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Impact Feature
रायपुर. कभी देश में नक्सलवाद के गढ़ के रूप में बदनाम बस्तर अब विकास, विश्वास और बदलाव की इबारत लिख रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार के मजबूत संकल्प और सुरक्षा बलों के प्रयासों से शांति बहाल हो रही है। सरकार ने डेढ़ साल में ऐसा निर्णायक अभियान चलाया है कि नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
गौरतलब है कि सालों से नक्सलवाद ने विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा डाला है। पिछले चार दशकों में नक्सली हिंसा यहां फैलती गई। माओवादियों ने बंदूक की नोंक पर विकास के कामों को रोकने की कोशिश की। झूठे विचारों से भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह किया। डराया-धमकाया। बच्चों से स्कूल छीना। बचपन बर्बाद किया।
उन्हें हिंसा की राह पर धकेल दिया। कई परिवार उजड़ गए। महिलाओं की जिंदगी तबाह हो गई। बेटियों को उठा ले गए। उन्हें हिंसा में झोंक दिया। इस वजह से इतने संसाधनों वाला बस्तर देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार हो गया, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुआई वाली सरकार मजबूत इरादे से इस समस्या को जड़ से खत्म करने में जुटी है।
सीएम साय का कहना है कि नक्सलवाद को खत्म करने के लिए हमारी निर्णायक लड़ाई तेजी से चल रही है। इसका नतीजा है कि नक्सलियों की ताकत टूट गई है। जब तक प्रदेश से नक्सलवाद पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता, हम रुकेंगे नहीं।
बारूदी सुरंगों से फैली मौत की साजिश
नक्सली हमेशा विकास के दुश्मन रहे। वे नहीं चाहते कि बस्तर में सड़कें, पुल या कोई निर्माण हो, इसलिए विस्फोटकों से पुलों, सड़कों को उड़ाते रहे। बारूदी सुरंगें बिछाकर इंसानों और जानवरों को निशाना बनाया। इन सुरंगों में फंसकर सुरक्षा बलों के जवानों के अलावा कई गांव वाले और मवेशी मारे गए। इन सुरंगों को ढूंढकर नष्ट करना बहुत मुश्किल काम रहा और इसमें सुरक्षा बलों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। वर्ष 2003 से अब तक ऐसी सुरंगों से 147 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 306 बुरी तरह घायल हुए हैं। कुल 4 हजार 173 ऐसी सुरंगें अब तक खोजी जा चुकी हैं।
अब स्कूलों के दरवाजे फिर से खुल रहे
नक्सली झूठे विचारों का सहारा लेकर बच्चों की पढ़ाई के खिलाफ रहे। उन्हें डर था कि अगर बस्तर की नई पीढ़ी पढ़-लिख गई तो उनके झांसे में नहीं आएगी। इस डर से उन्होंने स्कूलों पर हमले किए, इमारतें तोड़ीं और बच्चों को स्कूल जाने से रोका। 20 सालों में माओवादियों ने 200 से ज्यादा स्कूलों को नुकसान पहुंचाया, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। सरकार के प्रयास रंग ला रहे हैं। बस्तर अंचल में करीब साढ़े तीन सौ बंद पड़े स्कूल फिर से शुरू हो चुके हैं।
डेढ़ साल से चल रहा निर्णायक अभियान
आपको बता दें कि सीएम साय के नेतृत्व में सरकार ने डेढ़ साल में ऐसा निर्णायक अभियान चलाया है कि नक्सलवाद अंतिम सांसें गिन रहा है। इस अवधि में 435 नक्सली मुठभेड़ों में मारे गए। 1 हजार 432 ने आत्मसमर्पण किया। 1 हजार 457 नक्सली गिरफ्तार किए गए। सुरक्षाबल के जवानों ने माओवादियों के केंद्रीय समिति के महासचिव बसवराजू को न्यूट्रलाइज करने में सफलता पाई है। इसी के साथ बीजापुर के कर्रेगुड़ा में 31 नक्सलियों के मारे जाने को माओवादी आतंक के ताबूत में आखिरी कील माना जा रहा है।
सरकार लाई बेहतर पुनर्वास नीति
