गन छोड़ गनमैन बनेंगे नक्सली, छत्तीसगढ़ की सरेंडर पॉलिसी देश में हो सकती है लागू

गन छोड़ने वाले नक्सलियों को सरकार गनमैन तक बना सकती है। हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरे पर आए अमित शाह ने नक्सल फ्री कंट्री बनाने के लिए मार्च 2026 की डेड लाइन तय की है।

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Arun tiwari
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Chhattisgarh's surrender policy implemented country
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 केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने नई सरेंडर पॉलिसी पर मंथन शुरु कर दिया है। नई पॉलिसी में नक्सलियों के लिए सरकार की नरमी दिखाई देगी। गन छोड़ने वाले नक्सलियों को सरकार गनमैन तक बना सकती है। हाल ही में छत्तीसगढ़ दौरे पर आए अमित शाह ने नक्सल फ्री कंट्री बनाने के लिए मार्च 2026 की डेड लाइन तय की है।

नक्सली बंदूक छोड़कर मुख्य धारा में शामिल हों इसके लिए नई सरेंडर पॉलिसी बनाई जा रही है। पूरे देश में 90 फीसदी नक्सली छत्तीसगढ़ में हैं। इसलिए अमित शाह ने रायपुर में बैठक कर नई सरेंडर पॉलिसी बनाने के निर्देश दिए हैं। ये जिम्मा छत्तीसगढ़ सरकार को सौंपा गया है। दो महीने में नई पॉलिसी तैयार होगी। इसके बाद इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय भेजा जाएगा। अमित शाह ने बैठक में ये संकेत भी दिए कि छत्तीसगढ़ की सरेंडर पॉलिसी को पूरे देश मे लागू किया जा सकता है। 



नक्सलियों पर सरकार की नरमी



केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह - केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 23,24 और 25 अगस्त को रायपुर में डेरा डालकर सभी नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी के साथ इस समस्या के समाधान पर लंबी बात की। इस चर्चा में एक बात खास तौर पर सामने आई कि बातचीत कर आत्मसमर्पण के रास्ते से इस समस्या का समाधान निकालना थोड़ा आसान होगा।

सरेंडर पॉलिसी ऐसी हो जो नक्सलियों को अकर्षित कर सके। इसके बाद अमित शाह ने कहा कि नई सरेंडर पॉलिसी बनाई जाएगी। अमित शाह ने नक्सलियों से अपील भी की कि वे सरेंडर कर मोदी सरकार के विकास रास्ते में मुख्य धारा से जुड़ें। जल्द ही सरकार नई सरेंडर पॉलिसी बनाने वाली है। 



सरेंडर पॉलिसी बनाने का जिम्मा छत्तीसगढ़ को



अमित शाह ने नई सरेंडर पॉलिसी बनाने का जिम्मा छत्तीसगढ़ सरकार को सौंपा है। इसके लिए दो महीने का समय भी दिया गया है। सरकार ने नई सरेंडर पॉलिसी बनाने के लिए मंथन भी शुरु कर दिया है। इसके के लिए न सिर्फ आम लोगों से बल्कि नक्सलियों से जुड़े लोगों से भी सुझाव मांगे गए हैं। यही नहीं इस पॉलिसी में नक्सली क्या चाहते हैं,इसके लिए भी उनसे जुड़े लोगों से सुझाव की अपील की है। नई पॉलिसी में सरकार बेहद नरम दिखाई देने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक नई पॉलिसी में वे सभी मुद्दे रहेंगे जिनसे नक्सली सरेंडर के लिए आगे आएं। 

नई सरेंडर पॉलिसी में इन बिंदुओं पर फोकस

सरेंडर करने वाले नक्सलियों को मुख्य धारा से जोड़ा जाएगा। 

नक्सलियों को सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएंगे। 

उनके बच्चों को शिक्षा,स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था की जाएगी। 

सरकार उनके रहने के लिए आवास भी बनाकर देगी। 

उनको सरकारी नौकरी में भी मौके दिए जा सकते हैं। 

गन छोड़ेंगे तो उन पर भरोसा कर गनमैन तक बनाया जा सकता है। 

जिन लोगों के खिलाफ गंभीर केस नहीं हैं उन्हें सजा में रियायत मिलेगी। 

कमजोर केस और कम केस वालों को माफी भी दी जा सकती है। 

सरेंडर करने वालों का आधार कार्ड और आयुष्मान कार्ड बनाया जाएगा। 

  

ये हैं नक्सल फ्रंट के आंकड़े

भूपेश सरकार1 जनवरी से 30 जून 2023 विष्णु सरकार 1 दिसंबर से जुलाई 2024
मुठभेड़ 37   100
नक्सली मारे 9     146
सरेंडर 221     531
गिरफ्तार   234 633
जब्ती माइंस  70 211
जब्ती हथियार 26       179

 

 

मुख्यमंत्री, विष्णुदेव साय - छह महीने के ये आंकड़े दिखाते हैं कि भूपेश सरकार के मुकाबले विष्णु सरकार ने नक्सल मामले पर ज्यादा काम किया है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि सरकार फोकस सरेंडर पर ज्यादा रहा है। नक्सली सरगना हिड़मा के गांव में जाकर गृहमंत्री विजय शर्मा ने लोगों के बीच सरकार का भरोसा कायम करने की कोशिश की है। गृहमंत्री कहते हैं कि लोग अब विकास चाहते हैं और उनका साथ सरकार को मिल रहा है। 





नक्सल फ्रंट पर असरदार



पिछले छह महीने में नक्सल फ्रंट पर जिस तरह की कार्रवाई हुई है उससे सरकार असरदार नजर आ रही है। इस कार्रवाई में दो बातें साफ नजर आती हैं। पहली यह कि सरकार का फोकस नक्सलियों के सरेंडर पर ज्यादा है। दूसरी बात यह है कि यदि सरेंडर नहीं गोली मारने में भी देरी नहीं है। सरकार के पास दो ही विकल्प हैं सरेंडर या मौत।

यानी सरकार नक्सलियों को सुधरने का मौका देकर मुख्य धारा में शामिल करना चाहती है। जिससे नक्सली क्षेत्रों का विकास हो और वहां के लोगों के पास भी सड़क,बिजली,पानी जैसी बुनियादी जरुरतें पहुंच सकें। सरकार हमेशा से यह कहती रही है कि वह नक्सलियों से बातचीत करने को तैयार है। नक्सली फ्रंट पर बीजेपी सरकार की कार्रवाई पिछली से सरकार से कहीं ज्यादा है।

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