डिप्लोमा बनाम डिग्री विवाद: छत्तीसगढ़ PHE भर्ती सुप्रीम कोर्ट में, लाखों युवाओं की नजर फैसले पर

छत्तीसगढ़ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) में उप अभियंता (सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल) के 118 पदों की भर्ती प्रक्रिया 'डिप्लोमा बनाम डिग्री' विवाद के कारण रुक गई है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) में उप अभियंता (सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल) के 118 पदों की भर्ती प्रक्रिया 'डिप्लोमा बनाम डिग्री' विवाद में उलझ गई है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है, और लाखों डिप्लोमा धारक युवा शीर्ष अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यह फैसला न केवल इस भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करेगा, बल्कि भविष्य की तकनीकी भर्तियों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है, जैसा कि 'B.Ed बनाम D.Ed' विवाद में हुआ था।

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विवाद की जड़ क्या है?

छत्तीसगढ़ सरकार ने PHE विभाग में उप अभियंता के 118 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। भर्ती विज्ञापन में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के रूप में त्रि-वर्षीय डिप्लोमा को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया था। इस प्रक्रिया के तहत डिप्लोमा धारकों ने आवेदन किया, लेकिन डिग्री धारकों ने इस नियम का विरोध करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने डिग्री धारकों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद भर्ती प्रक्रिया पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे। इस फैसले से डिप्लोमा धारक अभ्यर्थी असंतुष्ट हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

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डिप्लोमा धारकों का तर्क

डिप्लोमा धारकों का कहना है कि उप अभियंता जैसे जूनियर इंजीनियर स्तर के पदों के लिए डिप्लोमा ही सबसे उपयुक्त योग्यता है। उनका तर्क है कि इसरो, डीआरडीओ, और विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों जैसी अग्रणी तकनीकी संस्थाओं में भी पद के अनुसार शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की जाती है। चूंकि PHE की भर्ती विज्ञापन में स्पष्ट रूप से डिप्लोमा को न्यूनतम योग्यता बताया गया था, इसलिए डिग्री धारकों को शामिल करने के लिए नियमों में बदलाव करना अनुचित है।

डिप्लोमा धारकों ने सुप्रीम कोर्ट के 7 नवंबर 2024 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि हाईकोर्ट का फैसला इस सिद्धांत का उल्लंघन करता है, और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

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डिग्री धारकों का पक्ष

दूसरी ओर, डिग्री धारक अभ्यर्थियों का तर्क है कि डिग्री एक उच्चतर शैक्षणिक योग्यता है, और इसे डिप्लोमा के समकक्ष या उससे ऊपर माना जाना चाहिए। उनकी याचिका में कहा गया कि डिप्लोमा को प्राथमिकता देकर डिग्री धारकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने उनके इस तर्क को स्वीकार करते हुए उनके पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन यह फैसला अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का महत्व

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका फैसला न केवल छत्तीसगढ़ की इस भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करेगा, बल्कि देश भर में तकनीकी भर्तियों के लिए शैक्षणिक योग्यता के मानकों को भी स्पष्ट करेगा। डिप्लोमा और डिग्री के बीच का यह विवाद तकनीकी क्षेत्र में जूनियर और सीनियर स्तर के पदों के लिए योग्यता के मापदंड तय करने में एक मार्गदर्शक सिद्धांत बन सकता है। 

युवाओं में बेचैनी, भविष्य पर सवाल

इस विवाद ने लाखों डिप्लोमा और डिग्री धारक युवाओं के बीच बेचैनी पैदा कर दी है। डिप्लोमा धारक जहां भर्ती प्रक्रिया को मूल विज्ञापन के अनुसार आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, वहीं डिग्री धारक इसे और समावेशी बनाने की वकालत कर रहे हैं। इस अनिश्चितता के कारण भर्ती प्रक्रिया लटकी हुई है, और युवाओं का भविष्य अधर में है। 

सुप्रीम निर्णय बनेगा नजीर 

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई जल्द शुरू होने की उम्मीद है। डिप्लोमा धारकों को भरोसा है कि शीर्ष अदालत का फैसला उनके पक्ष में होगा, क्योंकि भर्ती नियमों में बदलाव को सुप्रीम कोर्ट पहले भी गलत ठहरा चुका है। दूसरी ओर, डिग्री धारक भी अपनी उच्चतर योग्यता के आधार पर अवसर की मांग कर रहे हैं। इस मामले का परिणाम न केवल PHE की भर्ती, बल्कि अन्य सरकारी और तकनीकी भर्तियों के लिए भी एक नजीर साबित होगा। 'डिप्लोमा बनाम डिग्री' का यह विवाद छत्तीसगढ़ में तकनीकी भर्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की जरूरत को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला न केवल इस भर्ती प्रक्रिया को दिशा देगा, बल्कि भविष्य में ऐसी अस्पष्टताओं को रोकने के लिए भी एक स्पष्ट नीति की नींव रख सकता है। 

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