छत्तीसगढ़ शराब घोटाला में 23 आबकारी अधिकारियों को कोर्ट का समन, निलंबन के बाद जमानत की कोशिश

छत्तीसगढ़ का 3200 करोड़ का कुख्यात शराब घोटाला 2019 से 2023 के बीच हुआ था। विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने इस मामले में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस नीति दिखाते हुए 29 में से 23 आबकारी अधिकारियों को निलंबित कर दिया था।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ में 2019 से 2023 के बीच हुए 3200 करोड़ रुपये के कुख्यात शराब घोटाले ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। इस मामले में विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कड़ा कदम उठाते हुए 29 में से 23 आबकारी अधिकारियों को निलंबित कर दिया था। यह कार्रवाई किसी भी राज्य द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ की गई अब तक की सबसे बड़ी प्रशासनिक कार्रवाइयों में से एक मानी जा रही है।

अब इस घोटाले में नया मोड़ आया है, क्योंकि रायपुर की विशेष अदालत ने सभी निलंबित अधिकारियों को 18 जुलाई 2025 को पेश होने के लिए समन जारी किया है। इन अधिकारियों ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर की है, जिस पर भी कोर्ट में सुनवाई होनी है।

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संगठित सिंडिकेट का खेल

आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की गहन जांच में सामने आया कि यह घोटाला एक संगठित सिंडिकेट के जरिए संचालित किया गया था। जांच एजेंसियों ने पाया कि 2019 से 2023 के बीच, तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में, आबकारी विभाग के अधिकारियों ने अवैध शराब की बिक्री को बढ़ावा दिया।

इस दौरान बिना शुल्क चुकाए और बिना लेखांकन के लाखों पेटी शराब की बिक्री की गई, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। EOW की जांच के अनुसार, इस घोटाले की राशि पहले 2161 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन नवीनतम जांच में यह राशि बढ़कर 3200 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है।

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जांच में यह भी खुलासा हुआ कि आबकारी अधिकारियों ने डुप्लीकेट होलोग्राम लगाकर अवैध शराब को डिस्टलरियों से सीधे शराब दुकानों तक पहुंचाया। इस प्रक्रिया में न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा, बल्कि अधिकारियों ने करीब 88 करोड़ रुपये की अवैध कमाई कर चल-अचल संपत्तियां भी बनाईं।

निलंबित अधिकारियों की सूची

निलंबित किए गए 23 अधिकारियों में कई वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, जिनमें आबकारी उपायुक्त अनिमेष नेताम, अरविंद कुमार पाटले, नीतू नोतानी, नोहर सिंह ठाकुर, विजय सेन शर्मा, सहायक आयुक्त प्रमोद कुमार नेताम, विकास कुमार गोस्वामी, नवीन प्रताप सिंह तोमर, राजेश जायसवाल, मंजुश्री कसेर, दिनकर वासनिक, आशीष कोसम, सौरभ बख्शी, प्रकाश पाल, रामकृष्ण मिश्रा, अलख राम कसेर, सोनल नेताम, और जिला आबकारी अधिकारी मोहित कुमार जायसवाल, गरीबपाल सिंह दर्दी, इकबाल अहमद खान, जनार्दन सिंह कौरव, और नितिन कुमार खंडूजा शामिल हैं। शेष सात अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, और एक अधिकारी, अशोक सिंह, की बीमारी के कारण मृत्यु हो चुकी है।

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कोर्ट में पेशी और जमानत याचिका

EOW ने इस मामले में 2300 पन्नों का चालान रायपुर की विशेष अदालत में पेश किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। चालान में 29 आबकारी अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 23 को निलंबित किया गया। इन सभी अधिकारियों को 20 अगस्त 2025 तक कोर्ट में पेश होने का अंतिम नोटिस जारी किया गया है। गिरफ्तारी के डर से किसी भी आरोपी ने अभी तक कोर्ट में हाजिरी नहीं लगाई, और सभी ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की है। 18 जुलाई को होने वाली सुनवाई में जमानत याचिकाओं पर फैसला होने की उम्मीद है।

घोटाले का राजनीतिक और प्रशासनिक आयाम

इस घोटाले में पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा का नाम भी सामने आया है, जो वर्तमान में रायपुर की केंद्रीय जेल में बंद हैं। जांच में दावा किया गया कि लखमा ने इस घोटाले को संरक्षण दिया और उनके मार्गदर्शन में अधिकारियों, ठेकेदारों, और कारोबारियों ने मिलकर यह संगठित अपराध किया।

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EOW और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच में यह भी सामने आया कि कारोबारी अनवर ढेबर ने अपने सहयोगियों विकास अग्रवाल और सुब्बू के साथ मिलकर कमीशन के रूप में 90 करोड़ रुपये से अधिक की राशि वसूली।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा, "भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति है। इस घोटाले में शामिल किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह किसी भी पद पर हो। हमारा लक्ष्य पारदर्शी, जवाबदेह, और ईमानदार प्रशासन देना है।"

सरकार के सुधार और पारदर्शिता के कदम

शराब घोटाले के बाद राज्य सरकार ने आबकारी विभाग में कई सुधार लागू किए हैं। FL-10 लाइसेंस नीति को समाप्त कर पारदर्शी व्यवस्था लागू की गई है। नकली शराब की बिक्री पर रोक लगाने के लिए अब सभी देशी और विदेशी शराब की बोतलों पर नासिक मुद्रणालय से छपे होलोग्राम अनिवार्य किए गए हैं। इसके अलावा, खनिज ट्रांजिट पास और लकड़ी की नीलामी की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया है। सरकार ने जेम पोर्टल के माध्यम से खरीदारी को अनिवार्य किया और सिंगल विंडो सिस्टम 2.0 के जरिए NOC प्रक्रिया को सरल बनाया है।

अन्य घोटालों पर भी नजर

छत्तीसगढ़ सरकार न केवल शराब घोटाले की जांच कर रही है, बल्कि डीएमएफ घोटाला, महादेव सट्टा ऐप घोटाला, तेंदूपत्ता घोटाला, और PSC-2021 परीक्षा अनियमितता जैसे मामलों की भी गहन जांच कर रही है। पिछले दो वर्षों में ACB ने 200 से अधिक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है, जो सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीति को दर्शाता है।

जनता के लिए सबक और भविष्य की दिशा

यह घोटाला और इसके बाद की कार्रवाइयां छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के सख्त रवैये का प्रतीक हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की कार्रवाइयां न केवल भ्रष्टाचार को कम करेंगी, बल्कि प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी बढ़ावा देंगी। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इस कार्रवाई की राजनीतिक टाइमिंग पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, यह देखना बाकी है कि कोर्ट में इन अधिकारियों की जमानत याचिकाओं का क्या परिणाम निकलता है और क्या इस घोटाले के अन्य बड़े चेहरों पर भी शिकंजा कसा जाएगा। फिलहाल, छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश दे रहा है।

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