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Photograph: (thesootr)
RAIPUR. कभी नक्सलवाद का गढ़ कहे जाने वाला बस्तर आज उम्मीद, उजाले और आत्मविश्वास की कहानी लिख रहा है। लाल सलाम की धमक से कांपने वाला यह इलाका अब बच्चों की हंसी, स्कूल की घंटी और उत्सवों की रंगत से गूंजने लगा है। यह परिवर्तन अचानक नहीं आया। यह केंद्र और राज्य सरकार की समन्वित रणनीति, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की नेतृत्व क्षमता और जनभागीदारी से उपजा दूरगामी बदलाव है।
बीते डेढ़ बरस में छत्तीसगढ़ (Cg) सरकार ने नक्सलवाद की कमर तोड़ने के लिए जिस तरह की रणनीति अपनाई, उसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। यह सिर्फ सुरक्षा बलों की कार्रवाई तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसमें विश्वास, पुनर्वास और विकास को भी उतनी ही तवज्जो दी गई। मुख्यमंत्री साय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में जो कार्ययोजना अपनाई, उसने नक्सलवाद से जूझ रहे क्षेत्रों में नई चेतना और स्थायित्व का संचार किया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि नक्सलवाद के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का समय आ गया है। मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद के पूरी तरह खात्मे का रोडमैप तैयार किया गया है और छत्तीसगढ़ इस मिशन का नेतृत्व करता दिख रहा है। इसी मिशन के तहत राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति-2025 और नियद नेल्ला नार योजना जैसी योजनाओं की शुरुआत की, जिनका असर अब जमीन पर साफ नजर आ रहा है।
गवाही देते सरकारी आंकड़े
1 दिसंबर 2023 से 19 जून 2025 के बीच कुल 1440 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं। यही नहीं, 435 नक्सली मारे गए, 1464 गिरफ्तार किए गए और 821 हथियारों के साथ 1360 बारूदी सुरंगें (IED) बरामद की गईं। अकेले बीजापुर जिले में 95 मुठभेड़ और 763 गिरफ्तारियां दर्शाती हैं कि सुरक्षा बलों ने कितनी तीव्रता और व्यापकता से काम किया है।
आत्मसमर्पण करने वालों में 123 महिला नक्सली थीं, जो पहले संगठन के कमांडर स्तर तक काम कर रही थीं। इन महिलाओं ने हथियार छोड़कर मुख्यधारा की तरफ रुख किया है। जो हाथ कभी बंदूक उठाते थे, अब वे अपने बच्चों का हाथ थामे हुए हैं। जो महिलाएं कभी दहशत का पर्याय मानी जाती थीं, वे अब समाज में आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जीने की शुरुआत कर चुकी हैं।
पुनर्वास की व्यापक योजना पर काम
साय सरकार ने आत्मसमर्पित नक्सलियों के लिए व्यापक आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति तैयार की है। विशेष रूप से महिलाओं को स्वरोजगार, कौशल प्रशिक्षण, आर्थिक मदद और सामाजिक पुनर्स्थापन की योजनाओं से जोड़ा गया है। नियद नेल्ला नार योजना के अंतर्गत सरकार ने उन दुर्गम क्षेत्रों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाईं हैं, जहां कभी माओवाद का बोलबाला था। अबूझमाड़ जैसे क्षेत्र लंबे समय तक प्रशासनिक पहुंच से दूर थे। अब वहां 4G नेटवर्क, सड़कों का निर्माण, स्वास्थ्य केंद्र और स्कूलों का संचालन शुरू हो चुका है। जंगलों की वीरानी जीवन की चहचहाहट में बदल चुकी है।
जमीनी स्तर पर मजबूत हुई सुरक्षा बलों की पकड़
राज्य सरकार की नीति का दूसरा बड़ा स्तंभ है सुरक्षा और विकास का संतुलन। सरकार ने नक्सल-मुक्त पंचायतों को प्रोत्साहन स्वरूप एक करोड़ रुपए तक की विकास योजनाएं स्वीकृत की हैं। ग्राम रक्षा समितियां अब स्थानीय सुरक्षा व्यवस्था और सामुदायिक निगरानी में अहम भूमिका निभा रही हैं। पुलिस बल की अधोसंरचना को सशक्त करने के लिए 518 करोड़ और अत्याधुनिक हथियारों के लिए 350 करोड़ का विशेष बजट आवंटित किया गया है। इससे सुरक्षा बलों की कार्यक्षमता बढ़ी है। जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ मजबूत हुई है।
बदलते बस्तर की कहानी है ये...
बस्तर के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। अब यहां डर नहीं, उत्सव की गूंज सुनाई देती है। बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख युवाओं ने हिस्सा लिया। पंडुम उत्सव में 47 हजार से अधिक कलाकारों ने प्रदर्शन किया। पहले उजड़ चुके गांव जैसे पालनार में अब बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र फिर से सक्रिय हो चुके हैं। इन सांस्कृतिक आयोजनों ने बस्तर की पहचान को नया स्वरूप दिया है। बस्तर के युवाओं को बस्तर फाइटर्स के रूप में पुलिस में शामिल किया गया है। इससे उन्हें रोजगार मिला है और अपने गांवों की रक्षा का गौरव भी।
बंदूक नहीं, अब किताबों से पहचान
आज बस्तर की पहचान बंदूक से नहीं, किताब से हो रही है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है। सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ लोगों तक पहुंच रहा है। बस्तर की यह नई तस्वीर बताती है कि जब सरकार की नीयत साफ हो, रणनीति मजबूत हो और जनता का विश्वास जुड़ जाए तो कोई भी समस्या समाधान से दूर नहीं।
यह बदलाव भौगोलिक सीमाओं का नहीं, बल्कि मानसिक बदलाव का सबूत है। वह क्षेत्र जो कल तक भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती माना जाता था, आज पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गया है। अब बस्तर भारत के सबसे बड़े सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रयोगशाला बन चुका है।
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