Maa Danteshwari Temple : यहां गिरे थे माता सती के दांत, आज भी होते हैं चमत्कार... जानिए रोचक कहानी

विश्व विख्यात मां दंतेश्वरी मंदिर में भी नवरात्रि धूमधाम से मनाई जा रही है। बता दें कि नवरात्रि में मां दंतेश्वरी के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

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Kanak Durga Jha
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Maa Danteshwari Temple placed dantewada thousand year old history
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Maa Danteshwari Temple Thousand Year Old History: आज यानी ( 4 अक्टूबर  शुक्रवार ) नवरात्रि का दूसरा दिन है। आज के दिन माता ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा होती है। मां दुर्गा के इन नौ स्वरूपों का नौ दिन तक देशभर में धूमधाम से पूजा-अर्चना कर त्यौहार मनाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में विश्व विख्यात मां दंतेश्वरी मंदिर में भी नवरात्रि धूमधाम से मनाई जा रही है। बता दें कि नवरात्रि में मां दंतेश्वरी के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। माता के दर्शन के लिए अलग-अलग राज्यों से लोग आते हैं। 

जितना ही चमत्कारी माता का ये मंदिर है, उतना ही पुराना इस मंदिर का इतिहास है। हजारों साल पहले बने माता के इस मंदिर में आज भी चमत्कार देखने को मिलते हैं। बस्तर के सौंदर्य पर चार चांद लगते हुए दंतेश्वरी माता के मंदिर में होने वाली विशेष पूजा भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां की अनोखी पूजा विधि मंदिर के इतिहास को और भी अधिक रहस्य्मयी बना देती है। 

जानिए क्या है पूजा में खास... 

मां दंतेश्वरी मंदिर में नवरात्रि में सबसे पहले पूजा किन्नरों से कराई जाती है। ऐसा माना जाता है कि किन्नरों के पूजा करने से माता प्रसन्न होती हैं। यह प्रथा मां दंतेश्वरी मंदिर में पिछले कई दशकों से चली आ रही हैं। हर साल यहां नवरात्रि से पहले किन्नरों से माता का श्रृंगार व पूजा कराया जाता है।

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हजारों साल पुराना है दंतेश्वरी मंदिर

मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। 705 साल पहले वारंगल से आए चालुक्य नरेश अन्नमदेव ने शक्तिपीठ का जीर्णोद्धार कराया था। वर्तमान में यह केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की देखरेख में है। शक्तिपीठ में प्रतिष्ठित मां दंतेश्वरी की मूर्ति जिस शिला में उकेरी गई है, उसके ठीक ऊपर नृसिंह भगवान की आकृति है। शक्तिपीठ के ठीक सामने गरुड़ स्तंभ स्थापित है। 

माता सती के यहां गिरे थे दांत

ऐसा माना जाता है कि भगवान नृसिंह विष्णु अवतार हैं, इसलिए प्रति वर्ष दीपावली के दिन मां दंतेश्वरी की माता लक्ष्मी के रूप में विशेष पूजा होती है। मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ प्रक्षेत्र को आठ भैरव भाइयों का निवास स्थल माना जाता है। सन 1313 ईस्वी में अन्नमदेव वारंगल छोड़कर बीजापुर होते हुए बारसूर पहुंचा था।

उसने अंतिम नागवंशी नरेश हरिशचंद्र देव को पराजित कर 1314 में सिंहासन संभाला था। कुछ सालों बाद उसने बारसूर से अपनी राजधानी दंतेवाड़ा स्थानांतरित की और मां दंतेश्वरी देवी की मूर्ति लाकर दंतेवाड़ा शक्तिपीठ में स्थापित की। शक्तिपीठ में तीन शिलालेख और 56 प्रतिमाएं हैं।

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देवी मंदिरों में आमतौर पर चैत्र और क्वांर महीने में नवरात्र मनाई जाती है, किंतु दंतेश्वरी शक्तिपीठ में फागुन मड़ई के नाम से तीसरी नवरात्र होती है। इसे आखेट नवरात्र कहा जाता है। देवी के नौ रूपों के सम्मान में नौ दिन माईजी की डोली निकाली जाती है। इस मौके पर 600 से ज्यादा गांवों के देवी-देवता शक्तिपीठ में आमंत्रित किए जाते हैं।

बस्तर दशहरा में शामिल होने को मां दंतेश्वरी की डोली जगदलपुर आती है। यह पर्व माता को समर्पित है, इसलिए रावण वध की पंरपरा नहीं है। माता सती का अधोदंत (निचला दांत) डंकिनी और शंखिनी नदी के संगमतट पर गिरा था, इसलिए यहां देश का 51 वां शक्तिपीठ स्थापित है। मां दंतेश्वरी बस्तर राजपरिवार की ही नहीं, अपितु संपूर्ण बस्तरवासियों की आराध्य देवी हैं। सच्चे दिल से की गई प्रार्थना माता जरूर पूरी करती हैं।

 

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