देश की संसद छत्तीसगढ़ के घोटाले पर गरमा रही है। बुधवार को बीजेपी सांसद संतोष पांडेय ने महादेव सट्टा एप घोटाले का जिक्र कर पूर्व सीएम भूपेश बघेल पर निशाना साधा तो गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने शराब घोटाले के तार छेड़ दिए। इन घोटालों की चर्चा अब लोकसभा के बाद राज्यसभा तक पहुंच गई है। पीएम मोदी ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के साथ शराब घोटाला जुड़ा है। उन्होंने कहा कि, यही आम आदमी पार्टी वाले तब चीख-चीख कर कहते थे कि ईडी, सीबीआइई लगा दो। इस मुख्यमंत्री को जेल में डाल दो। तब इन्हें ईडी बहुत प्यारी लगती थी। आज ये लोग जांच एजेंसियों को बदनाम कर रहे हैं। मोदी का इशारा भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ था। मोदी राज्यपाल के अभिभाषण पर राज्यसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब दे रहे थे।
ये है छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला
दिल्ली के 300 करोड़ के शराब घोटाले में सीएम,डिप्टी सीएम तक जेल की सलाखों में पहुंच गए और छत्तीसगढ़ में तो उससे सात गुना यानी 2100 करोड़ का शराब घोटाला हो गया। ईडी की जांच में इस शराब घोटाले की पूरी कहानी सामने आई है। इस घोटाले के लिए एक सिंडीकेट बनाया गया। इस सिंटीकेट में 11 मास्टर माइंड शामिल हुए। धीरे धीरे इस सिंडीकेट के सदस्यों का कारवां बढ़ता गया। शराब से पैसे कमाने के लिए ये सारे लोग साकी बन गए। इनमें आईएएस,कांग्रेस लीडर,अफसर,सप्लायर और डिस्टलर जैसी सभी कड़ियां आपस में जुड़ गईं। भूपेश सरकार में हुए इस घोटाले की परतें अब धीरे-धीरे खुलती जा रही हैं।
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सिंडीकेट और उसके मास्टरमाइंड
ईडी की प्रासीक्यूसन कंप्लेन के अनुसार फरवरी 2019 में शराब कारोबार से ज्यादा से ज्यादा अवैध कमीशन वसूलने के लिए एक सिंडीकेट बनाया गया। इस सिंडीकेट में प्रदेश के सबसे शक्तिशाली लोग शामिल हुए। इस सिंडीकेट का नेतृत्व मुख्यमंत्री के अत्यंत करीबी और सबसे पॉवरफुल आईएएस अनिल टुटेजा कर रहे थे। जो उद्योग विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर पदस्थ थे। सिंडीकेट के अन्य सदस्य आईएएस निरंजन दास सचिव एवं आबकारी आयुक्त, एपी त्रिपाठी आईटीएस एमडी राज्य मार्केटिंग कार्पोरेशन फील्ड के आबकारी अधिकारी, कांग्रेस नेता अनवर ढेबर, होलोग्राम सप्लायर विधु गुप्ता, प्लेसमेंट कंपनी के संचालक सिद्धार्थ सिंघानिया, विकास अग्रवाल,अरविंद सिंह समेत देशी शराब बनाने वाले तीन डिस्टलर भाटिया ग्रुप, केडिया ग्रुप और जायसवाल ग्रुप थे।
कहां लिखी गई घोटाले की स्क्रिप्ट
मार्च 2019 में कांग्रेस नेता अनवर ढेबर के होटल में देशी शराब बनाने वाले प्रमुख डिस्टलरों नवीन केडिया और राजेंद्र जायवास की बैठक हुई। इसमें अनवर ढेबर, विकास अग्रवाल और एपी त्रिपाठी भी शामिल हुए। इसमें शराब की प्रति पेटी पर निश्चित दर से कमीशन वसूली और बिना ड्यूटी पेड शराब की बिक्री शुरु करने का फैसला हुआ। डिस्टलरों द्वारा यह मांग की गई कि कमीशन की राशि देने में सहायता के लिए डिस्टलरों को कार्पोरेशन से मिलने वाली दरों में वृद्धि कराई जाए।
सिंडीकेट के प्रभाव से 1 अप्रैल 2019 से देशी एवं विदेशी शराब की दरों में वृद्धि कर दी गई और अवैध वसूली शुरु हो गई।
अवैध वसूली का ए, बी, सी
- सिंडीकेट ने 1 अप्रैल 2019 से देशी व विदेशी शराब की बिक्री में अवैध वसूली शुरु कर दी। अप्रैल 2019 से जून 2022 तक 2100 करोड़ रुपए अवैध कमीशन के रुप में वसूले गए। कमीशन वसूली का काम चार प्रकार से किया जाता था।
- ड्यूटी पेड शराब की आपूर्ति में 75 से 100 रुपए प्रति पेटी की दर से वसूली, जिसे पार्ट ए कहा जाता था।
- बिना ड्यूटी पटाई गई 40 लाख पेटी का विक्रय, जिसे पार्ट बी कहा गया।
- देशी शराब के तीन डिस्टलरों की देशी शराब के कारोबार में हिस्सेदारी तय करने के लिए लिया जाने वाला कमीशन, जिसे पार्ट सी कहा गया।
- मल्टीनेशनल शराब निर्माता कंपनियों से उनकी शराब की आपूर्ति में अवैध कमीशन प्राप्त करने के लिए एफएलए 10ए नामक नया लायसेंस लेने का प्रावधान किया गया। जिसका न कोई औचित्य था और न ही कोई आवश्यकता थी।
सिंडीकेट के सदस्यों में किसका क्या रोल...
