दृष्टिबाधित अभ्यर्थी की याचिका हाईकोर्ट में खारिज, आरक्षण की मांग को बताया अनुचित

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (PSC) की सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक दृष्टिबाधित अभ्यर्थी द्वारा दायर याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (PSC) की सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक दृष्टिबाधित अभ्यर्थी द्वारा दायर याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। याचिका में वर्ष 2021 की भर्ती प्रक्रिया में कॉमर्स विषय के सहायक प्राध्यापक पद के लिए दृष्टिबाधितों को आरक्षण न देने को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को संवैधानिक और उचित ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी है।

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क्या है मामला?

दृष्टिबाधित अभ्यर्थी सरोज क्षेमनिधि ने वाणिज्य विषय में सहायक प्राध्यापक पद के लिए आवेदन किया था। उन्होंने लिखित परीक्षा पास की और साक्षात्कार में भी शामिल हुए, लेकिन चयन सूची में उनका नाम नहीं आया।

इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की कि वाणिज्य विषय में दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को भी 2 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया जाए, जो उन्हें दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत मिलना चाहिए।

पीएससी और राज्य शासन का पक्ष

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (PSC) की ओर से कोर्ट में जवाब देते हुए कहा गया कि आयोग केवल चयन प्रक्रिया संचालित करता है, आरक्षण संबंधी निर्णय राज्य सरकार द्वारा तय किए जाते हैं।

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वाणिज्य जैसे विषय, जिसमें गणना और विजुअल प्रेजेंटेशन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, उन विषयों में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों की कार्यक्षमता सीमित हो सकती है।

आयोग ने दिव्यांग अधिनियम 2016 और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार एक हाथ या एक पैर से दिव्यांग उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ दिया है, लेकिन दृष्टिबाधितों को वाणिज्य विषय में उपयुक्त नहीं मानते हुए उन्हें यह लाभ नहीं दिया गया।

हाई कोर्ट का फैसला

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति की एकल पीठ ने कहा 'यह राज्य सरकार का विशेषाधिकार है कि वह यह तय करे कि कौन सा पद किस श्रेणी की दिव्यांगता के लिए उपयुक्त है।'

वाणिज्य विषय में कार्य के लिए दृश्य क्षमता और सटीक गणना की आवश्यकता होती है, जिससे दृष्टिबाधितों को कार्य करने में व्यावहारिक कठिनाई हो सकती है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय (नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड बनाम भारत सरकार) का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई पद किसी दिव्यांग श्रेणी के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उसे अन्य दिव्यांग वर्गों को दिया जा सकता है।

इसके आधार पर हाई कोर्ट ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया और 24 मार्च 2021 को दिए गए अंतरिम आदेश को निरस्त कर दिया।

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आयोग को निर्देश

हाई कोर्ट ने लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया है कि वह 60 दिनों के भीतर उपयुक्त अभ्यर्थी की नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण करे ताकि रिक्त पद पर नियमानुसार नियुक्ति हो सके।

यह मामला संवेदनशील और महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिव्यांगजन अधिकारों और राज्य के अधिकारों के बीच संतुलन को दर्शाता है। हाई कोर्ट के फैसले ने स्पष्ट किया कि आरक्षण का अधिकार भी विषय की उपयुक्तता और कार्य व्यवहारिकता पर निर्भर करता है। यह फैसला अन्य विषयों और भर्तियों में दिव्यांग श्रेणियों के आरक्षण निर्धारण के लिए भी दिशा-निर्देशक बन सकता है।

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