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छत्तीसगढ़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। प्रदेश इन दिनों एक अनोखी समस्या से जूझ रहा है। राज्य के नेशनल और स्टेट हाईवे अब 'गाय रिजर्व क्षेत्र' बनते जा रहे हैं। यहां सड़कों पर आवारा गायों का जमावड़ा आम बात हो गई है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने हाईवे के किनारे जगह-जगह बोर्ड लगाए हैं, जिन पर लिखा है, "सावधान! आगे सड़क पर गायें हो सकती हैं।" यह चेतावनी न केवल सड़क सुरक्षा के लिए दी जा रही है, बल्कि यह राज्य में आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या और प्रशासनिक व्यवस्था की बदहाली को भी उजागर करती है।
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सड़कों पर हादसों का बढ़ता खतरा
छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय राजमार्गों (जैसे NH-30, NH-44, और NH-49) और राज्य राजमार्गों पर आवारा गायों की मौजूदगी ने सड़क हादसों के खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है। हाल के वर्षों में, गायों के कारण होने वाले सड़क हादसों की संख्या में इजाफा हुआ है। उदाहरण के लिए, रायपुर और धमतरी के पास हाल ही में हुए मालवाहक वाहनों के हादसों में डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं। स्टेट रोडवेज की सेवाएं बंद होने और गांवों तक बसों की पहुंच न होने के कारण लोग अक्सर मालवाहक वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। इन वाहनों के ड्राइवर सड़क पर अचानक आने वाली गायों से बचने की कोशिश में हादसों का शिकार हो रहे हैं।
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बोर्ड तो लगे, लेकिन समाधान नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए कुछ कदम उठाए हैं। बेमेतरा जिले में, जहां नेशनल हाईवे 30 और स्टेट हाईवे पर गायों की समस्या गंभीर है, जिला प्रशासन और पुलिस ने सड़कों से मवेशियों को हटाने के लिए अभियान शुरू किया है। सरकार ने सख्त निर्देश जारी किए हैं कि सड़कों पर मवेशियों के कारण होने वाले हादसों की जिम्मेदारी जिला प्रशासन और पुलिस की होगी। इसके बावजूद, यह अभियान पूरी तरह प्रभावी नहीं हो सका है।
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बोर्ड लगाना एक अस्थायी उपाय
हाईवे के किनारे "सावधान! आगे सड़क पर गायें हो सकती हैं" जैसे बोर्ड लगाना एक अस्थायी उपाय है, जो समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। ये बोर्ड भले ही ड्राइवरों को सतर्क करने का काम कर रहे हों, लेकिन यह आवारा पशुओं की समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने भी इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने परिवहन सचिव और कमिश्नर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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इसलिए बनी यह स्थिति
छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है, और यहां पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसान आवारा मवेशियों से सबसे ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि ये पशु खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, गौशालाओं की कमी और उनकी खराब स्थिति ने भी इस समस्या को बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ में गौशालाओं में जगह की कमी और फंड की अनुपलब्धता के कारण पशुओं को सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा, अवैध डेयरियों का संचालन भी इस समस्या को बढ़ा रहा है। कई डेयरी मालिक अपने पशुओं को सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं, जिससे हाईवे पर गायों का जमावड़ा बढ़ता है। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद, इन अवैध डेयरियों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाई है।
हादसों का सिलसिला
जिला बलरामपुर में हाल ही में धौराभाठा फ्लाईओवर के पास एक माजदा वाहन ने सड़क पर खड़े हाइवा से टक्कर मार दी, जिसमें ड्राइवर की मौत हो गई। हेल्पर ने बताया कि सड़क पर गायों की मौजूदगी और खराब सड़क की स्थिति हादसे का कारण बनी। हाईवे पर गायों की मौजूदगी से न केवल ड्राइवरों को खतरा है, बल्कि स्थानीय लोग भी परेशान हैं। रायपुर के एक ट्रक ड्राइवर रमेश साहू ने बताया, "रात के समय सड़क पर अचानक गाय आ जाती है, और तेज गति में गाड़ी चलाते समय ब्रेक लगाना मुश्किल हो जाता है। बोर्ड तो लगे हैं, लेकिन गायों को हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा।"
समाधान की दिशा में कदम
इस समस्या से निपटने के लिए कुछ सुझाव और कदम उठाए जा सकते हैं। सरकार को गौशालाओं की संख्या और क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही, इनके रखरखाव के लिए पर्याप्त फंडिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके साथ ही अवैध डेयरियों को बंद करने और उनके मालिकों पर सख्त कार्रवाई करने से पशुओं को सड़कों पर छोड़ने की प्रवृत्ति कम होगी। हाईवे पर पशु अंडरपास और क्रॉसिंग की व्यवस्था की जा सकती है, जैसा कि मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में NH-44 पर किया गया है। स्थानीय समुदायों को पशुओं को सड़कों पर न छोड़ने के लिए जागरूक करने की जरूरत है। हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए प्रशासन को सड़क सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, जिसमें नियमित गश्त और मवेशियों को हटाने की प्रक्रिया शामिल है।
ठोस और दीर्घकालिक उपाय जरूरी
छत्तीसगढ़ की सड़कों पर गायों की मौजूदगी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो न केवल सड़क सुरक्षा को खतरे में डाल रही है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की कमियों को भी उजागर कर रही है। "सावधान! आगे सड़क पर गायें हो सकती हैं" जैसे बोर्ड लगाना एक शुरुआती कदम हो सकता है, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। सरकार, प्रशासन और स्थानीय समुदाय को मिलकर इस दिशा में ठोस और दीर्घकालिक उपाय करने होंगे, ताकि सड़क हादसों को रोका जा सके और छत्तीसगढ़ की सड़कें सुरक्षित बन सकें।
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