अनिल टुटेजा : सिंडीकेट का मुखिया होने के नाते अनिल टुटेजा की भूमिका यह थी कि वे आबकारी विभाग पर पूरा नियंत्रण रखते थे। आबकारी विभाग की सभी नीतियों और निविदाओं पर उनका पूर्ण नियंत्रण था।
अनवर ढेबर : शराब घोटाले का किंगपिन अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा का बहुत करीबी व्यक्ति था। उनके निर्देशानुसार विकास अग्रवाल सभी प्रकार के कमीशन की राशि वसूल करता था।
निरंजनदास और एपी त्रिपाठी भी अनिल टुटेजा के निर्देश के अनुसार काम करते थे।
सिद्धार्थ सिंघानिया को अप्रैल 2019 से राज्य के सभी जिलों में मैनपावर सप्लाई का काम दिया गया था। सिंघानिया प्लेसमेंट एजेंसी के संचालक थे।
अरविंद सिंह लॉजिस्टिक का काम करते थे।
विधु गुप्ता नकली होलोग्राम सप्लाई का काम करते थे।विधु गुप्ता की कंपनी को होलोग्राम सप्ताई का टेंडर इसी शर्त पर दिलाया गया कि वो नकली होलोग्राम सप्लाई का काम भी करेगा। ताकि बी पार्ट की शराब का विक्रय किया जा सके।
गोल्डी भाटिया, नवीन केडिया और राजेंद्र जायसवाल देशी शराब के निर्माता थे। वे बिना ड्यूटी पेड शराब का निर्माण करते थे। वे जिलों में पदस्थ आबकारी अधिकारियों की मिली भगत से सरकारी दुकानों से अवैध शराब का विक्रय करते थे।
सबको मिलता था अपना-अपना हिस्सा
सिंडीकेट में शामिल सभी सदस्यों को अवैध वसूली में उनका हिस्सा मिलता था। कुल वसूली का बड़ा भाग अनिल टुटेजा के माध्यम से उच्च पदस्थ राजनीतिज्ञों को जाता था। देशी शराब बनाने वाले तीनों डिस्टलरों को अवैध व्यापार से बड़ल आय हुई। क्योंकि बिना ड्यूटी शराब बनाने और बेचने से हुई आय में उन्हें आबकारी कर, जीएसटी और इन्कमटैक्स भी नहीं देना पड़ता था। शराब कारोबार से चार में हुई अवैध कमाई से 61 करोड़ रुपए अनिल टुटेजा को मिलने का आरोप है। इनमें से 14.41 करोड़ की राशि अनवर ढेबर के व्यवसाय में शामिल सहयोगी नितेश पुरोहित के द्वारा दी गई।जबकि 47 करोड़ की राशि अभी भी अनवर ढेबर के पास है। अनिल टुटेजा को 61 करोड़ मिलने का आधार एपी त्रिपाठी और अरविंद सिंह के बयानों को बताया गया है। और 14.41 करोड़ रुपए मिलने का विशिष्ट डिजीटल साक्ष्य अनवर ढेबर एवं नितेश पुरोहित के आपस में मोबाइल फोन चैट को बताया गया है।