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Impact Feature
Raipur. छत्तीसगढ़ अब 25 बरस का हो चुका है। 25 साल पहले मध्यप्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य आज अपनी पहचान विकास, समृद्धि और स्थिरता के प्रतीक के रूप में गढ़ चुका है। 1 नवंबर 2000 को जब यह राज्य बना था, तब उसके सामने ढेरों चुनौतियां थीं। कमजोर अधोसंरचना, पिछड़े उद्योग, नक्सल हिंसा और सीमित संसाधनों की वजह से राज्य जूझ रहा था। अब 25 साल बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है।
आज मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर नई ऊंचाइयों को छू रहा है। शहरों की रफ्तार और गांवों की चमक देखकर साफ दिखता है कि प्रदेश ने विकास की लंबी छलांग लगाई है।
बजट और अर्थव्यवस्था में ऐतिहासिक उछाल
राज्य का बजट जहां 2001-02 में 3,999 करोड़ रुपये था, वहीं 2025-26 में यह बढ़कर 1.65 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) भी 25,845 करोड़ से बढ़कर 3,21,945 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। बेरोजगारी दर 2017-18 में जहां 3.5 प्रतिशत थी, वह अब घटकर 2.5 प्रतिशत रह गई है। इन आंकड़ों से यह साफ है कि छत्तीसगढ़ की आर्थिक नींव पहले से कहीं अधिक मजबूत हो चुकी है। उद्योग, सेवा क्षेत्र और कृषि ने मिलकर राज्य की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है।
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अग्रणी राज्यों को पीछे छोड़ा
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रहण में भी छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। प्रदेश ने 4,135 करोड़ का जीएसटी संग्रहण कर देश के शीर्ष 15 राज्यों की सूची में अपनी जगह बनाई है। जीएसटी संग्रहण के मामले में छत्तीसगढ़ ने केरल, पंजाब, बिहार और खनिज संसाधनों से भरपूर झारखंड जैसे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। राज्य में इस आर्थिक प्रगति को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि यह उपलब्धि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा व्यापार और उद्योग क्षेत्र में किए गए सशक्त सुधारों का प्रतिफल है। छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में 15 महीनों में सरकार ने ऐसे कई निर्णय लिए हैं, जिनसे व्यापार को बढ़ावा मिला है।
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धान के कटोरे में नई हरियाली
कृषि छत्तीसगढ़ की पहचान रही है और यह पहचान अब और सशक्त हुई है। राज्य सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए धान बोनस भुगतान, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी जैसी योजनाओं से किसानों की जेब में मजबूती लाई है। सौर सुजला योजना से खेतों तक सौर ऊर्जा पहुंची है और सिंचाई क्षमता 2000 के 13.28 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 21.76 लाख हेक्टेयर हो गई है। धान उत्पादन में छत्तीसगढ़ अब देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। गांवों की अर्थव्यवस्था अब और मजबूत हो गई है। किसान मंडियों तक आसानी से पहुंच रहे हैं और ग्रामीण जीवन का स्तर ऊपर उठा है।
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शिक्षा और स्वास्थ्य में बदलाव
राज्य के गठन के समय शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही बड़े कमजोर क्षेत्र थे। आज तस्वीर अलग है। शिक्षा की बात करें तो 2001-02 में सरकारी स्कूलों की संख्या 38,050 थी, जो अब 56,615 हो गई है। शिक्षकों की संख्या 21,000 से बढ़कर 2,78,798 हो गई है। कॉलेज 116 से बढ़कर 335 और विश्वविद्यालय 4 से बढ़कर 26 हो गए हैं। शिक्षा सूचकांक 0.249 से बढ़कर 0.520 तक पहुंच चुका है। महिला साक्षरता दर अब 70 प्रतिशत से ऊपर है।
स्वास्थ्य में सुधार की रफ्तार भी तेज रही। जिला अस्पतालों की संख्या 6 से बढ़कर 27 हो गई है। स्वास्थ्य सूचकांक 0.585 से 0.672 तक बढ़ा है और शिशु मृत्यु दर 67 से घटकर 38 प्रति हजार रह गई है। स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच अब गांव-गांव तक हो चुकी है। घरेलू विद्युतीकरण 18 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक पहुंचना भी इस प्रगति का प्रमाण है।
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महिला और जनजातीय सशक्तिकरण
