियो और फोटो मीडिया में आने से और भी किरकिरी हो रही है। … हे राम! बड़ा दर्द है ये तो।
ACS साहब ने लगा दी क्लास
ट्रेनी आईएएस अफसरों को बड़े साहब ने टाइम मैनेजमेंट का पाठ पढ़ा डाला और वह भी गुस्से में। हुआ कुछ यूं कि आठ नए आईएएस अफसरों को एक बड़े साहब से मिलना था। टाइम 11.30 बजे का तय हुआ। युवा अफसर तनिक लेट हो गए। बात यहीं नहीं रुकी। इसी बीच एक और बड़े साहब ने उन्हें अपने पास बुला लिया। ये तब हुआ जब इन साहब को पहले से पता था कि नए अफसरों को दूसरे साहब से मिलना है। फिर क्या था, जब युवा अफसर पहले वाले साहब के पास पहुंचे तो वे भड़क गए। बोले टाइम मैनेजमेंट नहीं आता तो कभी सफल नहीं हो सकते। जाइए, यहां से। अब बेचारे जूनियर तो जूनियर, करते क्या। साहब की डांट सुनकर निकल गए।
नेताजी का जलवा जारी आहे
चंबल क्षेत्र के एक नेताजी का भौकाल जारी है। चुनाव हारने के बाद यूं तो अब इनके पास कोई महत्वपूर्ण पद नहीं है, लेकिन उनका प्रोटोकॉल अब भी पहले जैसा ही चल रहा है। साहब जहां भी जाते हैं, अपनी 'छाप' छोड़ देते हैं। बड़े नेताओं से इनकी मेल- मुलाकातों का दौर भी जारी है। दिल्ली का अपना 'नेटवर्क' भी काम आ रहा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन नेताजी का नाम पहले मुख्यमंत्री की रेस में भी था। चुनाव हारने के बाद ये शेरो- शायरी भी करने लगे थे। बढ़िया है बॉस, जलने वाले जलते रहें, आपका जलवा कायम रहे...।
बच्चों की तरह लड़ रहे आईएएस
सिंह साहब द ग्रेट आपस में लड़ लिए हैं। पूरा मामला 'दो गज' जमीन का है। दरअसल, दो आईएएस अफसरों के बंगले एक- दूसरे से सटे हुए हैं। एक सिंह साहब ने अपने बंगले के पीछे खाली पड़ी सरकारी जमीन पर स्मार्ट सिटी से सेटिंग कर पेवर ब्लॉक लगवा लिए। उन्होंने दूसरे सिंह साहब के बंगले के पीछे भी ब्लॉक लगवा दिए। मजे की बात यह है कि दूसरे साहब चले तो दीवार उठवा दी। अब पेवर ब्लॉक लगवाने वाले साहब कह रहे हैं कि काम मैंने कराया और मजे दूसरे वाले लूट लिए। इसी को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया है।
जिले के दो मुखिया कट्टी हो गए थे
उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे बुंदेलखंड के एक जिले में प्रशासन और पुलिस महकमे के मुखिया भी लड़ लिए हैं। दोनों में अबोला है। हां, मतलब दोनों बतियाते नहीं हैं। ये कट्टी एक धार्मिक आयोजन में यजमान बनने को लेकर हुई थी। इसमें पुलिस कप्तान राजा जनक की भूमिका निभाना चाहते थे, पर उन्हें जिले के प्रशासनिक मुखिया का साथ नहीं मिला। इस पर साहब गुस्सा हो गए। दोनों में लंबे समय तक कट्टी थी। अब आधी कट्टी- आधी दोस्ती हो गई है। कुछ बहुत जरूरी होता है तो दोनों कट टू कट बतिया लेते हैं। चलो अच्छा है, ये हो गया, वरना अधीनस्थ अधिकारी तो भयंकर टेंशन में चल रहे थे।
मामा और नड्डा की मुलाकात के मायने क्या...
मामा अभी दिल्ली हो आए, ये तो हुई सामान्य बात। अब खास बात यह है कि वहां उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। हालांकि दुनिया को तो उन्होंने इसे सौजन्य भेंट ही बताया, लेकिन इसके सियासी तौर पर मायने कुछ अलग हैं। सुना है कि मामा वहां कुछ अधिकारियों की पैरवी करने गए थे। उनका तर्क था कि मेरे समय में प्रमुख विभागों में पदस्थ रहे अफसरों को 'सजा' दी जा रही है। मामा की मुलाकात के बाद आई तबादला सूची में इसका पॉजिटिव असर भी दिखा। जिस अफसर को पूल में भेज दिया गया था, डॉक्टर साहब उन्हें फिर मैनस्ट्रीम में ले आए हैं। चलो अच्छा है, मामा की बात आखिर रख ली गई।
ठाकुर साहब की बोल रही तूती
मंत्रालय से हर दिन तबादलों की सूची बाहर आ रही है। यानी डॉक्टर साहब अपनी फुलप्रूफ टीम बना रहे हैं। मामा के चहेते अफसर बाहर हो रहे हैं। इसी के साथ ठाकुर साहब भी अपनी फौज बड़ी कर रहे हैं। पहले तो कोई बड़ा अधिकारी उनकी सुनता भी नहीं था, लेकिन अब पावर में आने के बाद उनकी तूती बोल रही है। दूसरी उपमा दें तो मानो अब उनकी मर्जी के बिना 'पत्ता' भी नहीं हिल सकता। पसंद के विभागों में अपनों को बैठाया जा रहा है। बधाई हो जी बधाई...।