Chhattisgarh: छुईखदान वाले पान ने खोला बंटूराम की किस्मत का ताला

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के राजनांदगांव जिले के छुईखदान में उगने वाले पान की अब खूब मांग है। इसने किसान बंटूराम महोबिया की किस्मत पलट दी है। उनके उगाए देसी कपूरी पान को उन्हें एक तरह से पेटेंट मिल गया है। इस पान की पूरी कमांड बंटूराम के हाथ में है।

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BP shrivastava
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छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छुईखदान में उगने वाले कपूरी पान से किसान बंटूराम महोबिया की किस्मत बदल गई है।

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RAIPUR. छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh ) स्थित राजनांदगांव जिले के छुईखदान ( chhueekhadaan ) में उगने वाले एक पान ने यहां के किसान बन्टूराम महोबिया की किस्मत पलट दी है। उनके उगाए देसी कपूरी पान को एक तरह से पेटेंट मिल गया है। अब वह नौ साल तक अपने 'छुईखदान देसी कपूरी पान' की कमांड अपने हाथ में ही रखेंगे, यानी वह चाहेंगे तब ही पान का रसिया 'कपूरी' का रस ले पाएगा। असल में यहां के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने बन्टू राम के इस पान को विशेष पहचान दिलाई है, साथ ही इस पान का रजिस्ट्रेशन कर इस पान का उत्पादन, बिक्री, वितरण और आयात-निर्यात बन्टू को सौंप दिया है। क्षेत्र में इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। 

पान का पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व

पहले हम पान की कुछ महिमा गा लें, फिर इस मसले को समझेंगे। भारत में पान का पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है। हिंदू धर्मग्रंथों पुराणों, स्तोत्र, आयुर्वेदिक ग्रंथों के अलावा संस्कृत साहित्य में तांबूल ( पान ) से जुड़े अनगिनत वृत्तांत हैं। हिंदू धर्म में यह भी माना जाता है कि पान के पत्ते के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न देवी-देवता निवास करते हैं। इसलिए कोई भी पूजा-यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान में पान की उपस्थिति आवश्यक है। विशेष बात यह है कि भारत को पान का उत्पत्ति स्थल नहीं माना जाता। इसके बावजूद यह आम मानस की रग-रग में अपना रंग बसाए हुए है। जीवन के श्रृंगार रस और 'प्रेम' में पान को बहुमूल्य बताया गया है। संस्कृत साहित्य के अनेक आख्यानों, वृतांत्तों में पान को प्रेयसी-प्रियतम के बीच कामोद्दीपक बढ़ाने वाला बताया गया है। तीसरी शताब्दी में वात्सायन द्वारा लिखित ग्रंथ 'कामसूत्र' में जानकारी दी गई है कि वेश्यालयों के आसपास पान की दुकानें होती थीं। जहां विभिन्न स्वाद व 'रस' के तांबूल मिलते थे।  

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छुईखदान के पान

अब छुईखदान के पान की बात करें। महोबिया को कपूरी पान के एकाधिकार के अलावा भारत सरकार की ओर से देश में कहीं भी इस पान को बेचने का अधिकार और विशेष लाइसेंस मिल गया है। बन्टूराम महोबिया इसी जिले के गांव धारा के किसान हैं। उनकी पिछली पीढ़ी और वह पिछले कई दशकों से परंपरागत तरीके से देसी कपूरी पान की खेती करते आ रहे हैं। इस पान का परीक्षण कोलकाता और बेंगलुरु में स्थित DSU सेंटर में हो चुका है। विशेष बात यह है कि यह पान भारत का पहला पंजीकृत पान है। बताते हैं कि इस पान के पंजीयन के लिए डॉ. नितिन रस्तोगी, डॉ. एलिस तिरकी, डॉ. आरती गुहे, डॉ. बीएस असाटी व डॉ. अविनाश गुप्ता ने विशेष मेहनत की है। साथ ही विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल और निदेशक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी ने भी मार्गदर्शन दिया है। 

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पहचान मिलने से कपूरी पान का उत्पादन बढ़ेगा

बन्टूराम महोबिया का परिवार सालों से पान की इस दुर्लभ किस्म का उत्पादन और संवर्धन का कार्य कर रहा है। क्षेत्र की जलवायु और यहां की सफेद मिट्टी, इस पान की इस किस्म के लिए उपयुक्त मानी गई है। लेकिन पान की खेती में लागत बढ़ने और संक्रमण बीमारियों के चलते उत्पादन सिमट गया। पहले छुईखदान के पान की इलाहाबाद, वाराणसी, कलकत्ता, मुंबई समेत भारत के कई बड़े शहरों में सीधे सप्लाई होती थी। पर धीरे-धीरे खेती के सिमटने से पान की खेती भी कम होने लगी। अब इस क्षेत्र और यहां के कपूरी पान को विशेष पहचान मिलने से पान के उत्पादन में और इजाफा होने की संभावना है। 

पान सेहत के लिए लाभकारी

 पान को सेहत के लिए भी बेहतर माना जाता है। पान में कोशिकारक्षक (antioxidants), गर्मीनाशक (anti-inflammatory), सूक्ष्मजीवी रोधी (anti-microbial) और शुगररोधी (anti-diabetic) तत्व पाए जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य डॉ. आरपी पराशर के अनुसार पान की पत्तियों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। पान को अगर सुंगधित सुपारी और अन्य सात्विक वस्तुओं से चबाना बेहद लाभकारी है, इससे बलगम रुकता है, मुंह शुद्ध होता है, अपच व सांस संबंधी बीमारी दूर होती है। यह भोजन को भी पचाता है।

 

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