तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर, अब बताओ कितने तीतर
हरीश दिवेकर @ BHOPAL.
तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर...अब बताओ कितने तीतर..! अपने MP में चुनाव के बाद सत्ता, संगठन और अफसरान में यही तीतर- तीतर चल रिया है। मंत्रियों की सूची में सुबह एक नया नाम सोशल मीडिया पर दौड़ता है और शाम होते- होते गायब। रोज इतने मंत्री बन रहे हैं कि गिनना मुश्किल है। डॉक्टर साहब की बड़े सियासी सर्जनों से मुलाकात हर किसी की धड़कनें बड़ा देती है। डॉक्टर साहब दिल्ली के सियासी अस्पताल से तीन बार एडवाइज ले चुके हैं। अब देखना है कि कितनों को अनार मिलेगा और कितने बीमार होंगे! फिलवक्त तो डॉक्टर साहब भी एंटीबायोटिक देकर काम चला रहे हैं।
उधर, लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर अफसरों के ऊपर अफसर बिठाए जा रहे हैं। अधीनस्थ कर्मचारी किसे खुश करें, बड़ी चिंता है। किसी को बंगला बेचैन किए जा रहा है। इसके उलट मामा एकांतवास में चले गए हैं।
इस बीच मंत्रालय से पक्की खबर यह निकली है कि इस बार बजट नहीं लेखानुदान आएगा। यानि मोहन सरकार अगले चार माह में होने वाले खर्च की व्यवस्था करेगी। मुख्य बजट जुलाई में प्रस्तावित है। देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
बिन मांगे मोती मिलें...
मोदी है तो मुमकिन है… वाली टैगलाइन मानो अब सबके सिर चढ़ गई है। भाजपा में मानो सन्नाटा सा पसरा है। दिग्गजों के कोई बयान नहीं, कोई नाराजगी की खबर नहीं, क्योंकि भाजपा आलाकमान के फैसलों के बाद सब मान बैठे हैं कि 'बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख'। बस अब क्या है, कोई अपने लिए पद नहीं मांग रहा। 'मोती' मिलने की आस में सब शांत हैं और इसी शांति में मंत्रालय से लेकर तमाम बड़े दफ्तरों में सब काम ठप सा है।
सरकार को याद दिलाते रहेंगे वादे
मामा का एकांतवास फिर चर्चा में है। सत्ता में रहते हुए वे जब भी एकांतवास में जाते थे तो लौटकर झोलीभर के नवाचार लाकर धूम मचाते थे। अब मामा की पार्टी ने उन्हें 'बेरोजगार' कर दिया है। ऐसे में वे एकांतवास से लौटकर झोले में क्या लेकर आएंगे, देखने वाली बात होगी। क्योंकि ये सब मानते हैं कि मामा चुपचाप होकर घर बैठने वालों में से नहीं हैं। हाल ही में वे कह भी चुके हैं कि सरकार को वादे याद दिलाते रहेंगे। वैसे भी मामा ने खुद को फीनिक्स पक्षी बता ही दिया है, जो राख से उठकर खड़ा हो जाता है।
भाई साहब को अब क्या मिलेगा?
बीजेपी के तीन दिग्गजों कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह का क्या होगा? ये यक्ष प्रश्न डॉक्टर साहब के मुखिया बनने के बाद से जस का तस है। क्या नेता, क्या अफसर और क्या पत्रकार… सब अपने- अपने हिसाब से गणित लगाकर इनका भविष्य देखने का प्रयास कर रहे हैं। जितनी चिंता इन तीनों को अपनी है, उससे ज्यादा इनके चाहने वालों को है। हकीकत तो ये है कि इन्हें खुद नहीं पता कि आगे की राह कैसी होगी। पार्टी का अनुशासन और उम्र के इस पड़ाव पर होने की मजबूरी है, जो हो रहा है उसे हंसते- मुस्कराते देखते रहो, रोने- गाने से कुछ होने वाला नहीं है।
बच जाए हमारा बंगला...
