मंत्रालय में रंग-कोडेड ID कार्ड पर विवाद, कर्मचारी संगठनों की आंदोलन की चेतावनी

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित नवा रायपुर के मंत्रालय में अब कर्मचारियों और आगंतुकों की पहचान रंग-बिरंगे फीतों से होगी। सामान्य प्रशासन विभाग के नए आदेश के तहत, ये रंग कर्मचारियों के पद और स्थिति को दर्शाएंगे, जिससे मंत्रालय का माहौल रंगीन हो गया है।

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Krishna Kumar Sikander
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Dispute over colour-coded ID cards in the ministry the sootr
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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नवा रायपुर स्थित मंत्रालय में अब कर्मचारियों और आगंतुकों की पहचान रंग-बिरंगे फीतों से होगी। सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के एक नए आदेश के तहत यहां प्रवेश के लिए रंग-कोडेड ID कार्ड लागू किए गए हैं, जो कर्मचारियों के पद और स्थिति को उनके गले में लटके फीते के रंग से परिभाषित करेंगे। इस व्यवस्था ने मंत्रालय को एक रंगीन मंच में बदल दिया है, लेकिन कर्मचारी संगठनों में इसे लेकर गहरा असंतोष और आक्रोश फैल गया है। संगठनों ने इसे भेदभावपूर्ण और कर्मचारियों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम करार देते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है।

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रंगों से तय होगी पहचान और रुतबा

नए नियमों के अनुसार, मंत्रालय में प्रवेश करने वालों को उनके ID कार्ड के साथ रंग-बिरंगे फीते पहनने होंगे, जो उनकी स्थिति को दर्शाएंगे।

पीला फीता : स्थायी शासकीय सेवकों, यानी पूर्णकालिक अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए। यह रंग उच्च पद और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जा रहा है।

नीला फीता : बाहरी विभागों से जुड़े कर्मचारियों, जैसे संविदा कर्मचारी या अस्थायी सेवा वाले कर्मचारियों के लिए।

सफेद फीता : गैर-शासकीय व्यक्तियों, जैसे विजिटर, ठेकेदार, रिटायर्ड कर्मचारी, या आम नागरिकों के लिए।

यह रंग-बिरंगी व्यवस्था एक 'रंगीन रैंप' में बदल रही है, जहां कर्मचारियों का रुतबा और सम्मान अब उनके गले में लटके फीते के रंग से तय हो रहा है। हालांकि, यह व्यवस्था सुरक्षा और व्यवस्थित प्रवेश को सुनिश्चित करने के लिए लाई गई है, लेकिन कर्मचारी संगठनों ने इसे वर्गभेद का प्रतीक बताकर तीखा विरोध शुरू कर दिया है।

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कर्मचारी संगठनों का उबाल, "रंगों से भेदभाव अस्वीकार्य"

छत्तीसगढ़ के प्रमुख कर्मचारी संगठनों ने इस रंग-कोडेड व्यवस्था को कर्मचारियों के बीच भेदभाव पैदा करने वाला बताया है। अधिकारी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष कमल वर्मा, संचालनालय कर्मचारी संघ के जय कुमार साहू, और मंत्रालयीन कर्मचारी संघ के महेंद्र सिंह राजपूत ने इस आदेश की कड़ी निंदा की है। कमल वर्मा ने कहा, "हम RFID या QR कोड वाले ID कार्ड का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन रंगों के जरिए कर्मचारियों को बांटना और उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाना स्वीकार्य नहीं है।"

संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सभी कर्मचारियों को एक समान रंग का फीता नहीं दिया गया, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे। उनका कहना है कि पहले से ही लिफ्ट और कैंटीन जैसी सुविधाओं में भेदभाव देखा जा रहा है, और अब यह रंग-कोडेड फीता व्यवस्था कर्मचारियों के आत्मसम्मान पर एक और प्रहार है।

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रंगों का मजाक, लिफ्ट और कैंटीन में भी भेदभाव?

कर्मचारी संगठनों ने इस व्यवस्था को लेकर तंज कसते हुए कहा कि यह सिर्फ ID कार्ड तक सीमित नहीं रहेगी। कुछ ने व्यंग्य करते हुए कहा, "क्या अब लिफ्ट का इस्तेमाल भी फीते के रंग से तय होगा? पीले फीते वालों को पांचवीं मंजिल, नीले वालों को तीसरी, और सफेद वालों को सीढ़ियां चढ़ने को कहा जाएगा?" इसी तरह, कैंटीन में भी मेन्यू को लेकर मजाक उड़ाया जा रहा है, जैसे "पीले फीते वालों को बिरयानी, नीले वालों को खिचड़ी, और सफेद वालों को सिर्फ चाय वो भी बिना चीनी की।" यह व्यंग्य इस बात को रेखांकित करता है कि रंग-कोडेड व्यवस्था कर्मचारियों के बीच असमानता और अपमान की भावना को बढ़ा रही है।

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तकनीकी नवाचार: RFID और QR कोड

नई ID कार्ड व्यवस्था में सुरक्षा के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया है। कार्ड में RFID, QR कोड, और होलोग्राम शामिल किए गए हैं, जो अनधिकृत प्रवेश को रोकने में मदद करेंगे। यह तकनीकी कदम सराहनीय है, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि रंग-कोडेड फीतों की जरूरत नहीं थी। तकनीकी सुरक्षा बिना रंगों के भी सुनिश्चित की जा सकती थी। 

इसके अलावा, गैर-शासकीय व्यक्तियों को केवल एक साल के लिए वैध ID कार्ड दिए जाएंगे, जबकि शासकीय कर्मचारियों को पांच साल की वैधता वाला कार्ड मिलेगा। रिटायर्ड कर्मचारियों को मिलने वाले ID कार्ड में न तो कोई लोगो होगा और न ही विभाग का नाम, जिसे कर्मचारी संगठनों ने अपमानजनक बताया है। उनका कहना है कि यह रिटायर्ड कर्मचारियों की सेवा और योगदान को कमतर आंकने जैसा है।

सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव

यह रंग-कोडेड व्यवस्था मंत्रालय में काम करने वाले कर्मचारियों के बीच तनाव और असंतोष का कारण बन रही है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह व्यवस्था न केवल कार्यस्थल पर भेदभाव को बढ़ावा दे रही है, बल्कि कर्मचारियों की एकता और मनोबल को भी कमजोर कर रही है। मंत्रालय, जो प्रशासन का केंद्र है, वहां इस तरह की व्यवस्था लागू करना कर्मचारियों के बीच असमानता की खाई को और गहरा सकता है। 

आंदोलन की चेतावनी

कर्मचारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि इस रंग-कोडेड व्यवस्था को तत्काल वापस लिया जाए और सभी कर्मचारियों को एक समान रंग का फीता दिया जाए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि यदि रंगों की जरूरत है, तो सभी के लिए एक ही रंग चुना जाए, जैसे कि छत्तीसगढ़ का प्रतीक रंग। यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो संगठन मंत्रालय के बाहर धरना-प्रदर्शन और बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं। 

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