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Photograph: (The Sootr)
रायपुर. कभी छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद का गढ़ माना जाता था। बीहड़ जंगलों, बारूदी सुरंगों और खौफ के साए में जीते गांवों की यही पहचान बन गई थी। अब समय बदल गया है। आज यही छत्तीसगढ़ उम्मीद, आत्मविश्वास और बदलाव की कहानी लिख रहा है। जिन इलाकों में कभी बंदूक की आवाज गूंजती थी, वहां अब बच्चों की हंसी, स्कूलों की घंटी और त्योहारों की रौनक लौट आई है। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि इसके पीछे सरकार की मजबूत रणनीति, सुरक्षा बलों की मेहनत और जनता का विश्वास है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने बीते डेढ़ वर्ष जो परिवर्तन देखा है, वह पूरे देश के लिए मिसाल बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों को बदलने के लिए जो कार्ययोजना बनाई, उसने जमीन पर गहरा असर दिखाया है। अब छत्तीसगढ़ नक्सलवाद से लड़ने वाला राज्य नहीं, बल्कि उससे जीतने वाला राज्य बन गया है।
सिर्फ फौजी कार्रवाई से नहीं, बल्कि विकास और पुनर्वास की नीति के सहारे सरकार ने समग्र रणनीति अपनाई। इसके केंद्र में था नक्सली क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भरोसे में लेना, सुरक्षा का माहौल देना और यह विश्वास दिलाना कि उनके पास अब हिंसा के अलावा भी बेहतर विकल्प हैं।
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बड़ी संख्या में नक्सलियों का सरेंडर
बीते कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, कांकेर जैसे जिलों में 66 से ज्यादा नक्सलियों ने एक साथ हथियार डाले। इनमें कई महिला नक्सली और संगठन के सीनियर कमांडर शामिल थे। इन पर कुल मिलाकर 2.27 करोड़ रुपये से ज्यादा का इनाम घोषित था।
सरकार की 'पुना मार्गम' यानी 'नया रास्ता' योजना और 'नियद नेल्ला नार' यानी 'सच्चे मन से वापसी' योजना के कारण नक्सली अब आत्मसमर्पण को बेहतर विकल्प मान रहे हैं। वे अब समझ चुके हैं कि हिंसा से कुछ हासिल नहीं होगा और सरकार की पुनर्वास नीति उनके जीवन को दोबारा पटरी पर ला सकती है।
हाल ही में हुए इतने सरेंडर
- कांकेर में 13 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें पांच महिलाएं शामिल थीं। इन पर 62 लाख रुपये का इनाम था।
- दंतेवाड़ा में 15 नक्सलियों ने ‘लोन वर्राटू’ (अपने गांव लौटो) अभियान से प्रेरित होकर हथियार छोड़े, इनमें से 5 पर 17 लाख का इनाम था।
- नारायणपुर में 8 नक्सलियों ने सरेंडर किया, जिनमें प्लाटून कमांडर और एक कथित नक्सली 'डॉक्टर' शामिल था। इन पर 33 लाख रुपये का इनाम था।
- सुकमा में 5 नक्सली 'पुना मार्गम' योजना से प्रभावित होकर मुख्यधारा में लौटे।
इन सरेंडर से यह साफ है कि नक्सली संगठनों में अब निराशा बढ़ रही है और लोग विचारधारा से मोहभंग महसूस कर रहे हैं।
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गवाही देते आंकड़े
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 1 दिसंबर 2023 से 19 जून 2025 तक कुल 1440 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। यही नहीं, 435 नक्सली मारे गए, 1464 गिरफ्तार किए गए और 821 हथियारों के साथ 1360 बारूदी सुरंगें (IED) बरामद की गईं। अकेले बीजापुर जिले में ही 95 मुठभेड़ और 763 गिरफ्तारियां हुईं। इसका मतलब है कि सुरक्षा बलों ने इन क्षेत्रों में नक्सलियों के खिलाफ एक निर्णायक अभियान चलाया है, जो लगातार सफल हो रहा है।
आत्मसमर्पण करने वालों में बड़ी संख्या महिलाओं की भी है। 123 महिला नक्सलियों ने हथियार छोड़े हैं, जिनमें कई संगठन के उच्च पदों पर थीं। अब ये महिलाएं समाज की मुख्यधारा से जुड़कर नए जीवन की शुरुआत कर चुकी हैं।