आत्मसमर्पण करने वालों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने बेहतर पुनर्वास नीति लागू की है। इसमें तीन वर्ष तक प्रतिमाह दस हजार स्टाइपेंड, कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार से जोड़ने की व्यवस्था की गई है। नकद इनाम और कृषि अथवा शहरी भूमि प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है। सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से मुक्त कर बस्तर को शांति और प्रगति की भूमि बनाया जाए।
नियद नेल्ला नार से बदली तस्वीर
नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार की नियद नेल्ला नार योजना प्रभावी है। नियद नेल्लानार का मतलब होता है, 'आपका अच्छा गांव' योजना। इसके तहत 54 सुरक्षा कैंपों के 10 किलोमीटर के दायरे में 327 से अधिक गांव में सड़क, बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड, किसान कार्ड, प्रधानमंत्री आवास, मोबाइल टावर व वन अधिकार पट्टे जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं।
योजना के चलते 81 हजार से अधिक ग्रामीणों के आधार कार्ड, 42 हजार से अधिक ग्रामीणों के आयुष्मान कार्ड, 5 हजार से अधिक परिवारों को किसान सम्मान निधि, 2 हजार से अधिक परिवारों को उज्जवला योजना तथा 98 हजार से अधिक हितग्राहियों को राशन कार्ड प्रदाय किये गए है।
इंद्रावती नदी पर पुल बनने से आसान हुई कनेक्टिविटी
अब माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 275 किलोमीटर लंबी 49 सड़कें और 11 पुल तैयार हो चुके हैं। केशकाल घाटी चौड़ीकरण व 4-लेन बाईपास निर्माण के साथ-साथ इंद्रावती नदी पर नया पुल बनने से कनेक्टिविटी आसान हुई है। रावघाट से जगदलपुर 140 किलोमीटर नई रेल लाईन की स्वीकृति मिली है। बस्तर में के.के लाइन के दोहरीकरण का काम कराया जा रहा है। तेलंगाना के कोठागुडेम से दंतेवाड़ा किरंदूल को जोड़ने वाली 160 किलोमीटर रेल लाईन का सर्वे अंतिम चरण में है। इसका 138 किलोमीटर हिस्सा छत्तीसगढ़ में होगा, साथ ही 607 मोबाइल टावर चालू किए गए हैं जिनमें से 349 को 4जी में बदला गया है।
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बोधघाट परियोजना ने बदली सूरत
बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित महत्वाकांक्षी बोधघाट परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री साय ने प्रभावी पहल शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्होंने बोधघाट परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने का आग्रह भी किया है। 50 हजार करोड़ की लागत वाली परियोजना से बस्तर अंचल में सिंचाई सुविधा का विस्तार होगा और बिजली उत्पादन होगा। सिंचाई सुविधा के विस्तार हेतु इंद्रावती नदी और महानदी को जोड़ने का भी प्रस्ताव है।
आर्थिक मोर्चा भी मजबूत किया
आर्थिक मोर्चे पर भी बस्तर में नए अवसर तैयार किए जा रहे हैं। तेंदूपत्ता मानक बोरे की दर 4 हजार से बढ़ाकर 5 हजार 500 रुपए कर दी गई है, जिससे 13 लाख परिवारों को सीधा लाभ मिल रहा है। तेंदूपत्ता संग्रहकों के लिए सरकार ने चरण पादुका योजना फिर से आरंभ की है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 90 हजार 273 युवाओं को प्रशिक्षित कर 39 हजार 137 को रोजगार मिला है। नई उद्योग नीति 2024-30 में बस्तर के लिए विशेष पैकेज है, जिसके तहत यहां स्थापित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को 45 प्रतिशत पूंजी अनुदान और आत्मसमर्पित नक्सलियों को रोजगार देने पर पांच वर्षों तक 40 प्रतिशत वेतन सब्सिडी दी जा रही है।
यही नहीं, बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, वहीं बस्तर पंडुम में 47 हजार कलाकारों ने जनजातीय संस्कृति को वैश्विक मंच दिया। बैगा, गुनिया और सिरहा जैसे पारंपरिक जनजातीय जनों को 5000 रुपये वार्षिक सम्मान निधि दी जा रही है।
बस्तर के इतिहास में खून से लिखी ये तारीखें
बस्तर में नक्सली हिंसा की कई ऐसी घटनाएं हैं जो कभी नहीं भुलाई जा सकतीं। ये तारीखें यहां के लोगों के जख्मों की याद दिलाती हैं...
