करोड़ों का घाटा खाने के बाद जागी सरकार, बेशकीमती जमीनों का सरकारी रेट डेढ़ हजार भी नहीं

पांच साल बाद जब नई सरकार आई तो उसने इस पूरे गोरखधंधे की फाइल निकाली। फाइल देखकर सरकार हैरान रह गई कि पांच साल में उसकी करोड़ों की कमाई का नुकसान हो गया। यह पूरा मामला जमीनों का गाइडलाइन रेट तय करने को लेकर है।

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Sandeep Kumar
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अरुण तिवारी @ RAIPUR.  बिल्डरों और अफसरों की मिलीभगत से सरकार ( government ) की नाक के नीचे करोड़ों का खेला हो गया। पांच साल बाद जब नई सरकार आई तो उसने इस पूरे गोरखधंधे की फाइल निकाली। फाइल देखकर सरकार हैरान रह गई कि पांच साल में उसकी करोड़ों की कमाई का नुकसान हो गया। यह पूरा मामला जमीनों का गाइडलाइन रेट तय करने को लेकर है। पांच साल से यहां पर गाइडलाइन ही नहीं बदली गई। बेशकीमती जमीनों का सरकारी रेट डेढ़ हजार रुपए भी नहीं है। जबकि मार्केट रेट पांच से सात हजार रुपए वर्गफीट का है। सरकार अब इस मामले की समीक्षा कर रही है। सरकार ने जमीनों की रजिस्ट्री पर चली आ रही तीस फीसदी छूट समाप्त कर दी है। वहीं नए सिरे से गाइडलाइन रेट जारी करने पर भी विचार किया जा रहा है। 

जो रेट निचले इलाकों का,वही पॉश कॉलोनी का 

छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh ) में पिछले पांच सालों में कमाल के काम हुए हैं। नई सरकार बनी तो पुरानी सरकार के ये कमाल के काम सामने आ रहे हैं। कितनी हैरानी की बात है कि पिछले पांच सालों में जमीनों के भाव आसमान पर पहुंच गए हैं लेकिन सरकारी गाइडलाइन के हिसाब से रेट एक रुपए भी नहीं बढ़ा। जो सरकारी रेट दूर दराज के निचले इलाकों का भाव है वहीं पॉश कॉलोनी के बंगलों का भी। जबकि मार्केट रेट में जमीन आसमान का अंतर है। इससे नुकसान सरकार को हो रहा है क्योंकि सस्ते रेट पर रजिस्ट्री होने से उसके खाते में स्टांप शुल्क ही नहीं आ रहा। रायपुर के पॉश इलाके विधानसभा रोड,आमासिवनी या कचना में एक से डेढ़ करोड़ के नीचे खरीदने के लिए कोई घर नहीं मिलता। यदि हजार-बारह सौ वर्गफीट का प्लॉट खरीदना है तो उसकी कीमत भी 60 से 70 लाख होती है। यानी यहां का मार्केट रेट पांच से सात हजार रुपए वर्गफीट या उससे भी ज्यादा है। हैरानी की बात देखिए इसी इलाके में सरकारी गाइड लाइन के हिसाब से रेट 1400 रुपए वर्गफीट है। जाहिर सी बात है यहां पर घर खरीदना मध्यमवर्गीय परिवार के बस की बात तो नहीं है। तो ये सब कुछ रईसों के लिए किया गया है जो मार्केट रेट यानी करोड़ों के बंगले खरीदें और रजिस्ट्री सरकारी रेट पर यानी कौड़ियों के दाम पर कराएं। अफसरों,बिल्डरों और जमीन माफिया की मिली भगत से ये गोरखधंधा पांच साल से चल रहा है। ताज्जुब की बात एक और है कि रायपुर की जो निचली बस्तियां हैं या बाहरी इलाके हैं वहां पर जमीन की सरकारी दर भी इतनी है जितनी पॉश कॉलोनी की है। 

हरकत में आई सरकार 

पांच सालों में जमीन के रेट दस गुना से ज्यादा बढ़ गए हैं लेकिन रजिस्ट्री के रेट वही एक से डेढ़ हजार रुपए हैं। आउटर की महंगी जमीनों के इतने कम रेट और उपर से सरकार ने तीस फीसदी छूट दे दी। है न कमाल की बात। लेकिन पांच साल बाद नई सरकार हरकत में आई है। सरकार ने सबसे पहले तो सरकार की तीस फीसदी छूट खत्म कर दी। अब सरकार इस पूरे मामले का रिव्यू करने जा रही है। खस्ता माली हालत में सरकार हर तरफ से अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है ऐसे में सरकारी कमाई का ये बड़ा जरिया सरकार के हाथ लग गया। आचार संहिता खत्म होने के बाद पंजीयन विभाग इसकी समीक्षा करेगा। सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले को लेकर सरकार बहुत गंभीर है। समीक्षा के बाद सरकारी गाइडलाइन के नए सिरे से रेट तय किए जाएंगे।

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