भूपेश सरकार के एक और नियम में बदलाव की तैयारी, सरकार करने जा रही है मेयर से जुड़ा बड़ा फैसला

विष्णुदेव सरकार, भूपेश सरकार के नियमों को बदलकर मेयर और नगरपालिका अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया बदली जा रही है। विधानसभा के आने वाले मानसून सत्र में यह फैसला हो सकता है।

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Sandeep Kumar
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अरुण तिवारी @. RAIPUR. लोकसभा चुनाव 2024 ( lok sabha election 2024 ) के बाद छत्तीसगढ़ एक और चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। नवंबर में प्रदेश में निकाय चुनाव होने वाले हैं। यानी छह महीने बाद फिर प्रदेश में चुनाव की बेला आने वाली है। इन चुनावों से पहले विष्णुदेव सरकार ( Vishnudev government ) एक बड़ा फैसला करने की तैयारी कर रही है। यह फैसला निकाय चुनावों से ही जुड़ा है। भूपेश सरकार के नियमों को बदलकर मेयर और नगरपालिका अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया बदली जा रही है। विधानसभा के आने वाले मानसून सत्र में यह फैसला हो सकता है। आखिर बीजेपी सरकार को यह बदलाव करने की क्या जरुरत पड़ी और इसमें क्या बदलाव होने जा रहा है। आइए आपको बताते हैं। 

जनता के वोट से चुने जाएंगे मेयर 

विष्णुदेव सरकार नगर पालिक निगम अधिनियम में संशोधन की तैयारी कर रही है। बीजेपी को लगता है कि इस समय प्रदेश मोदी लहर के प्रभाव में है और बीजेपी को समर्थन कर रहा है। इसलिए मेयर, नगरपालिका अध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्ष का फैसला सीधे जनता के जरिए होना चाहिए। यानी मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली यानी डायरेक्ट इलेक्शन से होना चाहिए। सरकार फिर से प्रदेश में मेयर का चुनाव जनता के वोट करने का फैसला लेने जा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा का मानसून सत्र होना है। इस मानसून सत्र में सरकार संशोधन विधेयक ला सकती है। आने वाले नवंबर में निकाय चुनाव प्रस्तावित हैं इसलिए सरकार को ये फैसला लेने में जल्दी करनी पड़ेगी। हो सकता है विधानसभा का अगला शीतकालीन सत्र निकाय चुनाव के बाद हो। इसलिए सरकार ने अधिनियम में बदलाव पर काम शुरु कर दिया है। 

बैलेट पेपर की जगह ईवीएम का इस्तेमाल 

मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से और चुनावों में मतपत्रों की जगह ईवीएम के उपयोग का फैसला राज्य सरकार ले सकती है। इसके लिए उसे कैबिनेट की बैठक बुलाकर इन प्रस्तावों को मंजूर करना होगा। इसके बाद विधानसभा में विधेयक पारित करवाना होगा। चूंकि प्रदेश सरकार के पास भारी बहुमत है इसलिए विधानसभा में विधेयक पारित करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। सरकार का मानना है कि निकाय चुनाव में भी अब बैलेट पेपर की जगह ईवीएम का उपयोग होना चाहिए। और इसीलिए सरकार ये फैसला भी करने जा रही है। 

जिनके टिकट कटे वे होंगे उम्मीदवार 

डायरेक्ट इलेक्शन कराने के पीछे सरकार का एक और मकसद है। जिन लोगों को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिल पाया उनको मेयर या नगरपालिका अध्यक्ष के चुनाव में उम्मीदवार बनाया जाएगा। ताकि उनकी नाराजगी भी कम हो सके। जिन नेताओं का जमीनी आधार मजबूत है वे प्रत्यक्ष प्रणाली से ही चुनाव चाहते हैं। नेताओं का यह भी कहना है कि पार्षदों के जरिए यदि महापौर चुना जाता है तो हमेशा तख्ता पलट का खतरा बना रहता है। कभी भी खरीद फरोख्त से महापौर बदला जा सकता है। इसलिए सीधे जनता के वोट से महापौर और नगरपालिका अध्यक्षों का चुनाव होना चाहिए। 

भूपेश सरकार ने बदला था नियम 

प्रदेश में जब भूपेश सरकार बनी थी तब उसने यह नियम बदला था। मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का फैसला भूपेश सरकार का ही था। इससे पहले मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ राज्य में प्रत्यक्ष प्रणाली यानी जनता के वोट से महापौर और नगरपालिका अध्यक्षों का फैसला होता रहा है। ऐसा माना गया था कि भूपेश सरकार ने अपने पसंद के नेता को मेयर बनाने के लिए इन नियमों में बदलाव किया था। रायपुर में डायरेक्ट इलेक्शन से तरुण चटर्जी पहले महापौर बने थे। इसके बाद सुनील सोनी,किरणमयी नायक और प्रमोद दुबे सीधे जनता से चुनकर मेयर बने। पिछली बार नियम बदला मो पार्षदों के जरिए एजाज ढेबर को महापौर की कुर्सी मिली। 

क्या होती है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रणाली 

निकाय चुनाव में दो प्रणाली काम करती हैं। प्रत्यक्ष प्रणाली से सीधे जनता के वोट से मेयर,नगर पालिका अध्यक्ष या नगर परिषद अध्यक्ष का चुनाव होता है। यानी इन पदों के लिए सीधे जनता वोट करती है। वहीं अप्रत्यक्ष प्रणाली में मेयर या नगरपालिका अध्यक्ष को पार्षद चुनते हैं। यह प्रणाली मौजूदा सरकार अपने समर्थकों को मेयर बनाने के लिए अपनाती है। छत्तीसगढ़ में अभी अप्रत्यक्ष प्रणाली है जिसे सरकार बदलकर प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव करवाना चाहती है।

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