छत्तीसगढ़ की सेहत यात्रा... कभी बीमारियों से जूझने वाला प्रदेश अब हेल्थ मॉडल की ओर बढ़ा रहा कदम

छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाएं बीते दो दशकों में कई बदलावों से गुजरी हैं। 2000 में पिछड़े राज्य से लेकर अब हेल्थ मॉडल बनने की ओर बढ़ते हुए, राज्य ने स्वास्थ्य क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार किए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में यह बदलाव संभव हुआ।

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Raipur. कभी छत्तीसगढ़ की पहचान पिछड़ेपन और बीमारियों से जूझते गरीब राज्य के रूप में होती थी। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इतनी खराब थी कि गांवों में इलाज की कोई सुविधा नहीं थी। एक बुखार के मरीज को भी डॉक्टर को दिखाने के लिए कई किलोमीटर दूर शहर तक जाना पड़ता था। अस्पतालों में उपकरणों की कमी, डॉक्टरों की अनुपलब्धता और गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रसव... सब कुछ मुश्किल था।

आज 25 साल बाद तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएं अब हर गांव तक पहुंच चुकी हैं। मेडिकल कॉलेजों का नेटवर्क मजबूत हुआ है। डॉक्टरों की कमी घट रही है। राज्य अब हेल्थ मॉडल स्टेट बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। 

छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को शीर्ष प्राथमिकता दी है। राज्य के गठन (1 नवंबर 2000) से लेकर अब तक की यात्रा इस बात की गवाही देती है कि लगातार और योजनाबद्ध प्रयासों से कैसे किसी राज्य की तस्वीर बदली जा सकती है।

शुरुआती दौर की चुनौतियां

जब छत्तीसगढ़ बना था, तब स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद कमजोर थी। स्वास्थ्य सूचकांक मात्र 0.585 था। शिशु मृत्यु दर (IMR) प्रति हजार जीवित जन्म पर 67 थी और कुल प्रजनन दर 3.0 के आसपास थी। उस समय पूरे प्रदेश में सिर्फ 6 जिला अस्पताल थे। नक्सल प्रभावित इलाकों में तो पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) और सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नदारद थीं। 

अब स्थिति बदल गई है। 2025 में स्वास्थ्य सूचकांक 0.672 तक पहुंच गया है। शिशु मृत्यु दर घटकर 38 प्रति हजार जीवित जन्म पर आ गई है। कुल प्रजनन दर अब स्थिर हो चुकी है। जिला अस्पतालों की संख्या 6 से बढ़कर 27 हो गई है। नक्सल प्रभावित इलाकों में भी अब आधुनिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि गांव-घर में लोगों की जिंदगी में महसूस किया जा सकता है।

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हर जिले तक मेडिकल कॉलेज

राज्य के गठन के वक्त सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज था, अब यह संख्या 15 हो चुकी है। नर्सिंग कॉलेजों की संख्या 60 से अधिक है और नर्सिंग सीटें 4 गुना बढ़ी हैं। हर जिले में जिला अस्पताल और स्पेशियलिटी सेवाएं उपलब्ध हैं। रायपुर, बिलासपुर और जगदलपुर में सुपर स्पेशियलिटी विंग तैयार हो चुके हैं। वर्ष 2000 में जहां 700 पीएचसी थे, आज यह आंकड़ा 2,500 पार कर चुका है। सीएचसी की संख्या भी 300 से ज्यादा हो गई है। इन प्रयासों ने स्वास्थ्य सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचा दिया है।

77 लाख परिवारों को बीमा सुरक्षा

स्वास्थ्य सुरक्षा अब हर परिवार तक पहुंच चुकी है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना और शहीद वीर नारायण सिंह आयुष्मान योजना के तहत 77 लाख 20 हजार से अधिक परिवारों को बीमा कवरेज मिला है। अब 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज संभव है। ग्रामीण परिवारों को अब इलाज के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ता। डिजिटल हेल्थ कार्ड से मरीजों को कैशलेस सुविधा मिल रही है।

