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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम आदेश देते हुए स्कूल बसों पर लगाए गए भारी-भरकम टैक्स और पेनाल्टी को खारिज कर दिया। यह मामला महाशक्ति ट्रांसपोर्ट चिरमिरी की बसों से जुड़ा था, जिन्हें एसईसीएल ने कर्मचारियों के बच्चों और स्टाफ को स्कूल तक निश्शुल्क लाने-ले जाने के लिए किराए पर लिया था।
निजी वाहन मानकर लगाया गया टैक्स
महाशक्ति ट्रांसपोर्ट, चिरमिरी की बसों को एसईसीएल ने किराए पर लेकर कर्मचारियों के बच्चों और स्टाफ को स्कूल तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी। लेकिन परिवहन विभाग, कोरिया ने इन्हें निजी वाहन मानते हुए 30 की बजाय प्रति सीट 180 की दर से टैक्स लगा दिया और लाखों रुपये की पेनाल्टी भी थोप दी। जबकि याचिकाकर्ता का कहना था कि बसों का उपयोग केवल शैक्षणिक कार्यों के लिए हुआ और इन्हें एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन बस के नियमों के तहत टैक्स लगाया जाना चाहिए था।
पांच बस से 27 लाख की वसूल
डिमांड नोटिस के अनुसार टैक्स और पेनाल्टी इस प्रकार लगाई गई थी। बस नंबर सीजी-16 एच-0173 से 5,94,235 रुपये (2,65,200 रुपये टैक्स और 3,29,035 रुपये पेनाल्टी),बस नंबर सीजी-16 एच-0185 से 3,30,546 रुपये (1,75,000 रुपये टैक्स और 1,50,546 रुपये पेनाल्टी), बस नंबर सीजी-16 एच-0147 से 6,95,385 रुपये (3,00,900 रुपये टैक्स और 3,94,485 रुपये पेनाल्टी), बस नंबर सीजी-16 एच-0137 से 5,24,700 रुपये (2,70,000 रुपये टैक्स और 2,54,700 रुपये पेनाल्टी), बस नंबर सीजी-16 एच-0169 से 6,49,587 रुपये (2,86,600 रुपये टैक्स और 3,63,587 रुपये पेनाल्टी) लगाई गई। कुल मिलाकर 27 लाख रुपये से अधिक की वसूली का आदेश दिया गया था।
राज्य सरकार ने रखा अपना पक्ष
राज्य सरकार ने अदालत में कहा कि बसों के पास न तो परमिट था और न ही फिटनेस सर्टिफिकेट। साथ ही, किराया अनुबंध पंजीकृत नहीं था। इसलिए टैक्स वसूली वैध है। सरकार ने कहा कि, अपील का वैकल्पिक रास्ता उपलब्ध है, इसलिए रिट याचिका टिकाऊ नहीं है।
याचिकाकर्ता ने रखा पक्ष
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि बसें सिर्फ एसईसीएल कर्मचारियों के बच्चों और स्टाफ को स्कूल लाने-ले जाने के लिए चलाई गईं। इनसे कोई किराया नहीं लिया गया। ऐसे में इन्हें शैक्षणिक संस्था की बस मानकर टैक्स लगाया जाना चाहिए था।
इसके अलावा, टैक्स लगाने से पहले सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने कहा कि, बसें केवल बच्चों और स्टाफ के लिए थीं, जिन्हें मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 2(11) में शैक्षणिक संस्था की बस माना गया है। इसके बावजूद निजी वाहन मानकर टैक्स लगाया गया।
हाई कोर्ट ने यह दिया आदेश
न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की एकलपीठ ने कहा कि, बसों का उपयोग केवल शैक्षणिक कार्यों के लिए हुआ है। टैक्स वसूली नोटिस बिना सुनवाई के जारी किया गया, जो गलत है। अतः जारी डिमांड नोटिस रद्द किए जाते हैं।
साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार चाहे तो 15 दिन के भीतर नया असेसमेंट आर्डर जारी कर सकती है, लेकिन इसके लिए याचिकाकर्ता को सुनवाई का पूरा अवसर देना होगा। वहीं, याचिकाकर्ता को भी निर्विवाद टैक्स राशि समय पर जमा करनी होगी।
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टैक्स वसूली पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला | छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला
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