GARIABAND. पूरी दुनिया में आज (21 जून) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में अलेख महिमा पंथ के लोग सालों से सालों से योग की एक खास परंपरा निभाते चले आ रहे हैं। अंचल में अलेख महिमा पंथ को मानने वाले 30 हजार लोग रोज सूर्योदय और सूर्यास्त के पहले नियमित रूप से मुड़िया मारते हैं। मुड़िया, सूर्य नमस्कार योग प्रक्रिया है, जिसे 7 बार यानी आधा घंटा नियमित रूप से सुबह-शाम करना होता है। पंथ के मानने वालों में महिला सदस्य भी शामिल हैं।
पंथ के प्रमुख बाबा उदय नाथ के मुताबिक, इसकी शुरुआत 1998 में 20 से 30 लोगों से हुई थी। निराकार शून्य की आराधना करने वाले यह पंथ, योग-साधना व संतुलित आहार पर केंद्रित है। पंथ में शामिल होने वाले को नशा और तामसिक भोजन त्याग करना होता है। सूर्योदय से पहले उठना और सूर्यास्त के पहले भोजन करना होता है। सुबह-शाम दोनों ही बेला में मुड़िया मारा जाता है। अलेख महिमा पंथ के अनुयायियों के लिए नियमित योग और संतुलित आहार किसी आराधना से कम नहीं है। यही वजह है कि इसके किसी भी सदस्य को शुगर, बीपी जैसी कोई बीमारी नहीं है।
मुड़िया ने लोगों को निरोगी बनाया
बाबा उदय नाथ बताते हैं- अलेख महिमा में 2004 के बाद ज्यादातर वही लोग जुड़े, जिन्हें शारीरिक कष्ट था। जुड़ने के बाद नियमों का पालन कड़ाई से करना होता है। इससे दिनचर्या में बदलाव आया, लोग स्वस्थ और निरोग होते गए। 30 हजार सदस्यों में 8 हजार महिलाएं और 4 हजार बच्चे हैं। रजिस्टर में सभी का उल्लेख है। हर हिंदू त्योहार पर गौ और पर्यावरण से जुड़े बड़े कार्यक्रम साल में 6 बार किए जाते हैं।
मुड़िया का इतिहास 100 साल से ज्यादा पुराना
योग को गांव-गांव तक पहुंचाने भले ही इसका सरकारी अभियान कुछ साल पहले शुरू किया गया हो, लेकिन अलेख महिमा पंथ को मानने वाले लोग इसकी शुरुआत 100 साल से भी पहले कर चुके थे। ओडिशा के जुरूंगा गादी नामक स्थान से भीम भोई नाम के एक महात्मा ने इसकी शुरुआत की थी। उन्हीं के शिष्य बाबा उदय नाथ काडसर के जंगल में एक कुटिया बनाकर छत्तीसगढ़ में इस पंथ का विस्तार किया। बाबा उदय नाथ गौ सेवक के रूप में विख्यात हैं। उनका आश्रम अलेख महिमा गौशाला के रूप में जाना जाता है।