छत्तीसगढ़ के 25 साल... अपनी संस्कृति को दुनियाभर में खास पहचान दिला रही साय सरकार

छत्तीसगढ़ ने पिछले 25 वर्षों में अपनी संस्कृति को नया आयाम दिया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुआई में राज्य ने लोककला, नृत्य, त्यौहारों और हस्तकला को बढ़ावा दिया है। इन प्रयासों से छत्तीसगढ़ को अब एक प्रमुख पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में पहचान मिली है।

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RAIPUR. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से सिर्फ कारखानों में ही आगे नहीं बढ़ा, बल्कि अपनी पुरानी परंपराओं, नाच-गाने और कला को भी देश-दुनिया में जगह दिलाई है।

1 नवम्बर 2000 के बाद से 25 सालों में यहां की लोककला, नृत्य, कहानियां, हस्तकला और त्यौहारों को बचाने और बढ़ाने का काम इतना अच्छा हुआ कि अब छत्तीसगढ़ को सिर्फ खदानों या फैक्टरियों के लिए नहीं, बल्कि अपनी रंग-बिरंगी संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। यहां की संस्कृति लोगों के दिल में बसती है और अब यह दुनिया भर में फैल रही है। 

अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुआई में सरकार छत्तीसगढ़ को पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में डेवलप कर रही है। संस्कार और संस्कृति को खास पहचान दिलाई जा रही है। कलाकारों को सम्मान दिया जा रहा है। सरकार विकास भी और विरासत भी...के कॉन्सेप्ट पर काम कर रही है। रोजगार को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

सीएम साय का कहना है कि आने वाले समय में युवाओं को अपनी काबिलियत के मुताबिक काम मिलेगा, बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे छत्तीसगढ़ के लोग अपनी संस्कृति के साथ रहते हुए आगे बढ़ सकेंगे।

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लोकनृत्य और कला की नई चमक

छत्तीसगढ़ की लोककला यहां के लोगों की जान है। यहां के पंथी नृत्य, राऊत नाचा, करमा, सुआ और ददरिया जैसे गीत अब देश-विदेश में मशहूर हो चुके हैं। नाचा और पंडवानी जैसी कलाएं बड़े मंचों पर पहुंची हैं। पंडवानी की मशहूर कलाकार तीजन बाई को पद्मभूषण और पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान मिले, जिससे यह कला पूरी दुनिया में चमक उठी। इन कलाओं को अब स्कूलों में सिखाया जाता है, त्यौहारों में दिखाया जाता है और वीडियो के जरिए हर जगह पहुंचाया जाता है। इससे न सिर्फ पुरानी पीढ़ी खुश है, बल्कि नई पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ रही है। कलाकारों को अब मंच मिल रहा है, जहां वे अपनी कला दिखाकर कमाई भी कर रहे हैं और नाम भी कमा रहे हैं।

त्यौहारों की रौनक दुनिया भर में

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राज्य बनने के बाद हर साल 1 नवंबर को मनाया जाने वाला राज्योत्सव यहां की संस्कृति का सबसे बड़ा जश्न बन गया है। इसमें देश-विदेश से कलाकार आते हैं और अपनी कला से छत्तीसगढ़ की शान बढ़ाते हैं। बस्तर दशहरा, सिरपुर महोत्सव और राजिम कुंभ जैसे पुराने त्यौहारों को अब दुनिया भर में बताया जा रहा है। राजिम कुंभ को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाने लगा है, जहां लाखों लोग आते हैं। राज्योत्सव ने छत्तीसगढ़ को एक बड़े सांस्कृतिक केंद्र के रूप में खड़ा किया, जहां हर साल हजारों लोग जुटते हैं। बस्तर दशहरा में आदिवासी परंपराएं जीवंत हो उठती हैं, सिरपुर महोत्सव में पुरानी इमारतों के बीच नाच-गाना होता है और राजिम कुंभ में नदी किनारे धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं। इन त्यौहारों से पर्यटक और कलाकार दोनों आकर्षित होते हैं, जिससे यहां की अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिलता है।

पुरानी जगहों को बचाना और पर्यटन से जोड़ना

छत्तीसगढ़ में सिरपुर, बारसूर, भोरमदेव, रतनपुर और मालखरौदा जैसी पुरानी जगहों को बचाने का काम हुआ। इन्हें देश की धरोहर की तरह विकसित किया गया और पर्यटन से जोड़ा गया। सिरपुर महोत्सव में देश-विदेश से कलाकार और पर्यटक आते हैं, जिससे ये जगहें दुनिया के नक्शे पर चमक रही हैं। इन जगहों पर पुरानी मूर्तियां, मंदिर और इमारतें हैं, जिन्हें साफ-सुथरा रखा जा रहा है। यहां होने वाले कार्यक्रमों से ये जगहें जीवंत लगती हैं और लोग इन्हें देखने आते हैं। इससे न सिर्फ संस्कृति बची रहती है, बल्कि स्थानीय लोगों को काम भी मिलता है। पर्यटन बढ़ने से होटल, गाइड और दुकानें चलती हैं, जो छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती हैं।

