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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एम्बुलेंस सेवाओं की लापरवाही से हुई दो मौतों के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और रेलवे को मुआवजा देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने एक गरीब आदिवासी की मौत के लिए राज्य सरकार को 2 लाख रुपये और ट्रेन में कैंसर पीड़िता की मौत के लिए रेलवे को 1 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।
कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
हाईकोर्ट ने एम्बुलेंस के देरी से पहुंचने और शव वाहन के लिए घंटों इंतजार को "संवेदनहीनता की पराकाष्ठा" करार दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को मृत्यु के बाद सम्मानजनक विदाई का अधिकार है। अगर राज्य सरकार और रेलवे यह भी सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो आम जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है?
रेलवे की दलील खारिज
रेलवे ने दावा किया कि कैंसर पीड़िता के परिवार का पता नहीं चल रहा, लेकिन कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए सख्त निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि रेलवे को एक महीने के भीतर परिवार को ढूंढकर मुआवजा देना होगा या राशि शासकीय कैंसर अस्पताल में जमा करनी होगी।
राज्य सरकार के हलफनामे पर सवाल
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के हलफनामे को लापरवाह और गैर-जिम्मेदाराना बताया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल सेवा प्रदाता पर जुर्माना लगाना पर्याप्त नहीं है। राज्य सरकार और रेलवे दोनों को अपनी नाकामियों की जिम्मेदारी लेनी होगी।
अगली सुनवाई 28 अगस्त को
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 अगस्त 2025 की तारीख तय की है। इस फैसले से न केवल लापरवाही पर सवाल उठे हैं, बल्कि आम लोगों के लिए बेहतर सेवाओं की उम्मीद भी जगी है।
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