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CG News:छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सल गतिविधियों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। पिछले 15 दिनों में नक्सलियों की तरफ से तीन बार शांति प्रस्ताव सामने आ चुके हैं। केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों की सामूहिक कार्रवाई ने नक्सलियों को रणनीतिक रूप से कमजोर किया है। हालांकि सुरक्षा अभियानों की यह कहानी नई नहीं है। ऑपरेशन ग्रीन हंट और सलवा जुडुम जैसे प्रयासों में भी नक्सलियों को भारी नुकसान पहुंचा था।
आदिवासी मुख्यमंत्री होने से बदला बस्तर का मिजाज
भाजपा सरकार बनने और विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में एक बार फिर नक्सल मोर्चे पर आक्रामक रणनीति अपनाई गई है। इस बार नक्सलियों ने अपने दिल्ली और रायपुर स्थित समर्थकों को सक्रिय करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कहीं से भी समर्थन नहीं मिला। नक्सली वर्षों से बस्तर के आदिवासियों के नाम पर शोषण की राजनीति करते रहे हैं। लेकिन इस बार उनका ये दांव भी विफल हो गया। इसकी मुख्य वजह विष्णुदेव साय की आदिवासी पहचान है।
स्थानीय समर्थन न मिलने से टूटे नक्सली
विशेषज्ञों का मानना है कि जब एक आदिवासी खुद मुख्यमंत्री है और बस्तर के लगातार दौरे कर रहा है, तो नक्सल समर्थकों की कथित शोषण की थ्योरी को स्थानीय आदिवासियों ने खारिज कर दिया। जिससे नक्सली आदिवासियों को अपने साथ नहीं कर पा रहे जिससे उनकी कमर टूट गई है।
आदिवासियों में सरकार के प्रति विश्वास
विष्णुदेव साय ने बस्तर में एक के बाद एक विकास योजनाओं की शुरुआत की है, जिससे पहली बार मूल आदिवासी समुदाय में सरकार के प्रति विश्वास जागा है। इससे नक्सलियों की पकड़ कमजोर हुई है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुद की मॉनिटरिंग
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद खत्म करने की रणनीति बनाकर काम कर रहे हैं। नक्सल मामले को लेकर शाह ने गंभीरता से लगातार मॉनिटरिंग की। जिसके चलते लगातार नक्सलवाद के खिलाफ सरकार ने कई ऑपरेशन किए जिससे नक्सलियों में डर का महौल है।
नक्सलियों की शर्तें बन सकती हैं बाधा
बस्तर क्षेत्र में सरकार की दोहरी नीति एक ओर सुरक्षा बलों की कार्रवाई और दूसरी ओर विकास योजनाएं फलीभूत होती नजर आ रही हैं। हाल के दिनों में नक्सलियों द्वारा बार-बार शांति वार्ता के प्रस्ताव भेजना और आत्मसमर्पण करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि नक्सली संगठन कमजोर पड़ते जा रहे हैं। हालांकि, शांति वार्ता तभी सफल हो सकती है जब दोनों पक्षों के बीच भरोसा और पारदर्शिता बनी रहे। एक तरफ सरकार की कड़ी नीति, और दूसरी तरफ नक्सलियों की शर्तें जिससे फिर संघर्ष की स्थिति बन सकती है।
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