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Photograph: (the sootr)
RAIPUR.छत्तीसगढ़ में 1400 से ज्यादा प्राचार्यों की पदोन्नति का मामला फिर से टल गया है। रविवार रात काउंसलिंग प्रक्रिया को रोक दिया गया है। DPI ने इसकी जानकारी दी है। DPI ने बताया कि कुछ प्राचार्यों ने दावा-आपत्ति दर्ज करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा है। इसी कारण 17 नवंबर से शुरू होने वाली काउंसलिंग को स्थगित किया है।
अब दावा-आपत्ति 17 से 19 नवंबर 2025 तक ली जाएंगी। प्राचार्य पदोन्नति की प्रक्रिया 30 अप्रैल को पूरी हो चुकी थी। कोर्ट की अड़चनों के कारण यह आगे नहीं बढ़ पाई थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामला साफ हुआ था। DPI ने काउंसलिंग के लिए पूरी तैयारी की थी। अब ताजा आपत्ति के कारण काउंसलिंग फिर से रुकी हुई है।
अब काउंसलिंग की नई तारीख क्या होगी?
यह अभी तय नहीं हुआ है। DPI ने दावा-आपत्ति की जांच के लिए एक समिति बनाई है। इस समिति में उप संचालक बीएल देवांगन को प्रभारी अधिकारी बनाया गया है। सहायक संचालक एचसी दिलावर और रामजी पाल भी समिति के सदस्य हैं। सूरज यादव और कृष्ण कुमार मेश्राम को भी समिति में शामिल किया गया है।
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समिति को 21 नवंबर तक सभी दावा
आपत्तियों की जांच पूरी करनी है। इसके बाद 21 नवंबर 2025 को रिपोर्ट को संचालक को सौंपा जाएगा। काउंसलिंग की नई तारीख इस रिपोर्ट के बाद तय की जाएगी। इसका मतलब है कि काउंसलिंग की तारीख 21 नवंबर के बाद ही घोषित होगी। यह सब शिक्षाकर्मियों को प्रिंसिपल बनाने की जंग से जुड़ा हुआ है।
छत्तीसगढ़ में प्राचार्यो का प्रमोशन मामले को ऐसे समझें
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प्रिंसिपल प्रमोशन में शिक्षाकर्मियों का संघर्ष
प्रिंसिपल प्रमोशन में शिक्षाकर्मियों का संघर्ष लंबे समय से जारी है। शिक्षाकर्मियों और एलबी संवर्ग को पदोन्नति से बाहर रखने की कोशिशें हो रही थीं। इस पर छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन (CGTA) लगातार संघर्ष कर रहा था। पहले सरकार ने 25% पदों पर शिक्षाकर्मियों को प्राचार्य बनाने का प्रावधान किया था। लेकिन यह पूरी तरह से लागू नहीं हो सका।
CGTA ने एलबी संवर्ग के संविलियन के बाद शासकीय व्याख्याताओं के लिए जारी डीपीसी को निरस्त करा दिया। पदोन्नति के लिए वन टाइम रिलेक्सेशन (5 साल की जगह 3 साल का अनुभव) लागू हुआ। लेकिन इसका फायदा एलबी संवर्ग को नहीं मिला।
संजय शर्मा के नेतृत्व में टीम ने उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ी। सिंगल बेंच में हार के बाद, डबल बेंच में अपील की गई। अनुभव के 5 साल पूरे न मानने पर याचिका दायर की गई। अंत में, 5 साल का अनुभव पूरा होने के बाद मामला मजबूत हुआ।
नई सरकार के आने के बाद प्रक्रिया में तेजी
नई सरकार के बनने के बाद प्रक्रिया में तेजी आई। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई के बाद पदोन्नति की प्रक्रिया पेंडिंग हो गई थी। इस लंबी कानूनी लड़ाई के बाद विभाग को यह समझ में आया कि एलबी संवर्ग (लोकल बॉडी) को शामिल किए बिना प्राचार्य पदोन्नति संभव नहीं है।
नई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और शिक्षा मंत्री से बातचीत शुरू हुई। शिक्षा सचिव के साथ भी इस मामले पर चर्चा की गई। वरिष्ठता सूची का अंतिम प्रकाशन जल्दी किया गया। डीपीसी प्रस्ताव को भी तेजी से आगे बढ़ाया गया।
बिना पोस्टिंग रिटायर हुए 126 प्रिंसिपल
यह चिंताजनक है कि 30 अप्रैल को पदोन्नत हुए 126 प्राचार्य बिना पोस्टिंग के रिटायर हो गए। इस महीने लगभग 24 और प्राचार्य रिटायर होने वाले हैं। बिना काम संभाले रिटायर होना शिक्षा विभाग की बड़ी खामियों को दिखाता है।
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हाई स्कूल में प्राचार्यों की भारी कमी
पिछले दस सालों से हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों में प्राचार्य की भारी कमी है। अब लगभग 80% स्कूलों में प्राचार्य नहीं हैं। इन स्कूलों का काम प्रभारी प्राचार्यों, व्याख्याताओं और वरिष्ठ शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। इससे शैक्षणिक गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है। संकुल और शाला प्रबंधन भी कमजोर हो रहा है।
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