गृहमंत्री जी इधर भी ध्यान दीजिए , अपने ही साथियों की जान ले रहे जवान, सरकार के फोकस में नहीं आर्म्ड फोर्स

छत्तीसगढ़ में 21 बटालियन में स्थाई कमांडेंट नहीं हैं, सभी प्रभार में चल रही हैं। गृह विभाग का फोकस न होने के कारण ये स्थिति बनी है, जबकि एसपी स्तर के 7 आईपीएस पुलिस मुख्यालय में बिना काम के बैठे हैं।

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Arun tiwari
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रायपुर. बलरामपुर जिले के भुताही कैंप में सीएएफ के एक जवान ने अपनी सर्विस रायफल इंसास से अपने ही साथियों पर फायरिंग कर दी। इसमें दो जवानों की मौत हो गई और दो जवान घायल हो गए।

सरकार ने नक्सलियों से निपटने के लिए उनके इलाकों में सुरक्षा कैंप बनाए हैं। इन कैंपों में सेंट्रल आर्म्ड फोर्स यानी सीएएफ की बटालियन तैनात की गई हैं। इसी बटालियन के एक कैंप में ये घटना हुई।इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सरकार का सीएएफ पर फोकस नहीं है। क्योंकि सारी बटालियन प्रभारी कमांडेंट के भरोसे चल रही हैं। ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब पुलिस मुख्यालय के अफसरों के पास नहीं है।

जाहिर है मामला सीधा गृह विभाग से जुड़ा हुआ है। और इन दिनों गृह मंत्री विजय शर्मा नक्सल फ्रंट पर अपनी कामयाबी बताकर खुद की पीठ थपथपा रहे हैं।   

फायरिंग से उठी सवालों की आग 

आर्म्ड फोर्स के जवान की अपने ही साथियों पर जानलेवा फायरिंग कोई आम घटना नहीं है। इसकी गंभीरता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। द सूत्र ने जब इस मामले की पड़ताल करने की कोशिश की तो हैरान करने वाली जानकारी और ये सवाल सामने आ गए। नक्सलियों से निपटने के लिए नक्सल इलाकों में सुरक्षा कैंप बनाए गए हैं।

इन कैंपों में तैनात सीएएफ नक्सली इलाकों में गश्त और नक्सल ऑपरेशन में सहयोग करती है। क्या इन जवानों में कुंठा या हताशा आ गई है जो इस तरह की घटना तक को अंजाम दे दिया गया। जो जानकारी सामने आई है उससे ये जाहिर है कि सरकार का खासतौर पर गृह विभाग का फोकस सीएएफ है ही नहीं।

इससे आर्म्ड फोर्स के जवानों में मोटीवेशन की कमी नजर आ रही है। और संभवत: यही कारण है कि जवानों में एक तरह की कुंठा दिखाई दे रही है। जान जोखिम में डालकर महीनों अपने परिवार से दूर जंगल में रहना कोई सरल काम नहीं है। इन जवानों पर फोकस, उनकी चिंता और प्रोत्साहन की सबसे ज्यादा दरकार है। 

प्रभारी कमांडेंट के भरोसे बटालियन 

इतना ही नहीं CAF को कमांड करने वाले कमांडेंट तक पोस्ट नहीं किए गए। हालत ये हैं कि एक- एक कमांडेंट के पास 6-7 बटालियन का प्रभार है । छत्तीसगढ़ में CAF की 27 बटालियन हैं। इनमें से सिर्फ़ 6 बटालियन में ही कमांडेंट पदस्थ हैं।

 इनमें प्रथम बटालियन, 12वीं बटालियन, 5वीं बटालियन, 16वीं बटालियन, 17वीं बटालियन और 18वीं बटालियन शामिल हैं। बाक़ी की 21 बटालियन में स्थाई कमांडेंट नहीं हैं, सभी प्रभार में चल रही हैं। जिस कैंप में ये फायरिंग हुई है वहां पर 11वीं बटालियन है। जाहिर है गृह विभाग का फोकस न होने के कारण ये स्थिति बनी है जबकि एसपी स्तर के 7 आईपीएस पुलिस मुख्यालय में बिना काम के बैठे हैं।

 वहीं राज्य पुलिस सेवा के सीनियर एडिशनल एसपी भी ढेर सारे हैं। ये हालत है कि कई जिलो में 6-7 एडिशनल एसपी पदस्थ हैं। राज्य सरकार इन्हें बटालियन में कमांडेंट बन सकती है । दूसरी बात है कि CAF बटालियन की कंपनियां जरूरत के हिसाब से तैनात की जाती हैं।

नियमानुसार कंपनियों में तीन साल बाद तबादले होना चाहिए, लेकिन पिछले 5 साल से कोई तबादला नहीं हुआ। ऐसा लगता है सरकार इनकी पोस्टिंग करके भूल गई है। वहीं CAF में  तय संख्या से तक़रीबन 2000 पद ख़ाली है। पिछले 5 साल से कोई भर्ती CAF में नहीं हुई। यानी CAF को भुलाने की जो गलती भूपेश सरकार ने की वही गलती विष्णु सरकार भी कर रही है।

सरकार करा रही जांच 

गृह मंत्री विजय शर्मा ने नक्सल फ्रंट पर उनकी कामयाबी के आंकड़े विधानसभा में पेश किए। सरकार का नक्सलियों के सरेंडर पर बहुत फोकस है। गृहमंत्री हिड़मा के गांव जाकर वहां के लोगों से बातचीत कर यह बताते हैं कि लोग अब विकास चाहते हैं।

गृहमंत्री का दावा है कि सुरक्षा कैंपों के कारण अब नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगा है। गृहमंत्री इस कामयाबी पर अपनी पीठ थपथपाते हैं। लेकिन सीएएफ के जवानों पर शायद फोकस की कमी रह जा रही है। नक्सल मामलों के एडीजी विवेकानंद झा ने द सूत्र से बातचीत में कहा कि इस पूरे मामले की जांच कराई जा रही है।

डीआईजी और एसपी को कारणों की पड़ताल करने के लिए भेजा है। कुंठा और हताशा जैसी बात नहीं है। रही बात प्रभारी कमांडेंट की कमी की तो इसका जवाब उचित फोरम पर ही मिलेगा। बाकी जांच के बाद कारण सामने आएंगे कि आखिर ये घटना क्यों हुई।

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