नेत्रहीन शिक्षक संतोष चिढोकर, जिन्होंने संवारी 400 दिव्यांग बच्चों की जिंदगी

मध्यप्रदेश के बैतूल से छत्तीसगढ़ आए संतोष चिढोकर पिछले 27 वर्षों से नेत्रहीन और दिव्यांग बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। विशेष बात यह है कि संतोष खुद भी नेत्रहीन हैं।

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Harrison Masih
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मध्यप्रदेश के बैतूल से छत्तीसगढ़ आए संतोष चिढोकर पिछले 27 वर्षों से नेत्रहीन और दिव्यांग बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। विशेष बात यह है कि संतोष खुद भी नेत्रहीन हैं, फिर भी उन्होंने अपना जीवन उन बच्चों की सेवा में समर्पित कर दिया है जो देख नहीं सकते या किसी अन्य प्रकार से दिव्यांग हैं।

वे मनेंद्रगढ़ के आमाखेरवा स्थित नेत्रहीन और दिव्यांग शिक्षण प्रशिक्षण विद्यालय में बतौर प्राचार्य कार्यरत हैं और अब तक 400 से अधिक बच्चों को शिक्षा, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखा चुके हैं।

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1997 में शिक्षक, 2006 में बने प्राचार्य

संतोष चिढोकर ने 1997 में शिक्षक के रूप में अपनी सेवा की शुरुआत की। 2006 में वे इस विद्यालय के प्राचार्य बने। लेकिन उनकी भूमिका केवल एक प्रशासक की नहीं, बल्कि हर छात्र के लिए मार्गदर्शक, संरक्षक और परिजन जैसी रही है।

दृष्टिहीन होकर भी 8 घंटे पढ़ाते हैं

नेत्रहीन होने के बावजूद, संतोष चिढोकर रोज़ाना 8 घंटे कक्षा में पढ़ाते हैं। उन्होंने विद्यालय परिसर को ही अपना घर बना लिया है ताकि कोई बच्चा अकेला महसूस न करे। उनकी उपस्थिति छात्रों के लिए सिर्फ अनुशासन नहीं, एक भावनात्मक सहारा बन चुकी है।

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छात्र बन चुके हैं अफसर और प्रोफेशनल्स

उनके पढ़ाए गए कई छात्र रेलवे, बैंक, एसईसीएल, शिक्षा विभाग और निजी कंपनियों में कार्यरत हैं। यह उनकी मेहनत और समर्पण का प्रत्यक्ष परिणाम है।

बेटी भी पिता के रास्ते पर

उनकी बेटी हर्षिता चिढोकर ने स्पेशल एजुकेशन की ट्रेनिंग पूरी कर ली है और अब दिव्यांग बच्चों के लिए काम करना चाहती हैं। वे भी अपने पिता की तरह समाज सेवा के मार्ग पर अग्रसर हैं।

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हर बच्चा है खून से बढ़कर
संतोष कहते हैं—“मेरे दो अपने बच्चे हैं, लेकिन इस स्कूल का हर बच्चा मेरे लिए अपने खून से बढ़कर है।”

सच्चे ‘फादर फिगर’ की मिसाल

फादर्स डे पर संतोष चिढोकर हमें सिखाते हैं कि ‘पिता’ होना सिर्फ जन्म का रिश्ता नहीं, बल्कि समर्पण और सेवा का नाम है। एक नेत्रहीन शिक्षक द्वारा नेत्रहीन बच्चों के जीवन को रोशन करना, इंसानियत और प्रेरणा का असाधारण उदाहरण है।

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