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सरकार की दोतरफा रणनीति
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने यह समझा कि सिर्फ बंदूक से यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। इसके लिए एक दोतरफा रणनीति अपनाई गई। एक ओर जहां सुरक्षा बलों की तैनाती और ऑपरेशन को तेज किया गया, वहीं दूसरी ओर इन क्षेत्रों में विकास की रफ्तार भी बढ़ाई गई। राज्य सरकार ने नक्सल-मुक्त घोषित पंचायतों को 1 करोड़ तक की विकास योजनाएं देने की घोषणा की। इससे गांववालों में विश्वास बढ़ा है। ग्राम रक्षा समितियों को मजबूत किया गया है, जो अब गांवों की निगरानी और सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही हैं। 518 करोड़ रुपये पुलिस की आधारभूत सुविधाएं सुधारने पर खर्च किए गए हैं, जिसमें नए थाने, कैंप और संचार व्यवस्था शामिल है। 350 करोड़ रुपये आधुनिक हथियारों और सुरक्षा उपकरणों पर खर्च किए गए हैं, जिससे सुरक्षा बलों की ताकत कई गुना बढ़ गई है।
बदलाव की असल तस्वीर
अबूझमाड़ जैसे दुर्गम इलाके, जो कभी सरकार की पहुंच से बाहर थे, वहां अब नई सड़कें बन रही हैं, स्कूल खुल रहे हैं, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शुरू हो रहे हैं और 4G नेटवर्क तक पहुंच गया है।
इन इलाकों में पहले कोई सरकारी कर्मचारी जाने को तैयार नहीं होता था, लेकिन अब वहां नियमित राशन दुकानें, पंचायत बैठकें और टीकाकरण शिविर तक लग रहे हैं। जहां पहले जंगलों में वीरानी और खौफ था, अब वहां जीवन की चहचहाहट सुनाई देती है।
पुनर्वास से नया जीवन, नई उम्मीद
नक्सलियों के आत्मसमर्पण के बाद सरकार उन्हें नए जीवन की ओर ले जाने में हरसंभव मदद कर रही है। इसके लिए 'नक्सली आत्मसमर्पण पीड़ित राहत एवं पुनर्वास नीति 2025' लागू की गई है। इस नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले इनामी नक्सलियों को शिक्षा, रोजगार, आवास, और आर्थिक मदद दी जाती है। यदि कोई नक्सली अभियान में पुलिस को विशेष सहयोग देता है और उसे खतरा हो, तो उसे पुलिस विभाग में नौकरी दी जा सकती है। जिन पर 5 लाख या उससे ज्यादा का इनाम था, उनके योग्य परिवारजन को सरकारी सेवा में नियुक्ति का अवसर मिलेगा। अगर किसी कारणवश नौकरी नहीं दी जा सकती, तो उन्हें 10 लाख रुपये फिक्स डिपॉजिट के रूप में दिए जाएंगे, जो 3 साल तक अच्छे आचरण पर एकमुश्त मिलेंगे।
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शिक्षा से मिलेगा असली बदलाव
सरकार ने न केवल नक्सलियों को बल्कि उनके बच्चों को भी नई जिंदगी देने की योजना बनाई है। बच्चों को 18 वर्ष तक निशुल्क और प्राथमिकता के आधार पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई, छात्रावास सुविधा, और यदि वे निजी स्कूल में पढ़ना चाहें तो शिक्षा का अधिकार कानून के तहत सीट और अनुदान भी मिलेगा।
जो आत्मसमर्पित नक्सली खुद भी पढ़ाई करना चाहते हैं, उन्हें भी सरकारी योजनाओं के तहत सहायता दी जाएगी। यह सोच इस बात की गारंटी है कि बदलाव एक पीढ़ी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करेगा।
इस तरह अब नक्सल प्रभावित गांवों की पहचान बंदूक नहीं, किताब बन रही है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी है, गांवों में बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाएं पहुंच रही हैं। सबसे अहम बात कि लोग अब भरोसे के साथ सरकार की योजनाओं से जुड़ रहे हैं।
सरेंडर करने वाली महिलाओं ने कहा कि उन्होंने सालों जंगलों में बिताए, लेकिन अब पहली बार उन्हें लग रहा है कि वे इंसान की तरह जी रही हैं। अब वे अपने बच्चों को स्कूल भेज पा रही हैं, खुद भी सिलाई-कढ़ाई, पशुपालन या किसी छोटे व्यापार से जुड़कर आत्मनिर्भर बनने की कोशिश कर रही हैं।
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