जमीनों की बंदरबांट में एक और पूर्व IAS पर कोर्ट में चलेगा केस; कटनी की पूर्व कलेक्टर अंजू सिंह बघेल के खिलाफ होगा चालान पेश

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Jitendra Shrivastava
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जमीनों की बंदरबांट में एक और पूर्व IAS पर कोर्ट में चलेगा केस; कटनी की पूर्व कलेक्टर अंजू सिंह बघेल के खिलाफ होगा चालान पेश

BHOPAL. प्रदेश में आदिवासियों की जमीन अवैध तरीके से बेचे-खरीदे जाने के मामले में एक और पूर्व आईएएस अधिकारी अंजू सिंह बघेल भी कानून के फंदे में फंस गई हैं। राज्य सरकार और केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (DOPT) उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू में दर्ज दो एफआईआर में चार्जशीट पेशकर कोर्ट में केस चलाने की अनुमति दे दी है। अंजू सिंह बघेल के खिलाफ ये एफआईआर उनकी कटनी कलेक्टर के रूप में पोस्टिंग के दौरान दर्ज की गईं थीं। इनमें से एक एफआईआर एक आदिवासी किसान की जमीन गैर कानूनी रूप से खरीदने की मंजूरी देने और दूसरी कीमती सरकारी जमीन के बदले सस्ती जमीन लेने की अनुमति देने के मामले में दर्ज की गई थी। 



बेटे के नाम कराई आदिवासी की जमीन 



उल्लेखनीय है कि कटनी में कलेक्टर रहते अंजू सिंह बघेल ने एक आदिवासी की आठ एकड़ जमीन एक गैर आदिवासी व्यक्ति को बेचने की अनुमति दी थी। बाद में ये बात सामने आई कि इस जमीन की रजिस्ट्री उस व्यक्ति के नाम नहीं हुई, जिसके लिए अनुमति दी गई थी। हकीकत में इस जमीन की रजिस्ट्री अंजू सिंह बघेल के बेटे अभितेन्द्र सिंह के नाम कराई गई थी। पीड़ित आदिवासी ने 2017 में  ईओडब्ल्यू में शिकायत दर्ज कराई कि उसकी जमीन गैर कानूनी रूप से बेची गई। उसने शिकायत में आरोप लगाया कि उसे जमीन बेचने के बदले पैसा भी नहीं मिला। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने बघेल के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी।



कीमती सरकारी जमीन के बदले सस्ती जमीन 



अंजू सिंह बघेल के खिलाफ दूसरी एफआईआर सरकारी जमीन की अदला-बदली के मामले में दर्ज की गई थी।  इसमें आरोप है उन्होंने एक ठेकेदार को हाईवे के किनारे की कीमती सरकारी जमीन देकर उसके बदले में उससे सस्ती जमीन लेने की अनुमति दी। इन दोनों ही मामलों में  ईओडब्ल्यू ने उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने की अनुमित मांगी थी। इस पर बघेल ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर डीओपीटी और सरकार से अभियोजन की मंजूरी के बगैर चालान पेश करने पर सवाल उठाए थे। कोर्ट में ईओडब्ल्यू की ओर से तर्क दिया गया कि वे रिटायर हो गई हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने के लिए स्वीकृति नहीं ली गई। 



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5 साल से राज्य शासन और डीओपीटी के पास लंबित था मामला



हाई कोर्ट ने शासन से अभियोजन की स्वीकृति लेने को कहा। ईओडब्ल्यू ने 2018 में अभियोजन स्वीकृति के लिए पत्र शासन को भेजा, लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं मिली थी। यह मामला पिछले 5 साल से राज्य शासन और डीओपीटी के पास मंजूरी के लिए लंबित था। इस मामले में अब जाकर अभियोजन की मंजूरी मिली है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले जबलपुर जिले में आदिवासियों की जमीन अवैध ढंग से बेचने के आरोप में पूर्व में एडीएम के पद पर पदस्थ रहे तीन आइएएस अधिकारियों ओपी श्रीवास्तव, दीपक सिंह और बसंत कुर्रे के खिलाफ लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना को अभियोजन की मंजूरी दी है।


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