संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश सिविल जज की परीक्षा के लिए उन याचिकाकर्ताओं को गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई, जो 3 साल की वकालत वाले नियमों में नहीं आ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट डबल बेंच जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल ने मध्य प्रदेश सिविल जज परीक्षा में 3 साल से कम वकालत वाले अभ्यर्थियों को परीक्षा में शामिल होने की प्रोविजनल मंजूरी दे दी है।
हाईकोर्ट से जवाब भी मांगा
अंतरिम राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही हाईकोर्ट से 3 सप्ताह में जवाब मांगा है। वहीं सशर्त मंजूरी पाए जाने वाले अभ्यर्थियों के रिजल्ट अघोषित रहेंगे। याचिकर्ताओं नेहा कोठारी और अन्य द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता और दिव्यांशु श्रीवास्तव के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें हाईकोर्ट के 13 दिसंबर को दिए गए अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई थी।
इसके पहले हाईकोर्ट ने एक बड़ी शर्त भी हटा दी है
वहीं सिविल जज की परीक्षा नियमों में एक बड़ा रोड़ा तो पहले ही हाईकोर्ट डबल बेंच हटा चुकी है। अब सिविल जज परीक्षा के लिए वे भी आवेदन कर सकेंगे, जिन्होंने 3 साल में अपने नाम से हर साल कम से कम 6 अहम आदेश कोर्ट से नहीं कराए हैं। हालांकि कोर्ट ने ये जरूर कहा है कि चयन प्रक्रिया में अभ्यर्थियों के इन अहम आदेशों का आकलन जरूर किया जाएगा। बाकी अन्य मामलों के लिए हाईकोर्ट ने पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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ये है मामला
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-2 के 61 पदों और बैकलॉग के 136 पदों के लिए 17 नवंबर को विज्ञापन जारी किया था। इसमें अभ्यर्थी के लिए एलएलबी की डिग्री की न्यूनतम डिग्री के साथ इसमें 2 अन्य शर्त भी रखी गई थी, इसमें से एक को पूरा करना जरूरी था। इसमें एक थी कि अभ्यर्थी ने एलएलबी की सभी परीक्षाएं पहले प्रयास में पास करते हुए 70 फीसदी न्यनूतम अंक लिए हो। वहीं दूसरी अर्हता थी कि 3 सालों में 3 सालों में प्रत्येक साल कम से कम 6 अहम आदेश कोर्ट से जारी करवाएं हो। अभ्यर्थी इन्हीं अर्हताओं का विरोध कर रहे थे। याचिकाकर्ता की ओर से सिद्धार्थ गुप्ता और कपिल दुग्गल द्वारा याचिका दायर की गई थी। चीफ जस्टिस रवि मलिमथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की डबल बेंच ने सुनवाई की थी।