प्रफुल्ल पारे
रायपुर. सत्ता में सेटिंग कोई नई बात नहीं है। इसका नमूना भाजपा की सरकार के जेल विभाग के एक तबादला आदेश में देखने को मिला। सरकार ने रायपुर जेल का सर्वेसर्वा फिर उसी अधिकारी को बना दिया है, जिस पर केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कुछ आरोपियों की जेल में मदद करने और जांच एजेंसियों के काम में रुकावट डालने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
दरअसल, राज्य सरकार के जेल विभाग ने पांच जेल अधीक्षकों और उप अधीक्षकों का स्थानांतरण आदेश जारी किया है, इन्हीं में से एक हैं अंबिकापुर के जेल अधीक्षक योगेश सिंह क्षत्री। अब उन्हें रायपुर जेल अधीक्षक बनाया गया है। इस आदेश के जारी होते ही सत्ता और राजनीति के गलियारों में चर्चाओं का बाजार गरमा गया है। इस आदेश के बाद अब यह चर्चा भी है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो गई, लेकिन उसका दबदबा अब भी कायम है।
क्या है पूरा मामला...
प्रदेश में भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के समय केंद्रीय जांच एजेंसी ED और आयकर विभाग की टीम कोयला परिवहन घोटाला, शराब घोटाला और खनिज घोटाले जैसे बड़े मामलों की जांच कर रही थी। इसमें लिप्त अधिकारियों, राजनेताओं और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज रही थी। तब योगेश सिंह क्षत्री रायपुर सेंट्रल जेल के जेल अधीक्षक थे।
ED ने उस समय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव सौम्या चौरसिया, आईएएस अधिकारी समीर बिश्नोई, रानू साहू, कांग्रेस नेता सूर्यकांत तिवारी और बिजनेसमैन अनवर ढेबर सहित दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया।
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इसी समय कांग्रेस नेता सूर्यकांत तिवारी और अनवर ढेबर के खिलाफ कर्नाटक में चल रहे एक प्रकरण को लेकर कर्नाटक पुलिस बयान लेने रायपुर आई थी। कर्नाटक की पुलिस ने राज्य सरकार से जेल अधीक्षक द्वारा कामकाज में सहयोग न किए जाने की शिकायत की थी।
ऐसी ही कई शिकायत केंद्रीय जांच एजेंसियों ने विशेष अदालत में भी की और विशेष अदालत ने इसे संज्ञान में लेकर जेल अधीक्षक के व्यवहार पर संगीन टिप्पणी की। इसके बाद मामले को गरमाता देख कांग्रेस सरकार ने रायपुर के जेल अधीक्षक योगेश सिंह क्षत्री को अंबिकापुर भेज दिया, जबकि उम्मीद यह की जा रही थी कि विशेष अदालत की टिप्पणी के बाद सरकार जेल अधीक्षक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है, लेकिन सरकार ने जेल अधीक्षक का केवल तबादला किया।
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विवादों में रहा पूरा जेल प्रशासन
भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान रायपुर का पूरा जेल महकमा विवादों में घिरा रहा। जेल प्रशासन पर वीआईपी कैदियों की विशेष देखभाल का आरोप लगातार लगता रहा। यह सारे आरोप केवल चर्चा तक सीमित नहीं रहे, बल्कि शासन स्तर पर भी इसकी शिकायत की गई और विशेष अदालत तक भी यह शिकायतें पहुंची कि जेल प्रशासन जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों को वीआईपी सुविधा मुहैया करा रहा है।
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इससे बढ़कर कर्नाटक की पुलिस ने तो कामकाज में बाधा डालने का आरोप तक लगाया। फिर भी जेल प्रशासन के विरुद्ध उस समय की सरकार ने कोई कड़ा एक्शन नहीं लिया। जब मामला बिगड़ने लगा तो जेल अधीक्षक के तबादले की खानापूर्ति हुई।
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सरकार के काम पर सवालिया निशान
राजनीति और सत्ता के गलियारों में इस बात को लेकर हैरानी जताई जा रही है कि जो भारतीय जनता पार्टी उस समय कांग्रेस सरकार और उसके घोटालेबाज अफसरों को लेकर आक्रामक हुआ करती थी, सत्ता में आने के बाद आखिर आरोपी अफसरों के खिलाफ उसका रवैया इतना नरम कैसे हो रहा है? अब सवाल यह उठता है कि जेल विभाग के अफसरों ने मुख्यमंत्री और सीएम कार्यालय को गुमराह क्यों किया। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर उन्होंने सच्चाई सामने क्यों नहीं रखी। अगर पूरी सच्चाई सामने रखी जाती तो अभी बेवजह हो रही सरकार की किरकिरी शायद नहीं होती।