प्रदेश में महिलाओं के सशक्तिकरण को विशेष प्राथमिकता दी गई है। महतारी वंदन योजना के तहत माताओं और बहनों को हर महीने 1000 रुपये की सहायता मिल रही है। आदिवासी समुदाय के लिए भी सरकार ने ठोस पहल की है। तेंदूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक 4500 से बढ़ाकर 5500 रुपये प्रति बोरा कर दिया गया है। चरण पादुका योजना और बस्तर-सरगुजा विकास प्राधिकरण ने नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास की नई किरण जगाई है।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ ने अपनी जड़ों को संजोया है। हरेली, छेरछेरा, तीजा-पोरा और बस्तर दशहरा जैसे पर्व अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं। महिला श्रम भागीदारी दर अब 59.8 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जो राज्य के सामाजिक परिवर्तन की गवाही देती है।
सड़कें: विकास की धड़कन
जब राज्य बना था, तब सड़कें उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थीं। 2000 में राज्य में कुल 35,389 किलोमीटर सड़कें थीं। आज यह संख्या बढ़कर 1,79,000 किलोमीटर हो गई है। राष्ट्रीय राजमार्ग 1827 किलोमीटर से बढ़कर 3482 किलोमीटर और स्टेट हाईवे 2074 से बढ़कर 4310 किलोमीटर तक पहुंच चुके हैं। ग्रामीण सड़कें भी 28,393 किलोमीटर से बढ़कर 1,60,116 किलोमीटर हो गई हैं।
अब गांव से शहर तक हर इलाका सड़क से जुड़ा है। किसान अपनी उपज मंडी तक ले जा रहे हैं, बच्चों को स्कूल और मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में घंटों नहीं लगते, बस कुछ ही मिनटों की यात्रा है।
एक्सप्रेस-वे और आधुनिक कनेक्टिविटी
रायपुर-दुर्ग, रायपुर-बिलासपुर और रायपुर-जगदलपुर मार्ग अब फोर और सिक्स लेन में तब्दील हो चुके हैं। रांची, हैदराबाद और विशाखापट्टनम से जोड़ने वाले एक्सप्रेस-वे का काम तेजी से चल रहा है। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के लिए 20 हजार करोड़ रुपये के सड़क विकास कार्यों की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत हजारों गांव पक्की सड़कों से जुड़े हैं। राजधानी रायपुर में रिंग रोड और बाईपास ने ट्रैफिक दबाव कम किया है। अब सड़कें सिर्फ संपर्क का साधन नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ बन चुकी हैं।
पुल और पुलिया: अब हर मौसम में सफर आसान
छत्तीसगढ़ की नदियां महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, हसदेव और अरपा—कभी बरसात में बाधा बन जाती थीं। अब इन्हीं नदियों पर बने शानदार पुल विकास की नई राहें खोल रहे हैं। बस्तर जैसे कठिन इलाकों में भी पुल-पुलियों ने गांवों को मुख्यधारा से जोड़ा है। अब बच्चे स्कूल पहुंचते हैं, किसान बाजार तक, और मरीज अस्पताल तक हर सफर सुरक्षित और सुगम हो गया है।
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रेल नेटवर्क: उद्योग और रोजगार की जीवनरेखा
खनिज संपदा से समृद्ध छत्तीसगढ़ के लिए रेल नेटवर्क जीवनरेखा है। वर्ष 2014 तक राज्य में 1100 किलोमीटर रेल रूट था, जो आने वाले वर्षों में 2200 किलोमीटर तक पहुंच जाएगा। 47 हजार करोड़ रुपये की लागत से कई रेल परियोजनाएं चल रही हैं। 2025-26 के बजट में इस क्षेत्र के लिए 6925 करोड़ रुपये का प्रावधान है।
राज्य को रायपुर-विशाखापट्टनम और रायपुर-नागपुर वंदे भारत एक्सप्रेस की सौगात मिल चुकी है।
रावघाट-जगदलपुर रेल लाइन के लिए 3513 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। कोत्तवलसा-किरंदुल रेल मार्ग का दोहरीकरण लगभग पूरा है, जबकि कोठागुडेम-किरंदुल नई लाइन के सर्वे का अंतिम चरण जारी है।
इन परियोजनाओं से बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा जैसे पिछड़े इलाके भी राष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ जाएंगे।
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आसमान में भी लंबी उड़ान
एक समय था जब छत्तीसगढ़ हवाई सेवाओं में पिछड़ा हुआ था। आज रायपुर का स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट अंतरराष्ट्रीय दर्जा पा चुका है। यहां से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु और चेन्नई समेत लगभग सभी बड़े शहरों के लिए सीधी उड़ानें हैं।
अंबिकापुर, बिलासपुर और जगदलपुर एयरपोर्ट के संचालन से बस्तर और सरगुजा जैसे क्षेत्र सीधे हवाई मार्ग से जुड़ गए हैं। इससे व्यापार, पर्यटन और निवेश को नया आयाम मिला है। शहरी परिवहन में भी सुधार हुआ है। सिटी बस सेवा, इलेक्ट्रिक बस और ई-रिक्शा से शहरों की सड़कों पर हरियाली और सुविधा दोनों बढ़ी हैं।
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