छत्तीसगढ़ में गो तस्करी, जंगलों से सीमाओं तक बिछा है जाल

छत्तीसगढ़ में गो तस्करी की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। यह मुद्दा केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील बन गया है। तस्कर अब घने जंगलों और ग्रामीण इलाकों का सहारा ले रहे हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ में गो तस्करी की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है। यह मुद्दा केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील बन गया है। तस्कर अब घने जंगलों और ग्रामीण इलाकों का सहारा ले रहे हैं, जिससे इस अवैध गतिविधि को रोकना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। कोंडागांव, नारायणपुर, और कांकेर जैसे जिलों के दुर्गम रास्तों का उपयोग करके तस्कर गोवंश को पड़ोसी राज्यों जैसे ओडिशा, झारखंड, और अन्य क्षेत्रों में ले जा रहे हैं। इस अवैध व्यापार में स्थानीय ग्रामीणों को भी शामिल किया जा रहा है, जिन्हें तस्कर आर्थिक लालच देकर अपने जाल में फंसा रहे हैं।

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तस्करी का तरीका और क्षेत्र

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में तस्कर अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जंगलों और कम निगरानी वाले रास्तों का उपयोग कर रहे हैं। कोंडागांव, नारायणपुर, और कांकेर जैसे जिले, जो घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों से घिरे हैं, तस्करों के लिए सुरक्षित गलियारे बन गए हैं। ये क्षेत्र पड़ोसी राज्यों की सीमाओं से सटे होने के कारण तस्करी के लिए सुगम हैं। तस्कर रात के अंधेरे में या कम निगरानी वाले समय में गोवंश को ट्रकों, जीपों, या अन्य साधनों से ले जाते हैं। कई बार वे स्थानीय लोगों को छोटी-मोटी रकम देकर उनकी मदद लेते हैं, जैसे कि रास्तों की जानकारी या निगरानी से बचने के लिए सहायता।

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कानूनी प्रावधान और सरकार का रुख

छत्तीसगढ़ सरकार ने गो तस्करी, गोवंश के वध, और मांस की अवैध बिक्री पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून लागू किए हैं। राज्य में छत्तीसगढ़ कृषि गोवंश संरक्षण अधिनियम, 2004 के तहत गोवंश की तस्करी और वध पर कड़ी सजा का प्रावधान है। हाल ही में, छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि गो तस्करी और अवैध परिवहन में शामिल लोगों को 7 साल तक की जेल और 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा, पुलिस और प्रशासन को तस्करी रोकने के लिए विशेष दिशा-निर्देश दिए गए हैं। सरकार ने तस्करी पर नकेल कसने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में चौकसी बढ़ाने और चेकपोस्ट स्थापित करने जैसे कदम उठाए हैं। इसके बावजूद, तस्कर नई-नई रणनीतियों के साथ कानून को चकमा देने में सफल हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित संसाधन और जटिल भौगोलिक परिस्थितियां प्रशासन के लिए चुनौती बन रही हैं।

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सामाजिक और राजनीतिक संवेदनशीलता

गो तस्करी का मुद्दा छत्तीसगढ़ में केवल एक आपराधिक गतिविधि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी संवेदनशील है। गोवंश को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है, और इसकी तस्करी या वध से जुड़े मामले धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं। इससे सामाजिक तनाव बढ़ने की आशंका रहती है। कई बार गो तस्करी के खिलाफ कार्रवाई के दौरान हिंसक घटनाएं भी सामने आई हैं, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित होती है। राजनीतिक दृष्टिकोण से, यह मुद्दा विभिन्न दलों के लिए एक महत्वपूर्ण एजेंडा बन गया है। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधते रहते हैं। कुछ संगठन और स्थानीय समूह गो रक्षा के नाम पर सक्रिय हैं, जो कई बार कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करते हैं। इससे स्थिति और जटिल हो जाती है।

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स्थानीय लोगों की भूमिका

तस्करों द्वारा स्थानीय ग्रामीणों को शामिल करना इस समस्या को और गंभीर बनाता है। आर्थिक रूप से कमजोर और अशिक्षित ग्रामीणों को तस्कर छोटी-मोटी रकम या अन्य प्रलोभन देकर अपने साथ मिला लेते हैं। कई बार ग्रामीणों को यह जानकारी भी नहीं होती कि वे जिस गतिविधि में शामिल हैं, वह अवैध है। तस्कर इन लोगों का उपयोग रास्तों की जानकारी लेने, निगरानी से बचने, या गोवंश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए करते हैं। 

चुनौतियां और समाधान

गो तस्करी को रोकने के लिए कई चुनौतियां हैं:

भौगोलिक जटिलता : घने जंगल और दुर्गम रास्ते तस्करों के लिए मददगार हैं, जबकि पुलिस और प्रशासन के लिए निगरानी मुश्किल है।

सीमित संसाधन : ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस बल और संसाधनों की कमी के कारण प्रभावी कार्रवाई में बाधा आती है।

सामाजिक जागरूकता की कमी : कई ग्रामीणों को गो तस्करी के कानूनी और सामाजिक परिणामों की पूरी जानकारी नहीं है।

सीमावर्ती क्षेत्रों की चुनौती : पड़ोसी राज्यों की सीमाओं पर समन्वय की कमी तस्करी को बढ़ावा देती है।

 

इस समस्या से निपटने के लिए कुछ सुझाव हैं: 


जागरूकता अभियान : ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को गो तस्करी के नुकसान और कानूनी परिणामों के बारे में जागरूक करना जरूरी है।

तकनीकी सहायता : ड्रोन और सैटेलाइट निगरानी जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग जंगली और दुर्गम क्षेत्रों में तस्करी पर नजर रखने में मदद कर सकता है।

अंतरराज्यीय समन्वय : पड़ोसी राज्यों के साथ बेहतर समन्वय और सूचना साझा करने से तस्करी के नेटवर्क को तोड़ा जा सकता है।

कड़ाई से कानून लागू करना : तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना जरूरी है।

कानून-व्यवस्था की चुनौती 

प्रदेश में गो तस्करी एक गंभीर समस्या है, जो न केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संवेदनशीलता को भी प्रभावित करती है। सरकार द्वारा सख्त कानून और कार्रवाई के बावजूद, तस्करों की नई रणनीतियां और स्थानीय लोगों का दुरुपयोग इस समस्या को जटिल बनाता है। इस मुद्दे से निपटने के लिए जागरूकता, तकनीकी सहायता, और अंतरराज्यीय समन्वय के साथ-साथ सामुदायिक भागीदारी जरूरी है। केवल एक समग्र दृष्टिकोण ही इस समस्या को जड़ से खत्म कर सकता है।

 

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