रायपुर बन रहा फार्मा हब 

नवा रायपुर में 200 एकड़ भूमि पर 5,000 बेड वाला मेडिसिटी अस्पताल बन रहा है। इसके साथ ही 141 एकड़ क्षेत्र में फार्मास्यूटिकल पार्क विकसित किया जा रहा है। इससे नवा रायपुर मध्य भारत का फार्मा हब बनेगा। यह कदम स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार दोनों को मजबूत करेगा। 
बिलासपुर में सिम्स मेडिकल कॉलेज के विस्तार पर 200 करोड़ रुपए से काम शुरू है। रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में 700 नए बेड जोड़े जा रहे हैं। विस्तार के बाद यह अस्पताल 2,000 बेड क्षमता वाला बन जाएगा। ऐसे ही जांजगीर-चांपा, कबीरधाम, मनेंद्रगढ़ और गीदम में चार नए मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के लिए 1,020 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इन कदमों से डॉक्टरों की कमी तेजी से घट रही है और विशेषज्ञ सेवाएं अब हर जिले में उपलब्ध हैं।

टीकाकरण में छत्तीसगढ़ अग्रणी

राज्य ने टीकाकरण के क्षेत्र में भी शानदार प्रदर्शन किया है। 96.54 प्रतिशत टीकाकरण पूरा हो चुका है, जो देश के औसत से बेहतर है। ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में भी जागरूकता बढ़ी है। इस अभियान से कई जानलेवा बीमारियों पर रोक लगी है।
हर ब्लॉक में प्रसूति गृह और नवजात शिशु वार्ड की व्यवस्था की गई है। जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम ने लाखों महिलाओं को सुरक्षित प्रसव का अवसर दिया है। मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। जो महिलाएं पहले प्रसव के दौरान असुरक्षित माहौल में रहती थीं, अब अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण देखभाल पा रही हैं।

डॉक्टर और नर्स गांव-गांव तक

अब करीब करीब हर जिले में डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद हैं। मेडिकल कॉलेजों से हर साल सैकड़ों नए डॉक्टर निकल रहे हैं। नर्सिंग कॉलेजों और प्रशिक्षण संस्थानों ने ग्रामीण युवाओं को रोजगार दिया है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है।
अब मरीजों को इलाज के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता। 

आयुष से स्वास्थ्य का नया आयाम

आयुष विभाग ने राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत 32 योगा वेलनेस सेंटर शुरू किए हैं। इन केंद्रों में योगासन, प्राणायाम, ध्यान, सूर्य नमस्कार और प्राकृतिक चिकित्सा की सुविधाएं दी जा रही हैं। अब तक 10.60 लाख से अधिक नागरिक इनसे लाभ उठा चुके हैं। इन केंद्रों का उद्देश्य लोगों को दवाओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना है।

टेलीमेडिसिन और डिजिटल हेल्थ की क्रांति

बस्तर, सरगुजा और नक्सल प्रभावित इलाकों में अब टेलीमेडिसिन सिस्टम से डॉक्टर ऑनलाइन परामर्श दे रहे हैं। ई-फार्मेसी और डिजिटल दवा वितरण ने दवाइयां घर तक पहुंचाना आसान बनाया है। 1,000 से अधिक उपकेंद्रों का नवीनीकरण हुआ है। मोबाइल हेल्थ यूनिट्स मिनी अस्पताल की तरह काम कर रही हैं, जो दूरस्थ गांवों तक पहुंच रही हैं।

जहां पहले स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचना मुश्किल था, अब वहां मोबाइल हेल्थ क्लिनिक नियमित रूप से जा रही हैं। स्थानीय युवाओं को नर्सिंग और पैरामेडिकल प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार भी मिला है। बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा और कांकेर जैसे इलाकों में अब भरोसा और स्वास्थ्य दोनों लौट आए हैं। 

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छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़
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