बस्तर... कभी गोलियों की गूंज थी जहां, अब स्कूलों की घंटी बज रही वहां

छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलवाद के प्रभाव से बाहर निकलकर अब शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार हो रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में, बस्तर में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और सुविधाओं का विस्तार किया गया है।

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कभी नक्सल हिंसा और लाल आतंक के लिए बदनाम रहा छत्तीसगढ़ आज शिक्षा के क्षेत्र में नई इबारत लिख रहा है। नक्सलवाद के साए से निकलकर बस्तर अब किताबों और सपनों के उजाले में जी रहा है। माओवाद से प्रभावित रहे सुदूर बस्तर में अब गोलियों की आवाज नहीं, बल्कि स्कूल की घंटियां सुनाई देती हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में शिक्षा का उजाला उन गांवों तक पहुंचा है, जहां कभी बच्चे स्कूल का नाम तक नहीं जानते थे।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, सीखने की सहभागिता बढ़ाने, तकनीक को पढ़ाई से जोड़ने और शिक्षक-छात्र संबंध को मजबूत करने में हमने ऐतिहासिक काम किया है। नीति आयोग द्वारा बस्तर जिले को मिला 3 करोड़ रुपये का पुरस्कार इसी उत्कृष्ट प्रदर्शन का प्रमाण है। 

आपको बता दें कि साय सरकार ने अपने कार्यकाल में शिक्षा, स्वास्थ्य, अधोसंरचना और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में कई बड़ी पहल की है। खासतौर पर बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों में जो बदलाव हुआ है, उसे देशभर में सराहा जा रहा है। नीति आयोग द्वारा दिया गया पुरस्कार बस्तर के शिक्षण सुधारों की राष्ट्रीय मान्यता है।

बस्तर ज्ञान दीप योजना  

बस्तर के आदिवासी बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने के लिए बस्तर ज्ञान दीप योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल लाइब्रेरी और इंटरेक्टिव लर्निंग टूल्स दिए गए हैं। अब तक 500 से अधिक स्कूलों में ये सुविधाएं उपलब्ध कराई जा चुकी हैं, जिससे हजारों बच्चे तकनीक आधारित शिक्षा से जुड़ गए हैं।

शिक्षा संजीवनी से नक्सल क्षेत्र में पढ़ाई

दुर्गम और नक्सल प्रभावित इलाकों में पहले स्कूलों की कमी थी। ऐसे इलाकों में शिक्षा संजीवनी केंद्र खोले गए हैं, जहां बच्चों को नियमित और गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई मिल रही है। स्थानीय शिक्षक बताते हैं, पहले बच्चे जंगलों में घूमते थे, अब वे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। स्मार्ट क्लास और नए शिक्षक आने से बच्चों की पढ़ाई में दिलचस्पी बढ़ी है। 

सुपोषित शिक्षा अभियान में पढ़ाई के साथ पोषण

छत्तीसगढ़ सरकार ने मिड-डे मील योजना को और प्रभावी बनाते हुए सुपोषित शिक्षा अभियान शुरू किया है। अब स्कूलों में बच्चों को स्थानीय स्तर पर तैयार पोषण युक्त भोजन दिया जाता है। इससे न सिर्फ बच्चों की सेहत सुधरी है, बल्कि स्कूलों में उनकी उपस्थिति भी बढ़ी है।

ज्ञानगुड़ी और विज्ञान शाला  

जगदलपुर के धरमपुरा में मुख्यमंत्री साय ने हाल ही में 25 लाख रुपये की लागत से ज्ञानगुड़ी और 45 लाख रुपये से नवनिर्मित विज्ञान शाला का उद्घाटन किया। इन केंद्रों का मकसद बच्चों को उच्च गुणवत्ता की पढ़ाई के साथ-साथ विज्ञान में रुचि विकसित करना है।

ब्याज मुक्त शिक्षा ऋण  

माओवादी प्रभावित जिलों के गरीब बच्चों के लिए तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के लिए ब्याज मुक्त शिक्षा ऋण योजना लागू की गई है। इससे अब जरूरतमंद छात्र बिना आर्थिक बोझ के अपने सपनों को पूरा कर पा रहे हैं।

बस्तर ओलंपिक खेल से शिक्षा का जोश

बस्तर में बच्चों और युवाओं में खेलकूद और संस्कृति के प्रति उत्साह बढ़ाने के लिए बस्तर ओलंपिक का आयोजन किया गया। इस पहल ने युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ाया और उनकी प्रतिभा को निखारने का मौका दिया।

युक्तियुक्तकरण से बदली तस्वीर 

छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक सुधार करते हुए युक्तियुक्तकरण योजना लागू की है। पहले राज्य में 453 स्कूल बिना शिक्षक के और 5936 स्कूल सिर्फ एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे थे। सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर जैसे संवेदनशील जिलों में यह समस्या और गंभीर थी।

मुख्यमंत्री साय के नेतृत्व में तीन चरणों में जिला, संभाग और राज्य स्तर पर शिक्षकों की काउंसलिंग कर पदस्थापना की गई। नतीजा यह रहा कि आज प्रदेश का कोई भी स्कूल शिक्षक विहीन नहीं है। मुख्यमंत्री साय ने कहा, हमने ठान लिया था कि छत्तीसगढ़ में अब कोई बच्चा शिक्षक के बिना नहीं पढ़ेगा। यह सिर्फ तबादला नहीं, शिक्षा में न्याय की पुनर्स्थापना है। 

छत्तीसगढ़ सरकार का यह प्रयास शिक्षा को समावेशी और न्यायसंगत बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। अब कोई बच्चा शिक्षक के बिना नहीं पढ़ेगा और गांव-गांव तक गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई पहुंचेगी। यह युक्तियुक्तकरण महज प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह सामाजिक न्याय पर आधारित शिक्षा सुधार है।

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