परमाणु बम के हमले से भी नहीं होंगे छत्तीसगढ़ के दस्तावेज नष्ट, संचालक का दावा फुस्स

छत्तीसगढ़ के पुरातत्व विभाग के संचालक विवेक आचार्य ने दावा किया था कि राज्य के दस्तावेज़ परमाणु बम हमले के बाद भी सुरक्षित रहेंगे, लेकिन द सूत्र की पड़ताल में यह दावा गलत साबित हुआ है।

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VINAY VERMA
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Chhattisgarh documents will not be destroyed even by an atomic bomb attack the sootr
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परमाणु बम हमले के बाद भी छग का दस्तावेज सुरक्षित रहेगा...द सूत्र ने पड़ताल में पुरातत्व विभाग संचालक विवेक आचार्य का दावा गलत निकला, अब सवाल यह है कि आखिर पुरात्तव संचालक ने ऐसा दावा आखिर किया ही क्यों? हमने जब इसके पीछे की चीजें खंलागी तो दरअसल वे दस्तावेज के रखरखाव में होने वाले खर्च को जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे थे। क्योंकि पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ से जुड़े दस्तावेज मप्र से ला रहा है। जिसपर औसतन 150 रुपए प्रतिपेज की दर से खर्च हो रहा है, इस लागत पर सवाल उठ रहे हैं। 

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औसतन 150 रुपए प्रतिपेज की दर से वर्कऑर्डर

मप्र से छग के मूल दस्तावेज लाने के लिए साल 2014 में टेंडर हुआ। तय हुआ कि कंपनी डिजिटल फॉरमेट में पेज को स्कैन करके विभाग को देगी। शुरुआती समय में 136 रुपए प्रतिपेज के अनुसार रेट तय किया गया, जिसे बाद में 154 रुपए प्रतिपेज तक ले जाया गया। संचालक विवेक आचार्य कह रहे हैं कि ये परमाणु बम के हमले में भी नष्ट नहीं होगा, जबकि ये महज एक माइक्रोफिल्म है जिसकी कीमत अधिकतम प्रतिपेज 30-40 रुपए ही होगी।

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पांडुलिपी मंगाने की थी योजना

साल 2011 में शासन ने यह तय किया कि छग के संस्कृति पुरातत्व से जुड़े महत्वपूर्ण गजेटियर और पांडुलिपी मप्र के पास है, राज्य अलग होने के कारण उन्हें यहां लाना चाहिए। शुरुआती समय में करीब 36 हजार पेजों का चिंहाकन किया गया था। जिसके लिए 1 साल का समय निर्धारित किया गया था। जिसे बाद में विभाग बढ़ाते गया।

हमने जब इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि विभाग पांडुलिपियों और गजेटियर के अलावा राजस्व, पुलिस, जलसंसाधन विभाग के दस्तावेज भी मंगवा रहा है, जबकि ये इनके काम का ही नहीं। न ही इसके लिए इन विभागों से कोई मांग आई।

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75 हजार पेज रिपीट

द सूत्र को खबर के दौरान एक नोटशीट मिली है जिससे यह इस काम में फर्जीवाड़े की भी पुष्टि होती है। नोटशीट में यह बताया जा रहा है कि मेसर्स कम्प्यूटर प्लस संस्था ने डिजिटलाइज कर जो दस्तावेज पेन ड्राइव और हार्ड ड्राइव विभाग को सबमिट किया है, ऐसे 75 हजार पेज रिपीट सबमिट किया गया है। यानी 1 करोड़ 12 लाख 50 हजार रुपए किी गड़बड़ी विभागीय अधिकारियों के मिलीभगत से की गई।

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दस्तावेज मंगाने का खेल जारी

11 लाख पेजों के दस्तावेज मंगाने के बाद पुरातत्व विभाग यह दावा कर रहा है कि छग से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेज मप्र से नहीं जा सके हैं। इसलिए यह काम अभी और भी सालों तक चलेगा। जबकि इसके लिए विभाग की तरफ से विधिवत टेंडर प्रक्रिया भी नहीं अपनाई जा रही। एक कंपनी द्वारा कीमत तय की जा रही और उसी के आधार पर अन्य कंपनियों को बुलाकर काम दे दिया जा रहा है।

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