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Photograph: (RO 13270/3)

सरकार ने हस्तकला को दुनिया में पहुंचाया 

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छत्तीसगढ़ के कारीगरों की ढोकरा कला, टेराकोटा, लोहे की चीजें और कोसा रेशम अब सरकार के प्रयासों से देश-विदेश की प्रदर्शनियों में पहुंच रही हैं। कोसा रेशम और बस्तर की धातु कला को GI टैग मिला है और बाहर भेजने की योजनाएं बनी हैं। आज ये चीजें भारत की संस्कृति का गौरव हैं। कारीगरों को ट्रेनिंग दी जाती है, बाजार में मदद मिलती है और ऑनलाइन बेचने के तरीके सिखाए जाते हैं। इससे गांवों में रहने वाले लोग अपनी कला से कमाई कर रहे हैं और ये चीजें अब फैशन और घर सजाने में इस्तेमाल हो रही हैं।

साहित्य, पढ़ाई और संस्थानों का योगदान

कला और संस्कृति की पढ़ाई के लिए इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ जैसे जगहों ने बड़ा काम किया गया है। लोक कलाकारों और लेखकों को पेंशन, सम्मान और मंच दिए जा रहे हैं, जिससे उनकी परंपराएं जिंदा हैं। छत्तीसगढ़ी कहानियां और किताबों को बढ़ावा मिला है और छत्तीसगढ़ी फिल्में भी अपनी अलग जगह बना रही हैं। इन संस्थानों में बच्चे नाच, गाना और कला सीखते हैं, जो आगे चलकर बड़े कलाकार बनते हैं। इससे संस्कृति नई पीढ़ी तक पहुंच रही है और लोग अपनी भाषा पर गर्व करते हैं।

डिजिटल दुनिया में संस्कृति का फैलाव

आज के जमाने में इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ी गीत, फिल्में और नृत्य ने नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ा है। छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया जैसे नारे और अभियानों ने युवाओं में गर्व की भावना पैदा की है। दुनिया भर के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छत्तीसगढ़ी कलाकारों के प्रदर्शन ने राज्य का नाम रोशन किया है। यूट्यूब, सोशल मीडिया और ऐप्स पर ये चीजें वायरल हो रही हैं, जिससे दूर बैठे लोग भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति देख और समझ रहे हैं। इससे पर्यटन बढ़ा है और कलाकारों को नए मौके मिले हैं।

साय सरकार ने बनाया अनोखा 'ट्राइबल म्यूजियम'

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इसी के साथ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों तक जीवंत रूप में पहुंचाने की बड़ी पहल की है। नवा रायपुर स्थित 'ट्राइबल म्यूजियम' यानी 'आदिवासी संग्रहालय' इसका जीवंत उदाहरण है। यह म्यूजियम आदिवासी इतिहास और विरासत को संजोने वाला देश का अनूठा केंद्र बन गया है।

करीब 10 एकड़ जमीन में फैले इस आधुनिक म्यूजियम का निर्माण 9 करोड़ 27 लाख की लागत से किया गया है। मुख्यमंत्री साय ने मई में खुद इसका उद्घाटन किया था, तब से यह म्यूजियम नवा रायपुर के सबसे बड़े आकर्षणों में शुमार हो गया है। यहां रोज बड़ी संख्या में बच्चे, रिसर्चर, आम पर्यटक और संस्कृति प्रेमी पहुंचते हैं। यहां ये लोग आदिवासी जीवन को करीब से देखने का मौका पाते हैं।

जनजातियों की जीवंत झलक

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म्यूजियम की सबसे खास बात इसकी 14 अलग-अलग गैलरियां हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ की 43 जनजातियों की संस्कृति को संजीदगी और जीवंतता के साथ पेश किया गया है। हर गैलरी नई दुनिया की झलक देती है। कहीं पारंपरिक वेशभूषा तो कहीं घर-आंगन, कहीं वाद्य यंत्र तो कहीं कृषि के उपकरण और कहीं पूजा-पद्धतियों से लेकर खानपान तक की परंपराएं नजर आती हैं।

हर जानकारी एक टच पर

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म्यूजियम में हर गैलरी के साथ टच स्क्रीन डिस्प्ले भी लगाए गए हैं, जिनके जरिए हर जनजाति की जानकारी, उनका त्यौहार, परिधान, औजार, जीवनशैली और परंपराएं विस्तार से बताई गई हैं। इससे न केवल देखने का अनुभव बेहतर होता है, बल्कि जानने और समझने की प्रक्रिया भी आसान बनती है।
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