28 फरवरी 2006, दरभागुड़ा, सुकमा जिला
दोरनापाल में महेंद्र कर्मा की अगुवाई में सलवा जुडूम जन जागरण कार्यक्रम हुआ था। कोंटा के गांव वाले चार ट्रकों में वापस जा रहे थे, तभी एर्राबोर इलाके के दरभागुड़ा के पास नक्सलियों ने बारूदी सुरंग फोड़ दी। मौके पर 28 गांव वालों की मौत हो गई, और 27 घायल हुए। तीन ट्रकों को आग लगा दी गई।
24 मार्च 2006, संगम, सुकमा जिला
पखांजूर इलाके के संगम में साप्ताहिक बाजार से गांव वाले जीप में लौट रहे थे। घोडागांव और संगम के बीच नक्सलियों ने बम फोड़कर जीप उड़ा दी। 13 गांव वालों की मौत हो गई, और 4 घायल हुए।
25 अप्रैल 2006, मनीकोंटा, सुकमा जिला
दोरनापाल के राहत शिविर से 50-60 गांव वाले सामान लेकर वापस जा रहे थे, तभी नक्सलियों ने उन्हें अगवा कर लिया। उनमें से 15 की हत्या कर दी गई।
16 जुलाई 2006, एर्राबोर, सुकमा जिला
एर्राबोर राहत शिविर पर करीब डेढ़ हजार नक्सलियों ने गोलीबारी से हमला किया। 220 घरों को आग लगा दी। इसमें 6 एसपीओ, 1 स्वास्थ्य कार्यकर्ता और 17 गांव वाले मारे गए। 47 अगवा लोगों में से 6 की हत्या की गई, और 20 घायलों में से 3 ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
15 मार्च 2007, रानीबोदली, बीजापुर जिला
नेशनल पार्क दलम के नक्सली कमांडर और 500 नक्सलियों ने हथियार लूटने के लिए रानीबोदली कैम्प पर हमला किया। अंधाधुंध गोलीबारी से कैम्प तबाह हो गया, और छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के 55 जवान शहीद हो गए।
16 मई 2010, चिंगावरम, सुकमा जिला
पुलिस और एसपीओ की टीम भूसारास से मुकमा लौट रही थी, तभी चिंगावरम के पास नक्सलियों ने बस पर हमला किया। 11 पुलिसकर्मी, 1 एसएसबी असिस्टेंट और 4 एसपीओ शहीद हुए। साथ में 15 निर्दोष गांव वाले भी मारे गए।
6 अप्रैल 2010, ताड़मेटला, सुकमा जिला
सीआरपीएफ की टीम नक्सलियों के खिलाफ अभियान चला रही थी, तभी ताड़मेटला जंगल में मुठभेड़ हुई। मदद के लिए आई दूसरी टीम पर भी हमला हुआ, और बुलेटप्रूफ वाहन उड़ा दिया गया। इसमें सीआरपीएफ के 75 जवान और पुलिस का 1 प्रधान आरक्षक शहीद हुए।
29 जून 2010, राकस नाला, नारायणपुर जिला
सीआरपीएफ की टीम रोड ओपनिंग के बाद लौट रही थी, तभी राकस नाला के पास नक्सलियों ने फायरिंग की। 27 जवान शहीद हो गए।
9 जुलाई 2007, रेगड़गट्टा, सुकमा जिला
पुलिस, सीआरपीएफ और एसपीओ की टीम सर्चिंग पर थी, तभी उत्पलमेटा पहाड़ी के पास मुठभेड़ हुई। 2 पुलिस जवान, 6 एसपीओ और 15 सीआरपीएफ जवान, कुल 23 शहीद हुए, और 7 घायल।
24 अप्रैल 2017, चिंतागुफा, सुकमा जिला
सीआरपीएफ के 71 जवान और पुलिस का 1 जवान रोड निर्माण की सुरक्षा में जा रहे थे, तभी 200-250 नक्सलियों ने हमला किया। जवाबी कार्रवाई हुई, लेकिन 25 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए। नक्सली कई हथियार लूटकर भाग गए।
अब निर्णायक लड़ाई की ओर बढ़ रहा छत्तीसगढ़
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि छत्तीसगढ़ में माओवाद ने अपनी हिंसक विचारधारा से आम आदमी के जीवन को नरक बना दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई रणनीति बनाकर हमने माओवाद के कैंसर को नष्ट करने का काम किया है। इस कैंसर को नष्ट करने के लिए जरूरी था कि इसकी जड़ों पर प्रहार किया जाए। हमारे जवानों ने माओवादियों के सबसे सुरक्षित पनाहगाहों में हमला किया। इसके नतीजे बहुत अच्छे रहे।
जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ आए तो बस्तर की धरती में ग्राम गुंडम की बुजुर्ग मां उनके पास आईं, मां ने उन्हें वनोपजों की टोकरी भेंट की और कहा कि माओवाद को पूरी तरह से नष्ट कर दीजिए। जब सरकार का इरादा, जवानों का हौसला और जनता का संकल्प मिल जाता है तो कोई भी हिंसक विचारधारा नहीं टिक सकती। बस्तर में माओवाद अब अंतिम सांसे गिन रहा है। शीघ्र ही बस्तर पूरी तरह से नक्सल आतंक से मुक्त हो जाएगा।
आतंक से मुक्ति के साथ ही बस्तर में नक्सल प्रभावित रहे क्षेत्रों में विकास की राह भी खुल गई है। इसका माध्यम हमारी सरकार द्वारा चलाई जा रही नियद नेल्ला नार योजना बनी है। अरसे बाद स्कूलों में घंटियां गूंजी, पानी-बिजली का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित हुआ। आधार कार्ड बने और आयुष्मान कार्ड भी बन गए। बस्तर अब उमंग से भरा हुआ है। हमने यहां बस्तर ओलंपिक का आयोजन किया। पूरे बस्तर से 1 लाख 65 हजार लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें नक्सल हिंसा से प्रभावित परिजन भी थे। आत्मसमर्पित नक्सली भी थे और नक्सल हिंसा में अपने अंग गंवा चुके दिव्यांगजन भी थे। खेलों के इस महाकुंभ में खिलाड़ियों का उत्साह देखते ही बन रहा था, हम सबके लिए यह बहुत भावुक क्षण था, बस्तर ओलंपिक नए बस्तर की पहचान बन गया। RO 13257/4