मोदी की सुनामी में बीजेपी एमपी में बंपर सीटें जीती, लेकिन इनमें कुछ मंत्री दुर्भाग्यशाली भी रहे, जो इस सुनामी में भी अच्छे- खासे मतों से हार गए। हार का गम कम होने के बाद अब पूर्व हो चुके मंत्री अपना बंगला बचाने में लग गए हैं। बीहड़ इलाके से आने वाले पूर्व मंत्री ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर बंगले को बनाए रखने की गुहार लगाई है। डॉक्टर साहब ने भी मरीज का मर्ज देखकर उसे ठीक करने का आश्वासन तो दिया है, लेकिन अब तक आला अफसरों को कोई संदेशा नहीं मिला। ऐसे में पूर्व मंत्री इस बात के लिए बेचैन हैं कि कहीं बंगला खाली करने का नोटिस उन्हें न मिल जाए।
जूनियर अफसर भी उम्मीद में
सूबे के मुखिया की कुर्सी पर जूनियर नेता की ताजपोशी होने के बाद जूनियर अफसरों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। उनका मानना है कि डॉक्टर साहब इस फॉर्मूले को प्रशासनिक मुखिया की कुर्सी पर लागू कर सकते हैं। इसके पीछे जूनियर अफसरों का मानना है कि डॉक्टर साहब को बेहतर तालमेल के साथ सरकार चलाने के लिए जूनियर अफसर ज्यादा मुफीद रहेंगे, सीनियर अफसर इस कुर्सी पर बैठेंगे तो डॉक्टर साहब को काम करने से ज्यादा नियम कायदे बताते रहेंगे। बहरहाल, ये भी देखना होगा कि प्रशासनिक मुखिया डॉक्टर साहब की मर्जी से बनता है या फिर वो भी दिल्ली वालों की पसंद से बनेगा।
मामा का राइट- लेफ्ट कुछ नहीं चलेगा
डॉक्टर साहब ने कुर्सी संभालते ही ये संदेशा तो दे ही दिया कि न तो मामा की बात चलेगी और न ही उनका राइट- लेफ्ट चलेगा। मामा राज में लूप लाइन में डले अफसरों को डॉक्टर साहब का ये एक्शन मोड खूब भा रहा है। अब सभी दिलजले मामा के खास लोगों की सूची बनाकर उनकी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं। अब ये भी देखने लायक होगा कि डॉक्टर साहब ने जो ट्रेलर दिखाया है, क्या पूरी फिल्म भी दिखाएंगे या फिर ट्रेलर दिखाकर ही काम चलाएंगे।
बुझे- बुझे से हैं साहब
प्रशासनिक मुखिया की दौड़ में शामिल साहब लोगों में कुछ साहब आजकल बुझे- बुझे से चल रहे हैं। न उनमें पहले जैसा तेज रहा, न वो गुर्राहट। वजह साफ है कि साहब को पता है कि उन्हें उस कुर्सी पर बैठाना तो दूर हाथ तक लगाने नहीं दिया जाएगा। तो साहब अब एडजस्टमेंट वाली पोजिशन में आ गए हैं। अब साहब दुआ कर रहे हैं कि सीनियर को ही बैठाया तो कम से कम रिटायरमेंट तो मंत्रालय से हो जाए, नहीं तो मंत्रालय के बाहर किसी छोटी- मोटी संस्था में बैठकर रिटायर होने का इंतजार करना पड़ेगा।
अफसर के दो आगे अफसर
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार ने प्रदेश के सभी 10 संभागों में अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों की तैनाती कर दी है। ऐसे ही पुलिस महकमे में भी बड़े अफसरान को जिम्मा दे दिया है। दावा किया जा रहा है कि बड़े साहब बड़े निर्णय लेकर व्यवस्थाओं को पटरी पर लाएंगे, लेकिन इनसे जिलों में इनसे 'थोड़े छोटे' अफसरों का रुतबा भी कम नहीं है। इस सर्द मौसम में शुरुआत में तो शीत युद्ध जैसे हालात भी बन सकते हैं।